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चाहिए हिन्दू, ईसाई महिलाओं की बराबरी...

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने 2 दिसंबर को मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह प्रथा और हलाला के खिलाफ दाखिल याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया था। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि हम सर्दियों की छुट्टियों के बाद मामले को देखेंगे। ये मामला सुप्रीम कोर्ट की ओर से संविधान पीठ को भेज दिया गया है।

राम केवी
Published on: 27 Jan 2020 1:27 PM GMT
चाहिए हिन्दू, ईसाई महिलाओं की बराबरी...
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रामकृष्ण वाजपेयी

एक सर्वेक्षण के अनुसार 91.7 प्रतिशत मुस्लिम महिलाओं ने मुसलमानों में प्रचलित बहुपत्नी के खिलाफ प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि पहली पत्नी की रज़ामंदी हो या नहीं, बहुविवाह की अनुमति नहीं होनी चाहिए। सर्वेक्षण में महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, बिहार, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों को शामिल किया गया। इस सर्वेक्षण को लेकर हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश के लिए सफल अभियान चलाने वाले मुस्लिम महिलाओं के संगठन ने मुसलमानों में प्रचलित बहुविवाह के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री तक अपनी बात पहुंचा चुकी हैं। मुम्बई के इस मुस्लिम महिला संगठन ने 2015 में 10 राज्यों में इस बारे में कराए गए अपने सर्वेक्षण इसे मुद्दा बनाया है, जिसमें 5,000 मुस्लिम महिलाओं को शामिल किया गया था।

चाहिए हिन्दू ईसाई महिलाओं की बराबरी

मुंबई की मुस्लिम महिलाओं के इस समूह को हिन्दू और ईसाई कानूनों की तर्ज पर मुस्लिम महिलाओं के लिए बराबरी चाहिए है। इस समूह की संसद में ‘मुस्लिम फैमिली लॉ’ लाने की मांग है। समूह का तर्क है कि हिन्दू मैरिज एक्ट और ईसाई मैरिज एक्ट दोनों संसद से पास होकर कानून बने और संशोधित किये गए लेकिन सिर्फ मुस्लिम लॉ ही ऐसा कानून है जो संसद में नहीं गया है। मुस्लिम महिलाओं के पास वो कानून है जिसे ब्रिटिश हुकूमत की ओर से 1937 में पास किया गया था। और यह कानून हिंदू और ईसाई महिलाओं की तरह मुस्लिम महिलाओं को कानूनी बराबरी नहीं देता है। मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए कोई कानूनी ढांचा उपलब्ध नहीं है। ये समूह केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद व केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी तक अपनी बात पहुंचा चुका है।

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वास्तव में मुसलमानों में बहुविवाह, हलाला, शादी की उम्र जैसे मुद्दे अभी तक अनसुलझे हैं। तीन तलाक कानून आने के बाद मुस्लिम महिलाओं में उम्मीद जगी है। मुसलमानों में प्रचलित बहु विवाह और हलाला की परंपरा को लेकर कानूनी लड़ाई छिड़ी हुई है लेकिन अब इसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी कूद पड़ा है। वास्तव में मुसलमानों की कट्टरपंथी जमात बहुविवाह और हलाला की पक्षधर क्यों है, यह वर्तमान परिदृश्य में एक अहम सवाल हो गया है।

सारा ध्यान आबादी बढ़ाने पर

आंकड़ों के आधार पर गौर करें तो भारत में हिन्दू धर्म के बाद इस्लाम दूसरा सर्वाधिक प्रचलित धर्म है, जो देश की जनसंख्या का 14.2 प्रतिशत है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में मुस्लिम आबादी 17.2 करोड़ थी। अगली जनगणना की तैयारी शुरू हो चुकी है और 2019 की शुरुआत में ये एक अध्ययन के अनुसार भारत में मुस्लिम आबादी बढ़कर 19.4 करोड़ आबादी के साथ भारत दूसरे स्थान पर आ गई है। प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 40 साल बाद मुस्लिम आबादी में भारत नंबर एक पर आ जाएगा उस समय जातीय तनाव की स्थिति किस रूप में होगी इसे लेकर समाज विज्ञानी लगातार चिंता का इजहार कर रहे हैं।

चिंता की वजह

भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त 2006 की समिति के अनुसार, भारत की मुस्लिम आबादी 21वीं सदी के अंत में 32 से 34 करोड़ हो जाने का अनुमान है।यानी भारत की कुल अनुमानित आबादी का 18 फीसद। जबकि मुसलमानों में शिक्षा का स्तर निचले पायदान पर है। करीब 43 फीसदी लोग अनपढ़ हैं।

