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अहिंसा के पुजारी : गांधी की हत्या के 20 साल बाद एक और हत्या हुई
अहिंसा सत्र शुरू होता है महात्मा गांधी की हत्या के दिन 30 जनवरी से और इसका समापन मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या के दिन 4 अप्रैल को होता है। इसे एक मिशन के रूप में लिया जाता है। जिसमें प्रतिभागी इन दोनो अहिंसा के पुजारियों की प्रतिबद्धताओं और सिद्धांतों पर चलने का संकल्प लेते हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
जब हम अहिंसा के पुजारी की बात करते हैं तो महात्मा गांधी का चित्र सामने आ जाता है। लेकिन क्या आप को पता है कि अहिंसा के एक नहीं दो पुजारियों की हत्या हुई है। एक को उसकी हत्या किये जाने के दिन 30 जनवरी को भारत में याद किया जाता है और अहिंसा के दूसरे पुजारी मार्टिन लूथर किंग को 4 अप्रैल को अमेरिका में याद किया जाता है।
मार्टिन लूथर किंग को दूसरा गांधी भी कहा जाता है। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को हुई थी, उनकी याद में आज शहीद दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन को हम अनगिनत शहीद क्रांतिकारियों की याद में भी शहीद दिवस मनाते हैं। वैसे भारत में दो दिन शहीद दिवस मनाया जाता है एक आज और दूसरा भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिये जाने के दिन 23 मार्च को भी शहीद दिवस मनाया जाता है।
लेकिन आज महात्मा गांधी की शहादत के दिन अहिंसा के दूसरे पुजारी का जिक्र करने का क्या मतलब? मतलब है क्योंकि आज से अहिंसा सत्र शुरू हुआ। इसकी स्थापना महात्मा गांधी के पौत्र अरुण गांधी ने 1998 में की। इस सत्र को महात्मा गांधी की शहादत के दिन से शुरू किया जाता है इस दौरान महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग के दर्शन और सिद्धांतों पर चर्चा की जाती है। इसका आयोजन वैश्विक नई सोच के तौर किया जाता है।
अहिंसा सत्र शुरू होता है महात्मा गांधी की हत्या के दिन 30 जनवरी से और इसका समापन मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या के दिन 4 अप्रैल को होता है। इसे एक मिशन के रूप में लिया जाता है। जिसमें प्रतिभागी इन दोनो अहिंसा के पुजारियों की प्रतिबद्धताओं और सिद्धांतों पर चलने का संकल्प लेते हैं।
महात्मा गांधी की चर्चा करें तो प्रमुख रूप से सात ऐसे सिद्धांत हैं जिनमें गांधी जीवित हैं
सत्य परमात्मा है
गांधी जी ने सत्य के लिए बड़े से बड़े लाभ को भी ठुकरा दिया लोगों को नाराज कर दिया लेकिन सत्य से नहीं डिगे। इसीलिए गांधी जो को सत्य के बड़े आग्रहियों में शुमार किया जाता है। हमारी संस्कृति में सत्य नारायण कथा प्रचलित है। लोग इसे धर्म से जोड़कर देखते हैं लेकिन सत्य नारायण की कथा क्या है यह कोई नहीं जानता।
वस्तुतः शाम के समय शुद्ध मन से सत्य को भगवान या नारायण मानकर आपस में मिलकर बैठकर चर्चा करना ही सत्य नारायण कथा है। सत्य नारायण का अर्थ ही यह है कि सत्य ही नारायण है। यानी सत्य ही भगवान है। एक बार वायसराय लार्ड कर्जेन ने कहा कि सत्य की कल्पना भारत में यूरोप से आई है। गांधीजी को यह बात बहुत खराब लगी उन्होंने तल्ख लहजे में वायसराय को लिखा, “आपका विचार गलत है। भारत में सत्य की प्रतिष्ठा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। सत्य परमात्मा का रूप माना जाता है।”
