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Mann Ki Baat: मन की बात के संदेश से बन सकता है श्रेष्ठ भारत

100th Episode of Mann Ki Baat: भारत ने 'शून्य' और फिर संख्या प्रणाली का आविष्कार किया, जो इतिहास के सबसे महान नवोन्मेषों में से एक है। दशमलव प्रणाली, पाई का मान, बीजगणित, त्रिकोणमिति, कलन शास्त्र (केल्कुलस)और कई गणितीय अवधारणाओं का जन्म भारत में हुआ था।

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Published on: 26 April 2023 12:39 AM IST
Mann Ki Baat: मन की बात के संदेश से बन सकता है श्रेष्ठ भारत
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100th Episode of Mann Ki Baat (Pic: Newstrack)

100th Episode of Mann Ki Baat: सबसे पहले, मैं कुछ विनम्र शब्दों में कहना चाहता हूं कि महान राजनेताओं की एक लंबी सूची रही है, जो हमारे देश के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए। लेकिन, ऐसा लगता है कि उनमें से किसी ने भी उस रूप में पद नहीं संभाला, जैसा श्री नरेन्द्र मोदी ने संभाला है, विशेषकर जनसांख्यिकी, धर्म, भूगोल, इतिहास, शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, दर्शन, कला, संस्कृति आदि अलग-अलग क्षेत्रों और पहलुओं की पृष्ठभूमि में भारत को वैश्विक संदर्भ में सर्वश्रेष्ठ या अद्वितीय के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

भारतीय उपमहाद्वीप, जो पहले अविभाजित भारत था, न केवल अपनी भौतिक विशालता के लिए, बल्कि अपनी बौद्धिक और आध्यात्मिक उत्कृष्टता के लिए भी जाना जाता था। इसलिए, इससे पहले कि कोई आधुनिक भारत के नेता के रूप में, श्री मोदी की भूमिका के आयामों और कार्य-प्रणाली का मूल्यांकन करे, एक मूलभूत विचार यह होना चाहिए कि भारत दुनिया के अन्य सभी देशों से क्यों और कहाँ अलग है।

भारत ने 'शून्य' और फिर संख्या प्रणाली का आविष्कार किया, जो इतिहास के सबसे महान नवोन्मेषों में से एक है। दशमलव प्रणाली, पाई का मान, बीजगणित, त्रिकोणमिति, कलन शास्त्र (केल्कुलस)और कई गणितीय अवधारणाओं का जन्म भारत में हुआ था। प्राचीन भारत के ज्ञान के स्रोत अनंत हैं। उदाहरण के लिए, उनमें से कुछ के रूप में 18 विद्याओं को यहाँ उद्धृत किया जा सकता है - चार वेद, चार सहायक वेद (आयुर्वेद-चिकित्सा, धनुर्वेद-शस्त्र, गंधर्ववेद- संगीत और शिल्प- वास्तुकला), पुराण, न्याय, मीमांसा, धर्म शास्त्र और वेदांग, छह सहायक विज्ञान, स्वर-विज्ञान, व्याकरण, मीटर, खगोल विज्ञान, अनुष्ठान और दर्शन।

आधुनिक विज्ञान शायद न्यूटन के समय से शुरू होता है। लेकिन पारंपरिक ज्ञान प्रणालियां दो मिलियन से अधिक वर्षों से मौजूद हैं, जब होमो हैबिलिस ने अपने उपकरण बनाना और प्रकृति के साथ बातचीत करना शुरू किया। इतिहास की शुरुआत के बाद से, अलग-अलग लोगों ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी की विभिन्न शाखाओं में योगदान दिया है, अक्सर ऐसे तरीके से, जब बहुत लम्बी दूरी के कारण अलग रही संस्कृतियों में परस्पर संवाद-संपर्क स्थापित हुए। संवाद से जुड़ा यह प्रभाव और स्पष्ट होता जा रहा है, क्योंकि अत्यधिक लम्बी दूरी के बावजूद वैश्विक व्यापार और सांस्कृतिक प्रवासन को शोधकर्ताओं द्वारा मान्यता दी जा रही है।

वैसे भी, भारतीय सभ्यता में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की एक मजबूत परंपरा थी। प्राचीन भारत ऋषियों और संतों के साथ-साथ विद्वानों और वैज्ञानिकों की भूमि भी थी। अनुसंधान से पता चला है कि दुनिया में सबसे अच्छा स्टील बनाने से लेकर दुनिया को गिनती करना सिखाने तक, आधुनिक प्रयोगशालाओं की स्थापना से सदियों पहले भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सक्रिय रूप से योगदान दिया था। प्राचीन भारतीयों द्वारा खोजे गए कई सिद्धांतों और तकनीकों से आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मूल सिद्धांतों की रचना हुई है और इन्हें मजबूती मिली है।

