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पुत्रमोह में खत्म हो गई इन नेताओं की सियासत, अब पाटियों का हुआ ये हाल

यदि उद्धव ठाकरे को अपने पुत्र आदित्य को मुख्यमंत्री बनाने की लालसा न उठी होती तो आज महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना की सरकार सत्तासीन होती।

Shivakant Shukla
Published on: 13 Nov 2019 11:45 AM GMT
पुत्रमोह में खत्म हो गई इन नेताओं की सियासत, अब पाटियों का हुआ ये हाल
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श्रीधर अग्निहोत्री

नई दिल्ली: इन दिनों देश में महाराष्ट्र का सियासी ड्रामा सुर्खिया बना हुआ है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण शिवसेना अध्यक्ष उद्वव ठाकरे का पुत्र मोह माना जा रहा है। यदि उद्धव ठाकरे को अपने पुत्र आदित्य को मुख्यमंत्री बनाने की लालसा न उठी होती तो आज महाराष्ट्र में भाजपा.शिवसेना की सरकार सत्तासीन होती।

1984 में शिवसेना भाजपा का हुआ गठबंधन

पिछले पांच दशकों से महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना का प्रभाव रहा है। पूरे प्रदेश की राजनीति शिवसेना के आसपास ही घूमती रही है। पार्टी संस्थापक बाला साहब ठाकरे वैसे तो जनसंघ की विचारधारा के नजदीक रहे पर 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद वह इसके और नजदीक आ गए। इसके बाद 1984 में शिवसेना ने भाजपा के तत्कालीन शीषर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के साथ गठबंधन किया था। तब पहली बार शिवसेना प्रत्याशियों ने भाजपा के टिकट पर ही चुनाव ल़़डा था। 1989 में दोनों दलों के बीच औपचारिक गठबंधन हुआ था। 1995 से 1999 तक शिवसेना के दो मुख्यमंत्री मनोहर जोशी व नारायण राणे सत्ता में रहे। 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा-शिवसेना में खटास इस कदर ब़़ढ गई थी कि दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था।

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आदित्य को मुख्यमंत्री बनाने की बात

नतीजों के बाद दोनों दल एक साथ आ गए और महाराष्ट्र में एक बार फिर इस गठबन्धन की सरकार बनी। लेकिन इस बार हुए विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना अध्यक्ष उ़़द्धव ठाकरे ने अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को ही विधानसभा चुनाव में उतार दिया। जब आदित्यठाकरे चुनाव जीते और भाजपा शिवसेना गठबन्धन सत्ता पाने की स्थिति में आया तो आदित्य को मुख्यमंत्री बनाने की बात शिवसेना कैम्प से शुरू हो गयी। जिस पर भाजपा हाइकमान तैयार न हुआ। काफी मशक्कत के बाद भी जब अन्य दलों के पास बहुमत न हो पाने कें कारण प्रदेश को राष्ट्रपति शासन का सामना करना पडा। ऐसा नही है कि पहली बार पुत्र मोह ने देश के ऐसे नेताओं की राजनीति की दिशा बदली हो, इसके पहले भी कई नेता पुत्र हुए जिनके कारण पार्टी के भीतर विवाद हुआ और पार्टी की वास्तविक हालत भी कमजोर होती गयी।

मुलायम सिंह यादव की पार्टी का भी वही हश्र हुआ

इसी तरह उत्तर भारत में ताकतवर राजनीतिक दलों में शुमार रहे समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की पार्टी का भी वही हश्र हुआ। 2012 में मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया। यही नही बाद में पार्टी का अध्यक्ष भी बनाया। कई लोगों को यह बात अखरी तो उन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया। इसके बाद मुलायम सिंह के भाई शिवपाल सिंह यादव और पुत्र अखिलेश यादव के राजनीतिक टकराव के चलते 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के हाथ से सत्ता छिन गयी। पार्टी 2019 के लोकसभा में भी ओधे मुंह गिरी।

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सोनिया ने कांग्रेस पार्टी की कमान राहुल गांधी को सौंपी तो...

इसी तरह देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जब खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर पार्टी की कमान अपने बेटे राहुल गांधी को सौंपी तो पार्टी में सुधार होने के बजाय वह बेहद कमजोर होती गयी। राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस को 24 चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। पार्टी की हालत यह हो गई है कि इसके साथ गठबंधन करने वाले दलों की भी लुटिया डूबती गयी। दिसम्बर 2017 में पार्टी की कमान संभालने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से चुनाव मे पराजित हुई।

लालू प्रसाद ने अपने बेटे तेजस्वी यादव को...

पुत्र मोह का एक और उदाहरण उत्तर भारत के राज्य बिहार में देखने को मिलता है जहां पर 2015 आरडेजी अध्यक्ष लालू प्रसाद ने अपने बेटे तेजस्वी यादव को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाने के साथ ही बिहार विधानसभा में पार्टी विधायक दल का नेता मनोनीत किया। इसके बाद जब पार्टी अध्यक्ष लालू यादव जेल चले गए तब से सारा काम तेजस्वी यादव ही देख रहे हे। लालू यादव के दूसरे बेटे तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के मतभेद के चलते पहले बिहार में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार का साथ छूटा और राजद सत्ता से अलग हुआ। इसके बाद हुए 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में उसे करारी हार का सामना करना पडा।

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रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान

इसी तरह बिहार की राजनीति में केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान एक बडा नाम है। वह 2014 से एनडीए का हिस्सा बने हुए है लेकिन खराब स्वस्थ्य के चलते हाल ही में उन्होंने पार्टी की कमान अपने बेटे चिराग पासवान को सौपी है। लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी की कमान संभालते ही चिराग पासवान अपने नए तेवर में आ गए हैं। उन्होंने पार्टी को विस्तार देते हुए कहा कि झारखंड ही नहीं, बल्कि लोजपा दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ेगी। इसके बाद से एनडीए में भाजपा और लोजपा के बीच दरार बढती नजर आ रही है।

वहीं राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष कहने को तो चौ अजित सिंह हैं पर सारा काम पार्टी उपाध्यक्ष और उनके बेटे जयन्त चौधरी ही देख रहे हैं। पार्टी का हाल यह है कि न तो लोकसभा उनका कोई सदस्य है और न विधानसभा में कोई सदस्य है। स्व चौ चरण सिंह की परम्परागत छपरौली सीट से रालोद का एकमात्र विधायक महेन्द्र रमाला अब भाजपा में है।

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