गांधीजी कहते थे कि सत्य मेरे लिए सर्वोपरी सिद्धांत है। मैं वचन और चिंतन में सत्य की स्थापना करने का प्रयत्न करता हूँ। परम सत्य तो परमात्मा हैं। परमात्मा कई रूपों में संसार में प्रकट हुए हैं। मैं उसे देखकर आश्चर्यचकित और अवाक हो जाता हूँ। सत्य में नारायण है। यानी भगवान है। मैं सत्य के रूप में परमात्मा की पूजा करता हूँ। सत्य की खोज में अपने प्रिय वस्तु की बलि चढ़ा सकता हूँ।
अहिंसा का सिद्धांत सबसे कठिन
अगर महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांत पर विचार करें तो गांधी जी के अनुसार भी यह बहुत कठिन है। उन्होंने इस पर बड़ा सूक्ष्म विचार किया। इसके बाद लिखा, अहिंसा की परिभाषा बड़ी कठिन है। अपनी इस बात का जवाब देते हुए वह कहते हैं कि अमुक काम हिंसा है या अहिंसा यह सवाल मेरे मन में कई बार उठा है। मैं समझता हूँ कि मन, वचन और शरीर से किसी को भी दुःख न पहुंचाना अहिंसा है। लेकिन इस पर अमल करना, देहधारी के लिए असंभव है।
अहिंसा की अपनी दी हुई परिभाषा पर शत प्रतिशत खरा उतरने की बात को गांधीजी ने देहधारी के लिए असंभव करार दिया। फिर वह बताते हैं ऐसा कहने के पीछे क्या कारण है वह कहते हैं क्योंकि साँस लेने में अनेकों सूक्ष्म जीवों की हत्या हो जाती है। आँख की पलक उठाने, गिराने से ही पलकों पर बैठे जीव मर जाते हैं। सांप। बिच्छु को भी न मारें, पर उन्हें पकडकर दूर तो फेंकना ही पड़ता है। इससे भी उन्हें थोड़ी बहुत पीड़ा तो होती ही है।
अहिंसा को हिंसा से अलग करना
महात्मा गांधी आगे कहते हैं मैं जो भी खाता हूँ, जो कपडे पहनता हूँ, यदि उन्हें बचाऊँ तो मुझसे जिन्हें ज्यादा जरूरत है, वे उन गरीबों के लिए काम आ सकते हैं। मेरे स्वार्थ के कारण उन्हें ये चीजें नहीं मिल पाती। इसलिए मेरे उपयोग से गरीब पडोसी के प्रति थोड़ी हिंसा होती है। जो वनस्पति मैं अपने जीने के खाता हूँ, उससे वनस्पति जीवन की हिंसा होती है। बच्चों को मारने, पीटने, डांटने में हिंसा ही तो है। क्रोध करना भी सूक्ष्म हिंसा है। हिंसा के इतने सारे रूपों को लेकर वह थोड़ असहज होते हैं लेकिन फिर भी अहिंसा के पथ से उनका विचलन नहीं होता बल्कि हर चुनौती को स्वीकार पर वह अहिंसा के परम पथ पर सतत अग्रसर रहते हैं।
ब्रम्हचर्य की गांधीजी की परिभाषा और उस पर अमल
गांधी जी के शब्दों में जो मन, वचन और काया से इन्द्रियों को अपने वश में रखता है, वही ब्रम्हचारी है। जिसके मन के विकार नष्ट नहीं हुए हैं उसे पूरा ब्रम्हचारी नहीं कहा जा सकता। मन, वचन से भी विकारी भाव नहीं जागृत होने चाहिए। ब्रम्हचर्य की साधना करने वालों को खान-पान का संयम रखना चाहिए। उन्हें जीभ का स्वाद छोडना चाहिए और बनवट तथा श्रृंगार से दूर रहना चाहिए। इसी लिए संयमी लोगों के लिए ब्रम्हचर्य आसान है। खुद गांधी जी इस ब्रम्हचर्य के व्रत पर डटे रहे और संयम को वक्त के साथ कड़ा और कड़ा करते गए।
अस्तेय यानी चोरी न करना
गांधी जी की चोरी की परिभाषा सरल परिभाषा से भिन्न थी सामान्यतः दूसरे की चीज उसकी इजाजत के बिना लेना चोरी है। लेकिन गांधीजी इससे आगे बढ़कर कहते हैं कि जो चीज हमें जिस काम के लिए मिली हो उसके सिवाय दूसरे काम में उसे लेना या जितने समय के लिए मिली हो, उससे ज्यादा समय तक उसे काम में लेना भी चोरी है। अपनी कम से कम जरूरत से ज्यादा मनुष्य जितना लेता है, वह चोरी है।