हालांकि, भारतीय उपमहाद्वीप द्वारा किए गए विशाल और महत्वपूर्ण योगदान को नजरअंदाज किया गया है। ब्रिटिश उपनिवेशवादी इस तथ्य को कभी स्वीकार नहीं कर सके कि तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में भी भारतीय अत्यधिक सभ्य थे, जब अंग्रेज अभी भी अपनी सभ्यता के विकास की प्रक्रिया में थे। उपरोक्त तथ्य, विशाल महासागर के बगल में केवल एक बूंद के समान है, जिन पर भारत को गर्व है। इसलिए, श्री मोदी बुद्धिमत्ता से उन सभी उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं, जिन्हें भारत ने लंबे समय से हासिल किया है।

हमारे माननीय प्रधानमंत्री अपने 'मन की बात' के विभिन्न एपिसोड में लगातार बहुउद्देश्यीय मुद्दों और घटनाओं को उठाते रहे हैं। परिणामस्वरूप, भारत के अद्भुत कार्यों की उत्कृष्टता को पूरा विश्व जान चुका है और उनसे मंत्रमुग्ध हो गया है। मैं व्यक्तिगत रूप से भी बहुत प्रभावित हूं, प्रधानमंत्री विशेष रूप से तीन बातों पर जोर देते हैं - एक सभी भारतीयों में एकता या एक होने की भावना जगाना, भले ही उनकी जाति और नस्ल या सामाजिक-आर्थिक स्थिति में कोई अन्य अंतर मौजूद हो। दूसरे, एक भारतीय होने पर गर्व की भावना पैदा करना; इसके लिए, श्री मोदी ने अपने प्यारे देशवासियों से उन बहादुरों के नाम याद रखने का आह्वान किया है, जिन्होंने विदेशी शासकों से आजादी पाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और यहां तक कि अपने प्राणों की आहुति भी दे दी। तीसरा, भारत के सभी नागरिकों में हमारे तिरंगे के प्रति प्रेम और विश्वास की भावना जगाना। उन्होंने यह भी आग्रह किया कि प्रत्येक भारतीय नागरिक और स्कूलों तथा कॉलेजों के सभी छात्रों को सभी शैक्षणिक संस्थानों और यहां तक कि अपने घरों में भी राष्ट्रीय ध्वज फहराना चाहिए। 'मन की बात' में 'हर घर तिरंगा' के आह्वान ने जन-भागीदारी की भावना को जगाकर पूरे देश में इस अभियान को गति देने में मदद की।

प्रधानमंत्री ने 'मेक इन इंडिया' के नारे के तहत सभी भारतीय स्वदेशी प्रयासों के फलने-फूलने पर अत्यधिक महत्व दिया है। उदाहरणस्वरुप, आयुष (समग्र स्वास्थ्य के लिए पारंपरिक ज्ञान), राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (भारत में मीठी क्रांति को बढ़ावा देना), भारतीय स्वदेशी खिलौने (आत्मनिर्भरता से जुड़ी सफलता की कहानी), आदि। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि श्री मोदी इस बात को स्वीकार करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं कि श्री पिंगली वेंकय्या भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के वास्तुकार हैं। 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' के सिलसिले में अब पूरा देश इसके बारे में जानता है। वेंकय्याजी के पोते घंटशाल गोपीकृष्ण ने इसे अपने परिवार के लिए एक बड़ा सम्मान बताया है।

मैं श्री मोदी की एक और पहल से भी बहुत प्रभावित हूँ - 'आज़ादी की रेलगाड़ी और स्टेशन', जिसे रेल मंत्रालय के प्रतिष्ठित (आइकॉनिक) सप्ताह समारोह के दौरान लागू किया गया था। इस कार्यक्रम में देश भर के स्वतंत्रता आंदोलनों से जुड़े 75 स्टेशनों और 27 स्पॉटलाइट ट्रेनों को चिन्हित किया गया, जो पूरे सप्ताह जनता के आकर्षण का केंद्र बनी रहीं। सभी 75 स्टेशनों को सजाया गया था और विभिन्न गतिविधियों, जैसे देशभक्ति गीतों का प्रसारण और कई अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था।

भारत की विविध और जीवंत संस्कृति के एक महान प्रशंसक होने के नाते, प्रधानमंत्री ने न केवल भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास की अगुवाई की है, बल्कि उनके नेतृत्व में भारत ने एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी देखा है। 'मन की बात' एक ऐसा प्लेटफार्म साबित हुआ है, जहां हर नागरिक देश के इस सकारात्मक बदलाव से सीधे जुड़ सकता है।

हमारे दूरदर्शी प्रधानमंत्री ने अगले 25 वर्षों को कर्तव्य काल के रूप में चिह्नित किया है, प्रत्येक देशवासी के लिए कर्तव्य की अवधि, ताकि हम सभी इस महोत्सव को एक जन आंदोलन में बदल सकें और इस प्रकार कड़ी मेहनत से हासिल की गयी भारत की आजादी के शताब्दी वर्ष मनाने के लिए इस बहादुर और गौरवशाली भूमि की आने वाली पीढ़ियों के चेहरे पर लम्बी मुस्कान के साथ आगे बढ़ सकें।



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