×

Tulsidas Jayanti 2023: भक्तिधारा के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास

Tulsidas Jayanti 2023: जन्म के समय तुलसीदास रोए नहीं थे अपितु उनके मुंह से राम शब्द निकला था, जन्म के समय ही उनके मुख में 32 दांत थे।

Mrityunjay Dixit
Published on: 23 Aug 2023 1:57 PM IST
Tulsidas Jayanti 2023: भक्तिधारा के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास
X
Goswami Tulsidas (photo: social media)

Tulsidas Jayanti 2023: हिंदी साहित्य के महान कवि संत तुलसीदास का जन्म संवत् 1554 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे व माता का नाम हुलसी था। जन्म के समय तुलसीदास रोए नहीं थे अपितु उनके मुंह से राम शब्द निकला था, जन्म के समय ही उनके मुख में 32 दांत थे। ऐसे अद्भुत बालक को देखकर माता- पिता बहुत चिंतित हो गये । माता अपने बालक को अनिष्ट की आशंका से दासी के साथ ससुराल भेज आयीं और स्वयं चल बसीं। फिर पांच वर्ष की अवस्था तक दासी ने ही उनका पालन पोषण किया तथा उसी पांचवें वर्ष वह भी चल बसीं। अब यह बालक पूरी तरह से अनाथ हो गया। इस अनाथ बालक पर संतश्री नरहरिनन्द जी की दृष्टिपड़ी उन्होने बालक का नाम रामबोला रखा और अयोध्या आकर उसकी शिक्षा दीक्षा की व्यवस्था की। बालक बचपन से ही प्रखर बुद्धि का था। गुरुकुल में उसको हर पाठ बड़ी शीघ्रता से याद हो जाता था। नरहरि जी ने बालक को राममंत्र की दीक्षा दी और रामकथा सुनाई।

यहां से बालक रामबोला की दिशा बदल गयी और वे काशी चले गये। वहां पर 15 वर्ष तक वेद वेदांग का अध्ययन किया।कहा जाता है कि विवाह के पश्चात पत्नी के धिक्कारने के बाद वे प्रयाग वापस आ गये और गृहस्थ जीवन का त्याग करके साधु वेश धारण कर लिया। फिर काशी में मानसरोवर के पास उन्हें काकभुशुण्डि जी के दर्शन हुए और वे काशी में ही रामकथा कहने लगे।वहां उन्हे एक दिन एक प्रेत मिला जिसने उन्हें हनुमान जी का पता बताया, हनुमान जी से मिलकर तुलसीदास जी ने उनसे श्री रघुनाथ जी का दर्शन कराने की प्रार्थना की। हनुमान जी ने उनसे कहा कि तुम्हें चित्रकूट में श्री रघुनाथ जी के दर्शन होंगे।

तब तुलसीदास चित्रकूट पहुंच गये। एक दिन वे प्रदक्षिणा करने निकले थे कि जहां उन्हें भगवान श्रीराम के दर्शन हुए। संवत् 1607 की मौनी अमावस्या बुधवार के दिन उनके सामने भगवान श्री राम प्रकट हुए।उन्होंने बालक रूप में तुलसीदास जी से कहा कि बाबा हमें चंदन दे दो हनुमान जी ने सोचा कि कहीं ये इस बार फिर धोखा न खा जायें। तब हनुमान जी ने तोते के रूप में उन्हें एक दोहा सुनाया-

चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर। तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत रघुबीर।।

तब भगवान ने अपने हाथ से चंदन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अंतर्धान हो गये।

