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कोरोना के सामने दुनिया असहाय, क्या चमत्कार होगा?

कोरोना के खिलाफ लगता है पूरी दुनिया हारी हुईं जंग लड़ रही है। दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका जहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जिनकी बेबसी उनके इस व्यक्तव्य में साफ झलकती है, जब उन्होंने अपने एक राष्ट्रीय संबोधन में कहा,"लॉक डाउन पूरे एक महीने का है।

Vidushi Mishra
Published on: 10 April 2020 11:06 AM GMT
कोरोना के सामने दुनिया असहाय, क्या चमत्कार होगा?
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कोरोना के सामने दुनिया असहाय, क्या चमत्कार होगा?

मदन मोहन शुक्ला

नई दिल्ली। कोरोना के खिलाफ लगता है पूरी दुनिया हारी हुईं जंग लड़ रही है। दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका जहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जिनकी बेबसी उनके इस व्यक्तव्य में साफ झलकती है, जब उन्होंने अपने एक राष्ट्रीय संबोधन में कहा,"लॉक डाउन पूरे एक महीने का है। हम कुछ नहीं कह सकते इसका क्या परिणाम होगा। हम एक ऐसी गहरी लंबी सुरंग में जा रहे हैं जिसके छोर का हमें पता नहीं, हमे यह भी नहीं पता वहां रोशनी है भी कि नहीं। यह जंग एक ऐसे दुश्मन से है जिसको हम देख नहीं सकते ।वो बिना किसी प्रतिरोध के मौत का तांडव खेल रहा है। मानव जाति को अपना निवाला बना रहा है।"

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मौत दुनिया के हर घर

क्या हम वाकई में आज प्राकृतिक प्रकोप के सामने घुटने के बल आ गए हैं? हम तो कितने बलशाली, हर तरह से तकनीकी तौर पर सुसज्जित, अपने मनमर्जी के मालिक,लेकिन यह आज क्या हो गया? मौत दुनिया के हर घर पर दस्तक दे रही, दुनिया इसी खौफ़ में जी रही है अगला शिकार हम होंगे।

दुष्यंत कुमार का एक शेर यहां सटीक बैठता है,"मौत ने आ धर दबोचा एक खूंखार भेड़िये की तरह,ज़िंदगी ने जब छुआ तब फासला रख कर छुआ ।"हम बस किसी दैवीय चमत्कार की आस लगाए हैं।

प्रकृति अगर यूं देखा जाए उदार है।यह अपनी उदारता से मानव को ही नही ,अपितु चराचर जगत पर उपस्थित तमाम जीवों को पल्लवित और पोषित करती है।अतः उसके अतुल्य प्रेम की मानवीय मर्यादा आवश्यक है।

प्रकृति के नियमों का उल्लंघन

इसके प्रति कृतज्ञ भाव और मित्रवत संबंध साधकर ही हम जीवन निर्वाह कर सकते हैं।चूंकि प्रकृति सर्वोच्च और सर्वशक्तिमान है।उसका विरोध विनाश का कारण बनता है। प्रकृति के नियमों का उल्लंघन का मतलब या यूं कहें इसकी कीमत ,जीवन देकर चुकानी पड़ती है।

मानवीय आपराधिक गतिविधियों को प्रकृति कुछ समय के लिए सहन करती है पर एक समय के बाद उसका सब्र जबाब दे देता है, प्रकोप और प्रलय के माध्यम से मानव को संभलने का संकेत देती है लेकिन मानव का अहंकार प्रकृति को अधीन करने पर अड़ा रहता है।फिर जो होता है वो आज दुनिया के सामने है।

संक्रमण के डर से सड़क पर फेंक दिए

जो दुनिया से डरावनी रिपोर्ट आ रही हैं वो यही इंगित कर रही है कि मानव जाति के एक बड़ें हिस्से का अस्तित्व खतरे में है। लैटिन अमेरिका के एक देश इक्वेडोर का गुआएक्विल में मुर्दा घर भर गए हैं,लोग मजबूरन अपने प्रियजनों के मृत शरीर को घर पर रखे हैं। यहाँ तक कि कुछ मृत शरीर लोगों ने संक्रमण के डर से सड़क पर फेंक दिए हैं।

