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कांग्रेस में घमासान से विद्रोह जैसे हालात, बुजुर्ग और युवा नेताओं में खिंचीं तलवारें

इन नेताओं का कहना है कि राहुल और प्रियंका के सहायक पार्टी कार्यकर्ताओं को उनसे मिलने तक नहीं देते। अब तो स्थिति इतनी खराब हो चुकी है राहुल और प्रियंका अब सोनिया गांधी की भी बात नहीं सुनते।

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Published on: 1 Aug 2020 5:31 AM GMT
कांग्रेस में घमासान से विद्रोह जैसे हालात, बुजुर्ग और युवा नेताओं में खिंचीं तलवारें
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अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। कांग्रेस में युवा नेताओं और बुजुर्ग नेताओं के बीच सियासी घमासान काफी तेज हो गया है। दोनों खेमों के बीच तलवारें खिंच गई हैं। राहुल समर्थक युवा ब्रिगेड ने कांग्रेस की मौजूदा दुर्दशा के लिए यूपीए दौर के नेताओं पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उधर पुराने नेताओं ने भी जवाबी हमला करते हुए पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल की अगुवाई में मिली करारी हार पर अंगुली उठाई है। दोनों खेमों के बीच सियासी घमासान तेज होने से विद्रोह जैसे हालात बनते दिख रहे हैं।

पुराने नेताओं ने शुक्रवार को एक और बड़ा कदम उठाया और राहुल के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाते हुए पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र भेजा है। इस पत्र में पार्टी के स्थायी अध्यक्ष और अन्य केंद्रीय पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए पारदर्शी तरीके से चुनाव कराने की मांग की गई है।

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राज्यसभा सदस्यों की बैठक से हुई शुरुआत

कांग्रेस के युवा और अनुभवी नेताओं के बीच सियासी घमासान की शुरुआत गुरुवार को राज्यसभा सांसदों की बैठक से हुई। यह बैठक पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से मौजूदा हालात पर चर्चा करने के लिए बुलाई गई थी। इस बैठक में मौजूद राहुल के समर्थक युवा नेताओं ने उन्हें दोबारा पार्टी अध्यक्ष बनाने की मांग की। उनका कहना था कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में सिर्फ राहुल गांधी ही पीएम नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने में सक्षम हैं।

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राहुल को फिर अध्यक्ष बनाने की मांग

राहुल को पार्टी का अध्यक्ष बनाने की मांग करने बालों में पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, राजीव सातव, रिपुन बोरा, पीएल पुनिया और छाया वर्मा शामिल थे। इन नेताओं की दलील थी कि मौजूदा समय में राहुल गांधी ही सरकार से तीखे सवाल करके उसे कठघरे में खड़ा करने का काम कर रहे हैं। सही मायने में वे ही विश्वसनीय विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं।

कुछ सांसदों की वजह से पार्टी को जबर्दस्त नुकसान उठाना पड़ा

राहुल गुट के सांसदों का आरोप है कि यूपीए-2 के दौरान खराब प्रशासन के चलते पार्टी की राजनीतिक स्थिति काफी कमजोर हो गई। उनका कहना था कि वरिष्ठ मंत्री रहे कुछ सांसदों की वजह से पार्टी को जबर्दस्त नुकसान उठाना पड़ा और पार्टी अभी तक उसका खामियाजा भुगत रही है।

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पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराज

राज्यसभा सदस्यों की बैठक में यह मांग उठने के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, पी चिदंबरम आदि ने राहुल की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए। शर्मा ने तो यहां तक कह दिया कि केली वेणुगोपाल और राजीव सातव को राज्यसभा में भेजने का फैसला राहुल गांधी ने किसकी सलाह और किस हैसियत से कर डाला।

केरल से राजनीति करने वाले वेणुगोपाल को हाल में राजस्थान से राज्यसभा में लाया गया है जबकि हवा का रुख सही न होने के कारण 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने वाले सातव को भी राहुल की कृपा से राज्यसभा की सदस्यता मिल गई है।

