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कांग्रेस में घमासान: असंतुष्टों के तेवर तल्ख, दूसरा गुट चाहता है कड़ी कार्रवाई
कांग्रेस में पैदा हुए घमासान को थामने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने असंतुष्ट नेता गुलाम नबी आजाद से एक बार फिर फोन पर बातचीत की है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली: कांग्रेस में चुनाव और बदलाव की मांग को लेकर पैदा हुई कलह थमने का नाम नहीं ले रही है। पार्टी में यह मांग उठने लगी है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले नेताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। पार्टी के कई नेता इस पक्ष में हैं की पत्र लगने के मामले में कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि उसका कड़ा संदेश जाए। पत्र लिखने वालों में शामिल गुलाम नबी आजाद और शशि थरूर की घेरेबंदी भी की जा रही है। उधर, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विवाद को शांत करने में जुटे हैं और उन्होंने आजाद से एक बार फिर बातचीत की है।
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कार्रवाई न होने से हौसले बुलंद
पार्टी में विवाद पैदा करने वालों पर कार्रवाई करने की मांग तेज होती जा रही है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि कांग्रेस नेतृत्व के नरम रवैये के कारण असंतुष्ट नेताओं के हौसले बढ़ते जा रहे हैं।
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सब कुछ भूलकर आगे बढ़ने के आग्रह के बावजूद असंतुष्ट नेताओं की ओर से बयानबाजी की जा रही है। इस पर रोक ना लगाने पर पार्टी को काफी नुकसान होगा। इसलिए इस मामले में सख्त कार्रवाई किए जाने की जरूरत है।
Congress (File Photo)
नेतृत्व की संदेश देने की कोशिश
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के दौरान भी असंतुष्टों पर कार्रवाई करने की मांग उठी थी। वैसे बैठक के बाद नेतृत्व की ओर से उठाए गए कदमों से असंतुष्ट नेताओं को संदेश देने की कोशिश जरूर की गई है। लोकसभा के लिए बनाई गई पार्टी की कमेटी में मनीष तिवारी और शशि थरूर को नहीं रखा गया है जबकि राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा के पर कतर दिए गए हैं।
राज्यसभा के लिए बनाई गई समिति में अहमद पटेल, जयराम रमेश और केसी वेणुगोपाल को भी शामिल किया गया है। अभी तक सारे फैसले आजाद और शर्मा ही लिया करते थे।
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जल्द हो सकती है असंतुष्टों की बैठक
सूत्रों के मुताबिक असंतुष्ट नेताओं को इस बात का एहसास हो गया है कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। असंतुष्ट नेता आगे की रणनीति पर मंथन करने के लिए जल्द बैठक करने की योजना बना रहे हैं। पार्टी नेतृत्व के रवैये से असंतुष्ट एक नेता ने कहा कि हम पार्टी के फैसलों का इंतजार कर रहे हैं मगर संतोषजनक कदम न उठाए जाने पर जल्दी ही बैठक करके आगे की रणनीति तय की जाएगी।
आजाद को दिलाई याद
पार्टी में बदलाव की मांग को लेकर चिट्ठी लिखने वाले नेताओं के दावों पर भी सवाल उठ रहे हैं। पार्टी नेताओं ने चिट्ठी लिखने वालों में शामिल गुलाम नबी आजाद को घेरा है। आजाद लगातार इस बात को दोहरा रहे हैं कि पार्टी में अगर चुनाव नहीं कराए गए तो कांग्रेस को 50 साल तक विपक्ष में बैठना होगा।
दूसरी और पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि 2018 में हुए पार्टी के 84वें महाधिवेशन में आजाद ने ही सीडब्ल्यूसी का चुनाव न कराने की वकालत की थी। उनका कहना था कि ऐसा करने से सभी क्षेत्रों को हिस्सेदारी नहीं मिल पाएगी। उनका कहना था कि यह राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी है कि हर क्षेत्र को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
थरूर को बताया गेस्ट आर्टिस्ट
इस बीच केरल से लोकसभा सदस्य और कांग्रेस के चीफ व्हिप के सुरेश ने शशि थरूर पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि थरूर राजनेता नहीं है बल्कि अतिथि की तरह पार्टी में आए हैं और अभी भी पार्टी में गेस्ट कलाकार ही हैं।
उन्होंने कहा कि थरूर को पार्टी की नीतियों को गंभीरता से समझना चाहिए और उसी के हिसाब से व्यवहार करना चाहिए। हालांकि सुरेश के बयान का केरल कांग्रेस के कुछ नेताओं ने विरोध भी किया है।
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राहुल ने फिर की आजाद से बातचीत
कांग्रेस में पैदा हुए घमासान को थामने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने असंतुष्ट नेता गुलाम नबी आजाद से एक बार फिर फोन पर बातचीत की है। उन्होंने आजाद को जल्द ही पार्टी अध्यक्ष व संगठन का चुनाव कराने का आश्वासन दिया है।
राहुल ने आजाद से यह भी कहा कि उन्हें लेकर पार्टी में कोई दुर्भावना नहीं है। दूसरी ओर आजाद ने राहुल से कहा कि मेरा उद्देश्य गांधी परिवार को चुनौती देना या निरादर करना नहीं है। मैं पार्टी को मजबूत करने की कोशिश में जुटा हुआ हूं। राहुल ने कार्यसमिति की बैठक के बाद भी आजाद और सिब्बल से बातचीत की थी।
मुद्दों को उठाना बगावत नहीं
उधर, कांग्रेसी नेता अनंत गाडगिल ने कहा कि किसी भी पार्टी में मुर्दों को उठाने का मतलब विद्रोह या बगावत नहीं होता। उन्होंने कहा कि भाजपा को यह समझना चाहिए कि कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र है। उन्होंने भाजपा नेताओं को चुनौती दी कि अगर उनमें हिम्मत है तो वे अपनी पार्टी के भीतर चीनी अतिक्रमण, आर्थिक और विदेश नीति के मोर्चे पर सरकार की विफलता अन्य मुद्दों को राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने उठाकर दिखाएं।
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