चोरी आगे वह फालतू चीजों के संग्रह को अपरिग्रह के रूप में परिभाषित करते हैं। गांधी जी कहते हैं जिस प्रकार चोरी करना पाप है, उसी प्रकार जरूरत से ज्यादा चीजों का संग्रह करना भी पाप है। इसलिए हमें खाने की आवश्यक चीजें, कपडे और टेबल, कुर्सी आदि चीजें आवश्यकता से ज्यादा इकठ्ठी करना अनुचित है। उदाहरण के लिए यदि आपका काम दूसरी तरह चल जाए तो कुर्सी रखना व्यर्थ है।
अस्तेय अपरिग्रह का रथी
इस तरह अगर देखा जाए तो गांधीजी ने अस्तेय और अपरिग्रह के रूप में मन की स्थितियों का अध्ययन किया और उनका पालन किया। इसके लिए आत्मानुशासन को हथियार बनाया। वह कहते हैं कि सबके लिए इतनी बारीकी से उसका पालन करना कठिन है, पर जैसे-जैसे मनुष्य अपने शरीर की आवश्यकताएं घटाता जाएगा, वैसे-वैसे अस्तेय और अपरिग्रह की गहराई में पहुँचता जाएगा।
प्रार्थना का हथियार
महात्मा गांधी को प्रार्थना में अटूट विश्वास था। दक्षिण अफ्रीका में रहते समय से ही उन्होंने सार्वजनिक रूप से प्रार्थना प्रारंभ कर दी थी। प्रार्थना का मूल अर्थ माँगना है। पर गाँधीजी प्रार्थना का अर्थ ईश्वरीय स्तुति, भजन, कीर्तन, सत्संग, आध्यात्म और आत्मशुद्धि मानते थे। गांधी जी का विश्वास था कि प्रार्थना से वह सब कुछ संभव है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। प्रार्थना में सत्य से एकाकार होने की ईच्छा रखनी चाहिए। प्रार्थना में हमें परम सत्य में एक रस होने के लिए व्याकुल हो जाना चाहिए। यह व्याकुलता दिखनी चाहिए।
स्वस्थ समाज
महात्मा गांधी ने आजीवन स्वास्थ्य की चिंता की। वे औषधियों के घोर विरोधी थे। उन्होंने कुने की जल चिकित्सा, जुष्ट की प्रकृति और लौटो-साल्ट की शाकाहार आदि पुस्तकें पढकर उसमें बतलाये हुए नियमों का पालन किया। अपने अनुयायियों तथा समाज को इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया।
मार्टिन लूथर किंग
अब बात करते हैं मार्टिन लूथर किंग की यह वह नाम है, जिसे न सिर्फ अमेरिका का हर नागरिक जानता है। बल्कि उनकी ख्याति विश्व के प्रत्येक कोने तक है। जिस तरह महात्मा गांधी ने रंगभेद के खिलाफ संघर्ष किया उसी तरह मार्टिन लूथर किंग ने अपनी लड़ाई लड़ी।
अमेरिका में अफ़्रीकी-अमेरिकनों को समानता का अधिकार दिलाने का श्रेय मार्टिन लूथर किंग को है। और अपने इस मिशन को मार्टिन ने बिना किसी हिंसा के सफल बनाया।
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रंगभेद के खिलाफ अपने संघर्ष को अंजाम तक पहुंचाने के बाद उनका दायरा व्यापक हो गया। वियतनाम युद्ध पर बेवजह पैसा लगाने, अफ़्रीकी लोगों को अमेरिकियों से कम वेतन मिलने, जैसे तमाम मुद्दों को मजबूती से उठाया। लेकिन अमेरिका में भी इस अहिंसा के पुजारी के तमाम दुश्मन बन गए थे। लेकिन मार्टिन पीछे नहीं हटे।
4 अप्रैल का वह मनहूस दिन
4 अप्रैल 1968 को मार्टिन एक होटल में ठहरे थे। वह वहां मजदूरों की हड़ताल का मसला सुलझाने गए थे। तभी अचानक एक गोली ने मार्टिन की जान ले ली। पूरे अमेरिका में शोक की लहर छा गई। अहिंसा के इस पुजारी को भी अपने कामों के बदले गोली मिली थी। गांधी जी की तरह सोचने के कारण उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता था।
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मार्टिन अपने लोगों को छोड़कर जा चुके थे, लेकिन उनकी यादों से उन्हें कोई नहीं निकाल सका। आज भी वह लोगों के बीच जिंदा हैं। इसीलिए अहिंसा सत्र में पूरे विश्व में गांधी के साथ मार्टिन लूथर किंग को भी याद किया जाता है।