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पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के सवालों पर सवाल

सिब्बल ने राहुल गांधी के सिर्फ ट्विटर पर सक्रिय रहने और सवाल पूछने की आदत पर हमला बोला। सिब्बल का कहना था कि मुझे नहीं पता कि राहुल गांधी के ये सवाल कौन तैयार करता है और उसे विदेश और रक्षा नीति के संबंध में कितनी जानकारी है। इन सवालों के कारण पार्टी की साख लगातार गिरती जा रही है।

आम के पेड़ पर तरबूज उगाने जैसा

जानकार सूत्रों का कहना है कि पार्टी में छिड़ा घमासान अब विद्रोह जैसे हालात पैदा कर सकता है। पुरानी पीढ़ी के कई बड़े नेता आक्रोश में उबल रहे हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राजीव सातव और केसी वेणुगोपाल जैसे चेहरों के सहारे कांग्रेस मजबूत नहीं होगी। यह आम के पेड़ पर तरबूज उगाने जैसा ही है।

पार्टी के एक सांसद ने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट राहुल के सबसे ज्यादा करीबी थे और उनके जैसे नेता ही पार्टी की पीठ में छुरा भोंक रहे हैं। ऐसे में यदि उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया तो वह पार्टी को कैसे चलाएंगे।

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सोनिया की भी नहीं सुनते राहुल-प्रियंका

बुजुर्ग नेता कई बार राहुल और प्रियंका पर पार्टी को मनमाने तरीके से चलाने का आरोप लगा चुके हैं। इन नेताओं का कहना है कि राहुल और प्रियंका के सहायक पार्टी कार्यकर्ताओं को उनसे मिलने तक नहीं देते। अब तो स्थिति इतनी खराब हो चुकी है राहुल और प्रियंका अब सोनिया गांधी की भी बात नहीं सुनते। ऐसे में पार्टी की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है।

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मनीष तिवारी ने साधा युवाओं पर निशाना

इस बीच यूपीए में मंत्री रह चुके वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने भी वरिष्ठ नेताओं के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि नेतृत्व के असमंजस की स्थिति अब लंबे समय तक स्वीकार नहीं की जा सकती। तिवारी ने राजनीतिक आधार खिसकने के लिए पुरानी पीढ़ी को जिम्मेदार ठहराने के लिए राजीव सातव पर निशाना साधा। उन्होंने पार्टी नेतृत्व को ही सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया।

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सवालों की पड़ताल होना जरूरी

उन्होंने कहा कि इस सवाल की पड़ताल जरूर होनी चाहिए कि क्या 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के लिए यूपीए सरकार जिम्मेदार थी? क्या यूपीए के अंदर ही ऐसी साजिश रची गई थी?

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पार्टी की हार की समीक्षा की मांग

उन्होंने कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी की हार की समीक्षा होनी चाहिए। उन्होंने कहा पिछले 6 वर्षों में यूपीए पर किसी तरह का आरोप नहीं लगाया गया। तो अब आरोप कहां से लगने लगे। तिवारी ने इन सवालों के जरिए राहुल की टीम के सवालों को ध्वस्त करने का संदेश दिया है। उनका कहना है कि यूपीए में भितरघात और साजिश की बात उठाकर आखिर किस पर निशाना साधा जा रहा है।

मनमोहन समेत कई नेताओं ने मौन साधा

राज्यसभा सांसदों की जिस बैठक में युवा नेताओं और वरिष्ठ नेताओं के बीच घमासान छिड़ा, उसमें पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह, पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी, राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल भी मौजूद थे।

हालांकि इन नेताओं ने किसी भी पक्षी का साथ नहीं दिया और वे बैठक के दौरान मौन साधे रहे। यूपीए-2 पर उठे सवालों से मनमोहन सिंह असहज जरूर दिखे मगर उन्होंने इस बाबत अपना पक्ष नहीं रखा।

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