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विधानसभा चुनाव: आसान नहीं पीएम मोदी की राह, 2020 में होंगी ये बड़ी चुनौतियां
झारखंड विधानसभा चुनाव नतीजों में झारखंड की सत्ता बीजेपी के हाथ से निकल चुकी है। यह हालत तब है जब कुछ महीने पहले पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को मई 2019 के लोकसभा चुनावों में बंपर जीत मिली थी।
नई दिल्ली: झारखंड विधानसभा चुनाव नतीजों में झारखंड की सत्ता बीजेपी के हाथ से निकल चुकी है। यह हालत तब है जब कुछ महीने पहले पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को मई 2019 के लोकसभा चुनावों में बंपर जीत मिली थी।
उसके बाद यह तीसरा राज्य है जहां चुनाव हुए। हरियाणा में बीजेपी की वापसी हुई लेकिन उसे जेजेपी के साथ गठबंधन करना पड़ा। दूसरी ओर महाराष्ट्र बीजेपी के हाथ से निकल गया। अब झारखंड में भी सत्ता से बाहर हो गई है।
ऐसे में अभी से सवाल उठने लगे हैं कि 2020 में दिल्ली और बिहार के चुनाव पर इसका क्या असर होगा? क्या बिहार में बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन एक बार फिर से सत्ता पर काबिज होने में कामयाब हो पायेगा?
यही सवाल दिल्ली के चुनाव को लेकर भी है? बीजेपी यहां 20 सालों से सत्ता से बाहर है। ऐसे में क्या इस बार बीजेपी दिल्ली में सरकार बना पायेगी या उसे विपक्ष में ही बैठना पड़ेगा?
क्योंकि यहां उसकी सीधी टक्कर अरविन्द केजरीवाल और उसकी पार्टी (आप) से है। तो आइये जानते है कि 2020 में दिल्ली और बिहार में किस तरह की तस्वीर होगी।
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सबसे पहले शुरुआत दिल्ली विधान सभा चुनाव से
बात करते हैं दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 की, जहां इलेक्शन के लिए तारीखों का ऐलान अभी नहीं हुआ है। हालांकि, माना जा रहा है कि जल्द ही दिल्ली में चुनाव की तारीख घोषित हो सकती है।
जनवरी के अंत या फरवरी के पहले हफ्ते में दिल्ली में चुनाव हो सकते हैं। 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली में साल 2015 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। तब अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने 67 सीटों पर जीत का परचम लहराया था, तो वहीं भाजपा महज तीनों सीटों पर सिमट कर रह गई थी।
ये चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए भी याद ना रखने वाले थे, जहां पार्टी का खाता तक ना खुला था। बीजेपी को पिछले चुनाव में महज तीन सीटों मुस्तफाबाद, रोहिणी और विश्वासनगर विधानसभा पर जीत मिली थी, इसके अलावा 67 सीटों पर अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने कब्जा जमाया था।
फरवरी में हो सकते हैं चुनाव मत प्रतिशत की बात करें तो आम आदमी पार्टी को 54.3 फीसदी वोट मिले थे जबकि भाजपा को 32.3 फीसदी वोट मिले थे। वहीं, कांग्रेस को 9.7 फीसदी वोट मिले थे।
इसके अलावा बसपा को 1.3 फीसदी वोट मिले थे तो इनेलो को 0.6 फीसदी और शिरोमणि अकाली दल 0.5 फीसदी वोट मिले थे। दिल्ली में 0.4 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था।
अरविंद केजरीवाल ने 2020 के चुनाव को लेकर किया ये बड़ा दावा
साल 2020 के चुनाव की बात करें तो अरविंद केजरीवाल अपना रिपोर्ट कार्ड पेश कर चुके हैं और वे दावा कर रहे हैं कि उनकी पार्टी 2015 की तरह ही प्रदर्शन करेगी। जबकि भाजपा विधानसभा चुनावों में वापसी की पूरी कोशिश कर रही है।
दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी के नेतृत्व में पार्टी अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को कड़ी टक्कर देने के लिए रणनीति बनाने में जुटी है।