भारत में अगर अमेरिका वाली स्थिति होती है तो मृत्यु का आंकड़ा क्या होगा, यह विचलित करने वाला है। क्योंकि जो संसाधन अमेरिका के पास हैं उसका एक तिहाई भी हमारे पास नहीं हैं। और तो और वो भी पूरी तरह से नाकाफ़ी साबित हो रहा है ।न्यूयॉर्क में इस समय 60,000 सामान्य बेड और 11,000 आई सी यू बेड की कमी है।

न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी में महामारी के प्रकोप का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि जिनका टेस्ट किया जा रहा है,उनमे 35%टेस्ट पॉजिटिव आ रहे हैं।लुसियाना में 26%,मिशिगन,कनेक्टिकट,इंडिआना,जॉर्जिया व इलिनॉयस में यह आंकड़ा 15% है।

जहां तक भारत का सवाल है,यहां अभी तक केवल उन मरीजों का टेस्ट किया गया ,जिनमे कोरोना के लक्षण थे।उनमें केवल 3% संदिग्ध मरीजों में ही कोरोना के वायरस पाए गए।

फिलहाल हम अब भी अपने को कम्फर्ट जोन में नही रख सकते,जिस तरह से केस बढ़ने की रफ़्तार है वो चिंताजनक है लेकिन फिर भी उम्मीद की किरण है,भारत मे कोरोना वायरस में एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण म्यूटेशन रिपोर्ट किया गया है।

इसके कारण कोरोना वायरस कुछ कमज़ोर हो गया है।वर्ष 2016 में पद्मभूषण से सम्मानित और एशिया गेस्ट्रो एन्ट्रोलॉजिस्ट सोसाइटी के अध्यक्ष रहे डॉ डी. नागेश्वर राव ने बताया कि भारत मे कोरोना के जीनोम संरचना में म्युटेशन हुआ है।

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नकारात्मक म्यूटेशन

यह म्युटेशन इस वायरस के एस -प्रोटीन की चिपकने की क्षमता को कम करता है।इसका अर्थ है कि अब कोरोना के स्पाइक इस कदर शक्तिशाली नहीं रहे जैसा कि चीन में थे।इससे इतर इटली में नकारात्मक म्यूटेशन हुआ जिसका घातक असर हुआ।

फ़िलहाल मानव जाति के लिए इससे निपटने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है,इसका असर व्यक्ति के मनोमस्तिष्क पर पड़ रहा है ,मौत का भय गहरा गया है साथ-साथ नौकरी जाने का डर भी सता रहा है।जिसका असर लोगों के पारिवारिक जीवन पर पड़ रहा है। पूरी दुनिया में पारिवारिक हिंसा के मामलों में वृद्धि आयी है।

कोविड- 19 के बाद दुनिया अवश्य ही एक नए कलेवर में होगी। जब भी कोई आपदा आयी है दुनिया के व्यक्तित्व और आर्थिक परिदृश्य में बदलाव देखा गया है।

आशा है कि नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था अधिक मानवीय होगी। जिसमें शहरी एवं सह-अस्तित्व जैसी अवधारणा महफूज़ हो जाये। साथ ही साथ मनुष्य के व्यवहार में भी बदलाव आएगा।

आशा करता हूँ कि अब वो मानवीय मूल्यों को अहमियत देगा तथा दुनियाई चकाचौंध से अब ज़्यादा अभिभूत न होकर अपनी इच्छाओं, अपेक्षाओं से ऊपर उठकर मानव धर्म को अहमियत देगा।तथा प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए प्रकीर्ति की उदारता को पूरा सम्मान देगा।

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Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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