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एक प्रमुख भारतीय पत्रकार स्वपन दासगुप्ता ने इस पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा था कि यह भारत के सामाजिक तालमेल को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित कर सकता है।

एक प्रसिद्ध भूजनांकिकी फिलिप लोंगमैन ने भी कहा है कि हिंदू और मुसलमान के जन्म दर में पर्याप्त अंतर भारत में जातीय तनाव पैदा कर सकते हैं।

भारतीय विधि आयोग की रिपोर्ट अहम

भारतीय विधि आयोग ने अपनी 18वीं रिपोर्ट में संभवत: पहली बार भारत में इस्लामिक कानूनों के अंतर्राष्ट्रीय संदर्भों को स्वीकार किया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि मोरक्को, अल्जीरिया, ट्यूनिशिया, लीबिया, मिस्र, सीरिया, लेबनान और पाकिस्तान जैसे दुनिया के विविध देशों में मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित सुधार जैसे बहुविवाह के लिए कड़ी शर्ते लगाते हुए एकल विवाह लागू किया गया है। लेकिन सऊदी अरब, ईरान, इंडोनेशिया और भारत में यह चलन जारी है।

पाकिस्तान में कानून पहली शादी के दौरान दूसरी शादी करने पर रोक लगाता है। यदि असाधारण परिस्थितियों में ऐसी शादी करनी भी पढ़ती है, तो मध्यस्थता परिषद को लिखित आवेदन देना पड़ता है। इस आवेदन में मौजूदा पत्नी/पत्नियों की ओर से इजाजत भी लेनी होती है। परिषद फैसला लिखित में देती है कि उसे इजाजत दी जाए या नहीं और उसका निर्णय अंतिम होता है। लेकिन भारत में अभी ऐसा कुछ नहीं है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तर्क

मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुपत्नी प्रथा और ‘निकाह हलाला’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाएं दायर हुई थीं जिन पर सर्वोच्च अदालत को अभी विचार करना है लेकिन अब इसमें पक्षकार बनने के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आगे आ गया है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का दावा है कि शीर्ष अदालत पहले ही 1997 में बहुपत्नी प्रथा और ‘निकाह हलाला’ के मुद्दे पर गौर कर चुकी है और उसने इसे लेकर दायर याचिकाओं पर विचार करने से इंकार कर दिया था। इस पर अब विचार नहीं किया जाना चाहिए।

बोर्ड का यह भी तर्क है कि इन कानूनों का मूल स्रोत मुस्लिम धर्मग्रंथ हैं। मुस्लिम लॉ मूल रूप से पवित्र कुरान और हदीस (मोहम्मद साहब की शिक्षाओं) पर आधारित है। अत: यह संविधान के अनुच्छेद 13 में उल्लिखित ‘लागू कानून’ के भाव के दायरे में नहीं आता है। इसलिए इनकी वैधता का परीक्षण नहीं किया जा सकता। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का यह भी तर्क है कि बहुविवाह और अन्य प्रथाओं पर पहले ही फैसला सुनाया जा चुका है। धार्मिक प्रथा को चुनौती देने वाली जनहित याचिका उस व्यक्ति द्वारा दायर नहीं की जा सकती, जो उस धार्मिक संप्रदाय का हिस्सा नहीं है।

क्या है बहु पत्नी प्रथा व निकाह हलाला

बहुपत्नी प्रथा मुस्लिम व्यक्ति को चार बीवियां रखने की इजाजत देती है। जबकि ‘निकाह हलाला’ के मुताबिक पति द्वारा तलाक दिये जाने के बाद यदि मुस्लिम महिला उसी पति से दुबारा शादी करना चाहती है तो इसके लिये उसे पहले किसी अन्य व्यक्ति से निकाह करना होगा और उसके साथ वैवाहिक रिश्ता कायम करने के बाद उससे तलाक मिलने पर वह पहले पति से दोबारा निकाह कर सकता है।

शीर्ष अदालत ने 2018 में मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुपत्नी प्रथा और ‘निकाह हलाला’ की संवैधानिक वैधता पर विचार करने का निर्णय किया था। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने 2 दिसंबर को मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह प्रथा और हलाला के खिलाफ दाखिल याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया था। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि हम सर्दियों की छुट्टियों के बाद मामले को देखेंगे। ये मामला सुप्रीम कोर्ट की ओर से संविधान पीठ को भेज दिया गया है।

बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने इस मामले में कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की थी। याचिका में हलाला और पॉलीगेमी (बहुविवाह) को रेप जैसा अपराध घोषित करने की मांग की गई है, जबकि बहुविवाह को संगीन अपराध घोषित करने की मांग की गई है।

राम केवी

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