तीसरी प्रमुख पार्टी कांग्रेस भी 2015 चुनाव में मिली हार को पीछे छोड़कर वापसी की कोशिश में जुटी है। दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा के लिए आगामी चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे।
फरवरी में हो सकते हैं चुनाव
मत प्रतिशत की बात करें तो आम आदमी पार्टी को 54.3 फीसदी वोट मिले थे जबकि भाजपा को 32.3 फीसदी वोट मिले थे। वहीं, कांग्रेस को 9.7 फीसदी वोट मिले थे। इसके अलावा बसपा को 1.3 फीसदी वोट मिले थे तो इनेलो को 0.6 फीसदी और शिरोमणि अकाली दल 0.5 फीसदी वोट मिले थे। दिल्ली में 0.4 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था।
साल 2020 के चुनाव की बात करें तो अरविंद केजरीवाल अपना रिपोर्ट कार्ड पेश कर चुके हैं और वे दावा कर रहे हैं कि उनकी पार्टी 2015 की तरह ही प्रदर्शन करेगी। जबकि भाजपा विधानसभा चुनावों में वापसी की पूरी कोशिश कर रही है।
दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी के नेतृत्व में पार्टी अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को कड़ी टक्कर देने के लिए रणनीति बनाने में जुटी है।
तीसरी प्रमुख पार्टी कांग्रेस भी 2015 चुनाव में मिली हार को पीछे छोड़कर वापसी की कोशिश में जुटी है। दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा के लिए आगामी चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे।
बिहार विधानसभा चुनाव 2020
दिल्ली के बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होंगे जहां जदयू और बीजेपी के गठबंधन वाली सरकार सत्ता में है। पिछले चुनावों की बात करें तो एनडीए के सामने जदयू-राजद और कांग्रेस ने मिलकर (महागठबंधन) चुनाव लड़ा था।
इस चुनाव से पहले, एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने एक होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया था। विधानसभा चुनावों में लालू प्रसाद यादव की राजद 80 सीटों पर जीत दर्ज कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी।
वहीं, 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने 71 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि भाजपा के खाते में 53 सीटें आई थीं। वहीं, कांग्रेस पार्टी ने 27 सीटों पर कब्जा जमाया था।
इसके अलावा आरएलएसपी ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जो इस वक्त राजद के खेमे में है। वहीं, राम विलास पासवान की पार्टी लोजपा को 2, सीपीआई (एम-एल) को 3 और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को एक और 4 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत हुई थी। लेकिन इस महागठबंधन सरकार को 2017 में उस वक्त झटका लगा
जब सीएम नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव पर लग रहे आरोपों के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस मौके को बीजेपी ने तुरंत भुनाया और नीतीश कुमार को समर्थन दे दिया। इस्तीफा देने के 24 घंटे के भीतर ही नीतीश कुमार दोबारा मुख्यमंत्री बन चुके थे और बिहार में डेढ़ सालों तक विपक्ष में रही भारतीय जनता पार्टी अब सत्ता में भागीदार बन चुकी थी।
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दिल्ली व बिहार पर क्या होगा असर
भाजपा के सामने अगले साल की शुरुआत में दिल्ली और आखिर में बिहार के सबसे अहम चुनाव हैं। दिल्ली में वह बीस साल से सत्ता से बाहर है। लोकसभा चुनाव की बात छोड़ दें तो वह यहां पर नगर निगम का पार्टी बन कर रह गई है। ऐसे में उसके लिए आम आदमी पार्टी से मुकाबले के लिए नेतृत्व न रणनीति दोनों पर ज्यादा काम करना होगा।
