लोकतंत्र पर हंसने वालों के सामने सीना तानकर खड़ा होने वाला कवि

रघुवीर सहाय ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में 1951 में परास्नातक की उपाधि हासिल की और लखनऊ से ही प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र नवजीवन से अपने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत की।

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Published on: 30 Dec 2020 9:45 AM GMT
लोकतंत्र पर हंसने वालों के सामने सीना तानकर खड़ा होने वाला कवि
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रघुवीर सहाय पर अखिलेश तिवारी का लेख (PC: social media)

अखिलेश तिवारी

लखनऊ: नजाकत और नफासत के लिए पहचाने गए लखनऊ में नौ दिसबंर 1929 को ऐसी शख्सियत ने जन्म लिया जिसने सामने मौजूद दुनिया को हमेशा व्यवस्था विरोध और लोकतंत्र की सर्वाेच्चता की नजर से देखा। मैं सोचता हूं कि लोकतंत्र पर हंसने वालों को सरेआम शर्मिंदा करने का साहस रखने वाले रघुवीर सहाय मौजूदा दौर में होते तो राजनीति की विद्रूपताओं पर कितना कोफ्त करते। भूखे भेडिय़ों की मानिंद जिस तरह राजनीतिक दलों का लक्ष्य ऐन-केन प्रकारेण सत्ता की कुर्सी हथियाना हो गया है।

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जो अपने कृत्यों से लोकतंत्र को भी शर्मसार करने में कोताही नहीं करते। रघुवीर सहाय ने क्या ऐसे लोगों का वक्त से पहले पूर्वानुमान कर लिया था जो उन्होंने लोकतंत्र पर हंसने वालों पर कविता लिखी। खास बात यह भी है कि उन्होंने अपनी इस कविता में लोकतंत्र पर हंसने वालों को चेताया भी है कि लोकतंत्र खतरे में रहने के साथ ही आततायी की भी असुरक्षा का रथ चल पड़ता है। उसकी सुरक्षा के बारे में भी केवल लोकतंत्र ही चिंता करता है लेकिन वह इस हकीकत को भी नहीं समझ पाता है।

निर्धन जनता का शोषण है

कह कर आप हँसे

लोकतंत्र का अंतिम क्षण है

कह कर आप हँसे

सब के सब हैं भ्रष्टाचारी

कह कर आप हँसे

चारों ओर बड़ी लाचारी

कह कर आप हँसे

कितने आप सुरक्षित होंगे

मैं सोचने लगा

सहसा मुझे अकेला पा कर

फिर से आप हँसे

Raghuvir Sahay Raghuvir Sahay (PC: social media)

रघुवीर सहाय ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में 1951 में परास्नातक की उपाधि हासिल की और लखनऊ से ही प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र नवजीवन से अपने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत की। दो साल का वक्त बिताकर वह दिल्लीवासी हो गए और प्रतीक पत्रिका के सहायक संपादक के तौर पर काम शुरू करने के बाद आकाशवाणी के समाचार विभाग में उपसंपादक बन गए। दिल्ली में रहते हुए ही उन्होंने 1955 में विमलेश्वरी सहाय से विवाह किया। कवि के तौर पर उनकी पहचान अज्ञेय के दूसरा सप्तक में प्रकाशित रचनाओं से हुई। इसके बाद उनका साहित्य व काव्य सृजन संसार निरंतर विस्तार पाता गया। उनकी कविताएं असमानता, अन्याय एवं गुलामी की मानसिकता के विरोध में सिर उठाकर खड़ी होती हैं और सत्ता शीर्ष पर बैठे लोगों से सवाल करती हैं।

आज के राजनीतिक उनके सपनों को यथार्थ से दूर मानते हैं

वह ऐसे समाज व देश की कल्पना करते हैं जहां शोषण, अन्याय,हत्या, आत्महत्या, विषमता, जाति-धर्म के बंधन, दासता और राजनीतिक संप्रभुता जैसे विचारों को प्रश्रय न मिले बल्कि इन्हें हेय दृष्टि से देखा जाए। आज के राजनीतिक उनके सपनों को यथार्थ से दूर मानते हैं और अपने पक्ष में तर्क देते हैं कि सत्ता पाने के लिए अथवा अपने विरोधी स्वरों को पराजित करने के लिए कुछ भी किया जाना चाहिए। जीत के लिए सब जायज है कि मानसिकता से काम करने वाले लोग अपने कुकृत्य को जायज ठहराने के लिए दूसरे के कुकृत्य का उदाहरण देते हैं।

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रचनाओं से मिली प्रसिद्धि

रघुवीर सहाय को अपने साहित्य सृजन की वजह से ही पहचाना गया। उनकी कविताओं को पूरे देश में शोहरत मिली। दूसरा सप्तक के अलावा उनकी कविताओं के संग्रह भी प्रकाशित हुए। जिनमें 'सीढिय़ों पर धूप में', 'आत्महत्या के विरूद्ध,' 'हंसो जल्दी हंसो' शामिल है। उनका कहानी संग्रह-' रास्ता इधर से है' और दो निबंध संग्रह-' दिल्ली मेरा परदेश,' ' लिखने का कारण ' प्रमुख है। इसके अलावा उन्होंने-' बारह हंगरी कहानियां', यूगोस्लावियाई उपन्यासकार आंद्रजेएव्स्की के पोलिश उपन्यास का 'राख और हीरे' व 'जेको 'शीर्षक से भाषांतर भी किया। रोमा रोलां की विवेकानंद और शेक्सपियर के मैकबेथ का हिंदी भाषांतर 'वरनम वन 'के नाम से किया।

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