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Punjab Governor: राज्यपालजी ! कब हटेंगे ? सुप्रीम कोर्ट की फिर फटकार !!

Punjab Governor: अब तो श्री बनवारीलाल पुरोहित को पंजाब राज्यपाल पद से तत्काल त्यागपत्र दे देना चाहिए। सात महीनों में दूसरी बार सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपाल को पद की गरिमा से अवगत कराया। चेतावनी भी दी कि : “आग से मत के खेलिए।”

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 11 Nov 2023 2:38 PM GMT
The Supreme Court said that Punjab Governor Banwarilal Purohit should immediately resign from the post
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सर्वोच्च न्यायालय ने कहा पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को पद से तत्काल त्यागपत्र दे देना चाहिए: Photo- Social Media

Punjab Governor: अब तो श्री बनवारीलाल पुरोहित को पंजाब राज्यपाल पद से तत्काल त्यागपत्र दे देना चाहिए। सात महीनों में दूसरी बार सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपाल को पद की गरिमा से अवगत कराया। चेतावनी भी दी कि : “आग से मत के खेलिए।”

प्रधान न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने राज्यपाल को संवैधानिक सीमाओं की याद दिलायी कि अगर विधानसभा वही बिल दोबारा पास करती है, तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देनी होगी। पीठ ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर सहमति नहीं देने के लिए पंजाब के राज्यपाल पर अप्रसन्नता जाहिर किया। जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने पूरे मामले पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की शक्तियों पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि विधानसभा सत्र को किस आधार पर असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है ?

मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच खींचतान

राज्यपाल पुरोहित और आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच लंबे समय से खींचतान चलती आई है। पंजाब विधानसभा में पास बिलों पर राज्यपाल के हस्ताक्षर न करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गई। विधानसभा में पास बिलों को रोका नहीं जाना चाहिए। क्योंकि लोकतंत्र सही मायने में मुख्यमंत्री और राज्यपाल के हाथों से चलता है। राज्यपाल सचिवालय ने कोर्ट में दलील दी थी कि मार्च में बुलाई गए बजट सत्र को खत्म करने की बजाय स्थगित किया गया है। इसके बाद जून में दोबारा बैठक बुला ली गई थी। यह गलत है, लेकिन कोर्ट ने कहा, "विधानसभा स्पीकर के पास ऐसा करने का अधिकार है। विधानसभा सेशन को अनिश्चित काल तक टाले रखना भी सही नहीं है।" राज्यपाल का दर्जा संवैधानिक मुखिया का है, लेकिन उन्हें कुछ विषयों को छोड़कर ज्यादातर में कैबिनेट की सलाह से काम करना होता है।"

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न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने पुरोहित के वकील से स्पष्ट कर दिया था कि : “यदि राज्य मंत्रिमंडल ने कहा कि बजट सत्र का आयोजन किया जाना है तो सत्र का आयोजन करना ही होगा। राज्यपाल इसके लिए बाध्य हैं और इस बारे में कानूनी सलाह नहीं मांग सकते।” पुरोहित बनाम आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान में भिड़ंत का मामला एक अवांछनीय संवैधानिक विवाद का आकार ले रहा था। इसकी शुरुआत पुरोहित के 21 सितंबर 2022 के पत्र से हुई थी। मुख्यमंत्री के आग्रह पर राज्यपाल ने पंजाब की सोलहवीं विधान सभा के विशेष सत्र के लिए आदेश जारी कर दिए थे। सरकार “विश्वास मत” पाने हेतु यह विशेष सत्र चाहती थी। फिर अकस्मात पुरोहित ने नया आदेश जारी कर अपने एक दिन पूर्व के निर्णय को निरस्त कर दिया। राज्यपाल का कारण था कि “विश्वास मत” का ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इस पर मसला उच्चतम न्यायालय पहुंचा। जो कुछ खंडपीठ ने कहा वह पंजाब की संवैधानिक स्थिति को हास्यास्पद और असंवैधानिक बनाता है। मसलन उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी थी कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री को “दिमागी परिपक्वता” दर्शानी चाहिए थी। दोनों मे अधोपतन के लिए दौड़ लग गई थी। संवैधानिक मर्यादा भयावह स्थिति मे पड़ गई थी। दोनों में मर्यादा तथा गरिमा की सीमा के तहत पारस्परिक संवाद होना चाहिए। मुक्केबाजी जैसी टक्कर नहीं होनी चाहिए।

पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित:

राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित

राज्यपाल पुरोहित राजनीति में पत्रकारिता से आए हैं। मूलतः बनवारीलाल पुरोहित घी के व्यापारी थे। फिर सियासत में प्रवेश किया है। अशोक घी नामक विक्रेता संस्थान उनका पैतृक व्यवसाय था। प्रारंभ में वे इंदिरा-कांग्रेस के सदस्य थे। दो बार सांसद रहे। (दल बदलकर भाजपा में आए)। उसके पूर्व विदर्भ के समर्थन में पृथकतावादी सियासत करते रहे। फिर राम मंदिर के मसले पर दल बदला। पार्टी पलटते रहे। लाभार्थी भी रहे। तमिलनाडु के राज्यपाल रहे तो उनका आरोप था कि चालीस से पचास करोड़ की रिश्वत लेकर विश्वविद्यालयों के कुलपति नामित किये जा रहे हैं। विवादों के चलते पुरोहित तीन प्रमुख चुनाव में पराजित हो गए थे। भाजपा के सांसद रहने के बाद वे 1991 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दत्ता मेघे से हारे। फिर 1999 में वे रामटेक से लोकसभा चुनाव हारे। तब उनका प्रभावी भाजपा नेता प्रमोद महाजन से मतभेद हो गया था और 1999 में हार गए। अपनी विदर्भ राज्य पार्टी से 2003 में नागपुर से लड़े और 2004 में हारे। फिर 2009 में कांग्रेस के विलास मुत्तमवार से हारे। पत्रकारिता में पुरोहित जी का प्रवेश भी एक घटना है ही। कहां घी का व्यापार कहां बुद्धिकर्म !

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गत आठ महीनों में दूसरी बार सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपाल पुरोहित की आलोचना की है। पिछली तल्ख टिप्पणी (फरवरी 2023) थी तो आस्था थी कि आत्माभिमान के नाते पुरोहित त्याग देंगे। पर वे राज भवन में डटे रहे, हटे नहीं। तब पंजाब में मान सरकार बनाम राज्यपाल विवाद मामले को लेकर सख्त टिप्पणी भी की थी। कोर्ट ने कहा : “पंजाब में जो हो रहा है वो गंभीर चिंता का विषय है। राज्यपाल विधानसभा के विशेष सत्र को अवैध घोषित नहीं कर सकते हैं क्योंकि वहां जनता से चुने हुए प्रतिनिधि हैं।” फिर कोर्ट ने कहा कि विधानसभा सत्र की वैधता को लेकर राज्यपाल की ओर से सवाल उठाना सही नहीं है। राज्यपाल इस सत्र को वैध मानते हुए अपने पास लंबित बिल पर फैसला लें। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि राज्य में जो हो रहा है उससे वह खुश नहीं है।

Shashi kant gautam

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