अयोध्या से काशी चले आये

संवत् 1628 में हनुमान जी की आज्ञा से अयोध्या की ओर चल पड़े। उन दिनों प्रयाग में माघ मेला था। पर्व के छ दिन बाद उन्हें एक वटवृक्ष के नीचे भारद्वाज और याज्ञवल्क्य जी के दर्शन हुए। फिर वह काशी चले आये और एक ब्राह्मण के घर पर निवास किया। वहां उनके अंदर कवित्व शक्ति का स्फुरण हुआ और वे संस्कृत में रचना करने लग गये परंतु दिन में वे जितने पद्य रचते रात्रि में वे सभी लुप्त हो जाते थे। यह घटना प्रतिदिन घट रही थी । आठवें दिन भगवान शंकर ने उन्हें स्वप्न में आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो। तब वे नींद से जाग उठे और उनके समक्ष शिव और पार्वती प्रकट हो गये। शिव जी ने तुलसी से कहा कि, “तुम अयोध्या में जाकर रहो और हिंदी में काव्य रचना करो।मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता सामवेद के समान फलवती होगी।“ हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। इतना कहकर वे दोनों अंतर्धान हो गये। तुलसी उनकी आज्ञा का पालन करके अयोध्या आ गये।संवत् 1631 में तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की और दो वर्ष सात महीने 26 दिन में ग्रंथ की रचना पूरी कर ली। उनके रामचरितमानस को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 46वां स्थान प्राप्त है। इसके कुछ समय बाद तुलसीदास अस्सी घाट पर आकर रहने लगे । तब तक रामचरितमानस की लोकप्रियता चारों ओर फैलने लग गयी थी। अस्सी घाट पर उन्होनें विनय पत्रिका की रचना की। इसके अलावा उन्होंने रामलला नछहू ,वैराग्य संदीपनी, रामाज्ञा प्रश्नावली, जानकी मंगल, सतसई, पार्वती मंगल, गीतावली, बरवै रामायण, दोहावली और कवितावली की भी रचना की किंतु सर्वाधिक लोकप्रिय महाकाव्य रामचरित मानस ही बना। यह अभी भी उसी प्रकार से लोकप्रिय है जैसा कि प्रारंभ में हुआ था।

हिंदी साहित्य में महाकवि तुलसीदास का युग सदा अमर रहेगा। वे भक्त कवि शिरोमणि थे। तुलसी ने लोकसंग्रह के लिए सगुण उपासना का मार्ग चुना राम भक्ति के निरूपण को अपने साहित्य का उद्देश्य बनाया। तुलसीदास का भक्तिमार्ग वेदशास्त्र पर आधारित है।कवि के रूप में उन्होने अपने साहित्य में श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वेदन, दास्य ,साख्य और आत्मनिवेदन इन सभी पक्षों का प्रतिपादन बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया है। वस्तुतः तुलसीदास जी एक उच्चकोटि के कवि और भक्त थे तथा उनका हृदय भक्ति के पवित्रतम भावों से परिपूर्ण था।

संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे

तुलसी का अपने साहित्य में भाषा और भावों पर पूर्ण अधिकार था। वे संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। लोकहित की भावना से प्रेरित होकर उन्होंने जनभाषाओं को ही अपने साहित्य का माध्यम बनाया। उन्होने ब्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं में साहित्य की रचना की। जनता में प्रचलित सोहर, बहु गीत, चाचर, बेली, बसंत आदि रागों में भी राम कथा लिखी।गोस्वामी जी के साहित्य में जीवन की सभी परिस्थितियों का वर्णन है। उन्होंने प्रत्येक काव्य में मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति की है।वे राम के अनन्य भक्त हैं।उन्हें केवल राम पर ही विश्वास है। राम पर पूर्ण विश्वास करते हुए उन्होने उनके उस मंगलकारी रूप को समाज के सामने प्रस्तुत किया है जो सम्पूर्ण जीवन को विपरीत धाराओं और प्रवाहों के बीच संगति प्रदान कर उसे अग्रसर करने में सहायक है।वास्तव में तुलसी प्रणीत रामचरित मानस भारतीय समाज को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व को सत्यम शिवम सुंदरम से पूर्ण सर्वमंगल के लक्ष्य की ओर अग्रसर करने में समर्थ है। तुलसीदास ने आदर्शवाद पर भी बहुत सारी बातें लिखी हैं।

हनुमान भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी -तुलसीदास जी का रामभक्त हनुमान जी को जन- जन तक पहुंचाने में अप्रतिम योगदान रहा है। आज संपूर्ण भारत में हनमान मंदिर गढ़ी और अखाड़ों का संपूर्ण भारत में विस्तार यदि किसी संत के कारण संभव हुआ है तो वह गोस्वामी तुलसीदास जी ही हैं।गोस्वामी जी द्वारा स्थापित हनमान मंदिरों के साथ व्यायामशालाएं भी हैं।मान्यता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने काशी में आठ हनुमान मंदिरों की स्थापना की थी। जिसमें संकट मोचन, हनुमान फाटक और हनुमानघाट के हनुमान जी भी हैं। हनुमान घाट के हनुमान जी बहुत बड़े हनुमान जी कहे जाते हैं।