वहीं बिहार में जद (यू) अब उसके साथ है। दोनों का गठबंधन राज्य में जीत की गांरटी माना जाता है, लेकिन चुनाव तक दोनों में सब ठीक ठाक रहे यह भी जरूरी है। बिहार में उपचुनावों के नतीजों ने यह साफ किया है कि इस बार भाजपा व जद (यू) के गठबंधन को भी कड़ी चुनौती मिल सकती है।
लोकसभा व विधानसभा की पटरी अलग अलग
लोकसभा चुनावों में भारी सफलता के बाद भाजपा को उम्मीद थी विधानसभा चुनावों में भी उसे जनता का साथ मिलेगा, लेकिन नतीजे उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहे। हरियाणा में वह पहले से घटी, हालांकि बाद में गठबंधन के सहारे सरकार बनाने में सफल रही।
महाराष्ट्र में वह गठबंधन के साथ बहुमत हासिल करने में सफल रही, लेकिन सरकार बनने के पहले ही गठबंधन टूट गया। अब झारखंड में तो वह सीधे तौर पर चुनाव हार ही गई।
इससे साफ है कि लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के चेहरे का कोई प्रभावी विकल्प नहीं था, लेकिन राज्यों के उसके चेहरे अपनी इस तरह की छवि बनाने में सफल नहीं रहे हैं।
कब-कब भाजपा कहां जीती-हारी चुनाव
2014: भाजपा ने महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाई।
2015: भाजपा दिल्ली और बिहार दोनों राज्यों के चुनाव हार गई। हालांकि, बिहार में उस वक्त नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ चुनाव लड़ा था, लेकिन बाद में समर्थन वापस लेकर इस्तीफा दे दिया और फिर भाजपा के साथ सरकार बना ली।
2016: भाजपा ने असम में चुनाव जीता और पश्चिम बंगाल, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु में भाजपा की हार हुई।
2017: भाजपा ने गोवा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में सरकार बनाई, जबकि पंजाब का चुनाव भाजपा हार गई। बता दें कि गुजरात चुनाव में भाजपा को भारी एंटी-इनकम्बेंसी झेलनी पड़ी। 2012 के चुनाव की तुलना में भाजपा को 2017 में 16 सीटें कम मिलीं और 182 सीटों वाली इस विधानसभा में उसे महज 99 सीटों से संतोष करना पड़ा।
2018: भाजपा ने पहली बार त्रिपुरा में चुनाव जीता. बाकी सभी राज्यों में भाजपा हार गई. हालांकि, कर्नाटक में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर जरूर उभरी, लेकिन सरकार नहीं बना सकी और कांग्रेस-जेडीएस ने मिलकर सरकार बना ली।
2019: भाजपा हरियाणा में सरकार बनाने में सफल तो हुई, लेकिन बमुश्किल. हरियाणा में भाजपा को बहुमत नहीं मिला था तो उसे जेजेपी के साथ गठबंधन कर के सरकार बनानी पड़ी।
इसके अलावा महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था और जीती भी, लेकिन शिवसेना ने मुख्यंत्री पद ना मिलने पर भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन के साथ सरकार बना ली। वहीं ओडिशा, आंध्र प्रदेश और झारखंड में भाजपा चुनाव हार गई।
2020 होगा चुनौतियों भरा
एक बार फिर से भाजपा को 2020 में दिल्ली और बिहार में विधानसभा चुनावों का सामना करना है। मौजूदा समय में दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है।
बता दें कि 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से महज 3 सीटें जीती थीं। वहीं दूसरी ओर, बिहार में भी भाजपा को जनादेश नहीं मिला था, लेकिन नीतीश कुमार के साथ मिलकर भाजपा ने सरकार बना ली थी। इस बार देखना दिलचस्प रहेगा कि भाजपा को बिहार से कैसी प्रतिक्रिया मिलती है।
इसके बाद आने वाले सालों में असम, गोवा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और त्रिपुरा में चुनाव होने हैं और इन सब में भाजपा ही सत्ता मे है। भाजपा के लिए इन राज्यों में सत्ता बचाए रखना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि ये चुनाव भी भाजपा के लिए उतने ही कठिन होंगे, जितने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनाव थे।
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