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उत्तराखंड की पहाड़ियो में तबाही का मंजर, बर्फीले तूफान ने केदारनाथ त्रासदी दोहराई?

चमौली में हुई त्रासदी क्या 2013 के केदारनाथ विभीषिका की पुनरावृत्ति है? इस पर चेतावनी व सावधानी जरूरी है क्योकि इसकी पुनरावृत्ति अब जल्दी-जल्दी होने की संभावना है।

Shivani Awasthi
Published on: 7 Feb 2021 11:17 PM IST
उत्तराखंड की पहाड़ियो में तबाही का मंजर, बर्फीले तूफान ने केदारनाथ त्रासदी दोहराई?
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डॉ0 भरत राज सिंह

डॉ0 भरत राज सिंह

उत्तराखंड के चमौली जिले के जोशीमठ के ग्लेशियर की भारी चट्टानो के टूटने से ऋषि गंगा परियोजना का देवडी बांध आज सुबह 10 बजे टूट गया तथा रेडीगांव की नदी में प्रलयकारी सैलाब ने तबाही का मंजर पैदा कर दिया । ग्लैशियर तूफान ने अपने साथ भारी पानी, चट्टानो व मिट्टी के सैलाब से देवडी बांध परियोजना के साथ-साथ तमाम गावो व जन-जीवन को भी क्षति पहुंचा दिया है ।

बांध में 150 से अधिक कारीगर / मजदूर बह गये या तो सुरंग में फसे हैं। आस-पास के गांवो के बह जाने से लोगो व जानवरो के लापता होने की भी खबर मिल रही है । अभी तक 16 लोगो को बचा लिये जाने व 10-लोगो के मरने की सूचना भी मिल रही है । इसका वेग जोशीमठ में भीषण तवाही के साथ देव प्रयाग, नंद्प्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग तक 8 बजे सायतक पहुंच चुकी है और आगे ऋषिकेश व हरिद्वार तक 9:00 बजे साय पहुचने के आसार है ।

आइये इसका 2013 में मेरे द्वारा किये गये विश्लेषण से पुनः मिलान कर भविष्य के लिये चेतावनी व सावधानी के रूप में प्रशासन तैयार रहे क्योकि इसकी पुनरावृत्ति अब-आगे जल्दी-जल्दी होने नकारा नही जा सकता है ।

यह तबाही का मंजर पुनः क्यो आया इसके सुरक्षा के क्या उपाय हैं ?

आइये जाने कि क्या यह 2013 के केदारनाथ विभीषिका की पुनरावृत्ति है, विचार करे । आज हम जानते हैं कि सम्पूर्ण विश्व में, वैश्विक तापमान में बढोत्तरी ग्रीन हाउस गैस के बढने से निरंतर हो रही है और 1.58 डिग्री सेंटीग्रेड से बढकर 3.0 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक हो गया है । आर्कटिक वर्फीले समुद्र का ग्लेशियर 2012 तक 30% पिघल गया था जो अब लगभग 60% पिघला हुआ पाया जा रहा है और लगभग 60 ट्रिलियनटन ग्लेशियर टूट चुका है।

Uttrakhand Flood Glacier Burst 1266 glacial lakes Tiking Time Bomb Threaten Major Catastrophe

• बर्फ में जमे जीवास्म भी बाहर आ रहे हैं जिनके सूक्षम अणुओ के बारे में औषधि विज्ञान को कोई जानकारी नही है और अभी पूरी दुनिया उससे भी उबर नही पाई है ।

• चूकि ग्लेशियर का तापमान उत्तरी ध्रुव पर लगभग़ (-) 70-80 डिग्री सेंटीग्रेड तक और दक्षिणी ध्रुव पर (-) 40-50 डिग्री सेंटीग्रेड तक है । वैश्विक तापमान से इसके पिघलने मैं तेजी आ चुकी है। एक सामान्य प्रक्रिया है कि पहाडॉ पर पडी ग्लेशियर का तापमान वर्फवारी से पडने वाली वर्फ से अधिक हो गयी है और अत्याधिक वर्फवारी से जिसका तापमान ग्लेशियर की वर्फ से कम होता है, उससे चिपकती नही । इससे अवलांच के आने की सम्भावना बढ जाती है और वह बर्फीले तूफान में बदल जाता है ।

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उपरोक्त स्थिति, 2013 में भी आयी थी जिसको लेख द्वारा मैने अपने 2012 के शोध पत्र को उजागर किया था । यही स्थिति पुनः उत्तराखंड के जोशीमठ के तपोवन परियोजना में भी तवाही के रूप में आया । इसमेन मैंने अपने अद्ध्यन में यह भी बताया था कि केदारनाथ विभीषिका का कारण वैश्विक तापमान की वृद्धि से ग्लेशियर में दरारे पड जाना और प्रथम वारिश के समय ग्लेशियर की दरारे के बढ जाने से टूटने की सम्भावाना से नकारा नही जा सकता है । यही स्थिति अभी भी भीषण वर्फवारी के बाद वारिश होने से हुयी है ।

UTTRAKHAND CHAR DHAM

अतः हमें उत्तराखंड अथवा अन्य पहाडी इलाको में जहाँ ग्लेशियर अधिक हैं, हमें बारिश के मौसम शुरू होने अथवा वर्फवारी अधिक पडने पर सचेत होना पडेगा और विभीषिका के वचाव की तैयारी पहले करना व विशेष सावधानी रखने की नितांत आवाश्यकता होगी ।

(लेख स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेस, लखनऊ के महानिदेशक (तकनीकी) डॉ0 भरत राज सिंह के निजी विचारो पर है।)

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