हनुमान जी को जनदेवता के रूप में प्रस्तुत करने में भी गोस्वामी तुलसीदास जी का बड़ा योगदान रहा है।

भगवान श्रीराम की पूजा और आदर्श प्रतिष्ठापक गोस्वामी जी को उन से मिलवाने वाले साधनों में हनुमान जी का स्थान अत्यंत महत्व का है।गोस्वामी जी को श्रीराम का प्रत्यक्ष दर्शन करवाने में हनुमान जी की सहायता सर्वोपरि थी अतः तुलसीदास जी ने लोकहित के लिये जनदेवता हनुमान जी की पूजा मंदिर स्थापना और साथ ही साथ व्यायामशालाओं का कार्यक्रम जोड़कर एक नयी चेतना उत्पन्न की।

घर -घर हनुमान जी की पूजा बड़े भक्तिभाव के साथ होती है

तुलसीदास जी के साहित्य के कारण ही आज घर -घर हनुमान जी की पूजा बड़े भक्तिभाव के साथ की जा रही है। गोस्वमी तुलसीदा जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा, हनुमान बाहुक, हनुमानाष्टक सहित सभी ग्रंथों से सनातन हिंदू समाज के जीवन से संबंधित सभी दैनिक कष्ट कट जाते हैं। तुलसीदास जी हिंदू सनातन समाज के लिए बहुत ही अदभुत कार्य कर गये गोस्वामी तुलसीदास जी संसार की समस्त समस्याओं का समाधान हनुमान जी की पूजा में बता गये हैं।

हनुमान चालीसा- गोस्वामी तुलसीदास जी ने ही हनुमान चालीसा की रचना की और वह रचना ऐसे समय की गयी जब संपूर्ण भारत मुगलों के अत्याचार से कराह रहा था। गोस्वामी तुलसीदास जी के कई चमत्कार उस समय घटित हो रहे थे और आम जनमानस उसे अनुभव भी कर रहा था। अकबर के मंत्री टोडरमल और रहीम ने अकबर तक तुलसीदास के चमत्कारों को पहुंचाया।अकबर ने तुलसीदास को दरबार में हाजिर होने के लिए कहा किंतु उस समय तुलसीदास जी साहित्य रचना में व्यस्त थे और उन्होंने अकबर के आमंत्रण को ठुकरा दिया। अकबर ने तुलसीदास जी को बलपूर्वक दरबार में बुलाया और चमत्कार दिखाने के लिए कहा। तुलसीदास जी से नम्रतापूर्वक चमत्कार दिखाने से मना कर दिया जिससे नाराज होकर अकबर ने उन्हें सीकरी की जेल में बंद कर दिया।

तुलसीदास जी ने अकबर के सामने झुकने से साफ मना कर दिया और जेल में ही उन्होंने चालीस दोहों की रचना कर डाली और चालीस दिनों तक उनका अनुष्ठान किया। अनुष्ठान संपन्न होते ही सीकरी जेल में बंदरों का उत्पात प्रारम्भ हो गया और पूरे शहर में तबाही मच गई। मुगल सैनिक वानर सेना का पराक्रम देखते रहे और कुछ कर नहीं सके। अंततः अकबर को तुलसीदास जी को रिहा करने का आदेश देना ही पड़ गया। आज यही हनुमान चालीसा सनातन हिंदू समाज के सभी कष्टों को हर रही है।

हनुमान बाहुक - एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी बहुत बीमार हो गये थे उनके शरीर के अंगों में हर प्रकार के उपचार के बाद भी पीड़ा बढ़ती ही जा रही थी। तब असहनीय कष्टों से हताश होकर उसकी निवृत्ति के लिये उन्होंने हनुमान जी की वंदना प्रारम्भ की।। हनुमान जी कृपा से उनकी व्याधि दूर हो गयी। फिर वही वंदना जो 44 पद्यों की थी हनुमान बाहुक के नाम से लोकप्रिय हो गयी ।हनुमान बाहुक का पाठ भी आज घर- घर में किया जा रहा है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने आज हनुमान जी के माध्यम से ही भगवान श्रीराम व उनके समस्त परिवार के आदर्श को हिंदू समाज में पहुंचाने का पवित्र कार्य किया जिससे आज भी हिंदू समाज के कष्टों के निवारण की राह निकल रही है।

Mrityunjay Dixit

Mrityunjay Dixit

Next Story