क्या देश ने गठबंधन की राजनीति को नकार दिया है?

लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों ने देश् के राजनैतिक दलों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। जनता जनार्दन का मन टटोल पाने में नाकामयाब रहे दल अब सकते में है। 23 मई को नतीजों के आने के बाद लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के कारणों के तह में जाने के लिए इन दलों को कोई सिरा नहीं मिल रहा है कि वो किस किनारे से मूल्यांकन शुरू करें।

Anoop Ojha
Published on: 25 May 2019 12:29 PM GMT
क्या देश ने गठबंधन की राजनीति को नकार दिया है?
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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों ने देश् के राजनैतिक दलों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। जनता जनार्दन का मन टटोल पाने में नाकामयाब रहे दल अब सकते में है। 23 मई को नतीजों के आने के बाद लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के कारणों के तह में जाने के लिए इन दलों को कोई सिरा नहीं मिल रहा है कि वो किस किनारे से मूल्यांकन शुरू करें।

2014 से सत्ता के सिंघासन पर आरूढ़ पीएम नरेंद्र मोदी के प्रभाव का असर 2019 चुनावों में बाकायदा उतना ही बना रहा जितना कि मोदी अपने चुनावी रैलियों में दावा करते रहे।दरअसल आम चुनाव 2014 के नतीजों के बाद से ही देश में मोदी फीवर चलने लगा। इस बात आशंकित होकर विपक्ष ने उस रणनीति पर काम करना शुरू किया जिसमें मोदी प्रभाव को कम करने की नीति सर्वोच्च होती थी। इसी कदम को आगे बढ़ाते हुए विपक्ष ने एनडीए के खिलाफ उनके ही जैसा मजबूत मोर्चा बनाने की कवायद शुरू कर दी।

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उत्तर से लेकर दक्षिण तक एनडीए विरोधी एक होने लगे। पहले तो विपक्ष तीसरा मोर्चा बनाने की पूरी पुरजोर कोशिश में जुट गया बात बनते विगड़ते तीसरा मोर्चा 2019 चुनावों में आकार नहीं ले पाया। मोर्चा न बनते देख ​मोदी विरोधी दल अलग अलग राज्यों में मिलजुल कर लड़ने तरकीब में जुट गए। एनडीए से मोर्चा लेने के लिए यूपीए ने भी अपनी चाल तेज कर दी। यूपीए में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सहयोगियों से तलमेल बिठाने के लिए अलग अलग राज्यों में सहयोगी दलों से गठबंधन करने लगी।

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एनडीए में शामिल दल

भारतीय जनता पार्टी

शिवसेना

जनता दल यूनाइटेड

लोक जनशक्ति पार्टी

अकाली दल

अपना दल(एस)

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी

नागा पीपल्स फ्रंट

नेशनल पीपल्स पार्टी

यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट

सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट

महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया

ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन

स्वाभिमानी पक्ष

पट्टली मक्कल कटची

ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस

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बीजेपी के साथ प्रमुख जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू)के बीच सीटों का बंटवारा हुआ। बिहार राज्य में ही उनके एक और बड़े साथी एलजेपी (लोक जनशक्ती पार्टी) रही। पंजाब में अकाली दल भी मोदी सरकार के साथ खड़ा रहा।इसके अलावा नॉर्थ ईस्ट पर नजर डालें तो वहां बीजेपी के साथ नागा पीपल्स फ्रंट, नेशनल पीपल्स पार्टी, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट जैसे साथी हैं। दक्षिण भारत में भी कई छोटे-छोटे दलों के साथ बीजेपी ने हाथ मिला रखा है।इसी तरह उतरप्रदेश में समाजवादी पाटी और बहुजन समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन हुआ। दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन नहीं ​हो पाया।

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यूपीए के बड़े साथी

कांग्रेस,राष्ट्रीय जनता दल,राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी,हिंदुस्तान आवाम मोर्चा,लोकतांत्रिक जनता दल,नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी,जनता दल (सेक्यूलर),लेफ्ट पार्टियां,तेलुगु देशम पार्टी,डीएमके,केरल कांग्रेस (जेकब)

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दरअसल जनवरी 2019 में तीन बड़े कार्यक्रम हुए। सबसे पहले समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए महागठबंधन करने की घोषणा की।ठीक 25 साल बाद, एकबार फिर एसपी संरक्षक के बेटे अखिलेश यादव और बीएसपी चीफ मायावती एक साथ आए ।साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 71 और उसके सहयोगी अपना दल ने 2 सीटें जीतीं थीं।

वहीं, एसपी के खाते में पांच और कांग्रेस के खाते में दो सीटें ही आई थीं, जबकि इन चुनावों में बीएसपी के हाथ खाली रहे थे। वोट प्रतिशत को देखने से पता चलता है कि 2014 में बीजेपी और अपना दल का वोट शेयर (43.63%) एसपी-बीएसपी के संयुक्त वोट शेयर (42.12%) से अधिक था। हालांकि हर सीट के सूक्ष्म विश्लेषण करने पर पता चलता है कि एसपी और बीएसपी ने मिलकर 41 सीटों पर बीजेपी से ज्यादा वोट प्राप्त किए थे।

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चुनावों में बने गठबंधन को लेकर बीजेपी ने महागठबंधन की सरकार बनने की उम्मीदों का मजाक उड़ाया। 23 मई को 17वीं लोकसभा के लिए हुये मतदान का ​परिणाम आने लगा तो सारे विश्लेषक एक बोल पड़े कि गठबंधन का जादू फेल हो गया।

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दरअसल देश की राजनीति में सबसे प्रचलित ये कहावत कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता यूपी से हो कर जाता हैै, गठबंधन का तिलस्म बनाए रखने में साथ दे रही थी। चुनाव के पूर्व सपा और बसपा के गठबंधन में एनडीए को रोकने के लिए पर्याप्त कारण दिख रहे थे। पर नतीजों के आने बाद सारे कारण ध्वस्त हो गए। यूपी में लोक सभा की 80 सीटें है। इसी संख्या का जादू रहा कि गठबंधन को अंत तक विश्लेषक नकार नहीं पा रहे थे। एक और वजह यह भी थी कि जातीय समीकरण् के लिहाज पर अनुमानित वोटों को प्रतिशत भी गठबंधन को मजबूत दिखा रहा था।

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पर य​ह सब नतीजों में नहीं तब्दील हो सके। एनडीए 353 सीटें पाकर एक बार पुन: देश की बागड़ोर अपने हाथ् में ले लिए। और इसी परिणाम के बाद से बहस शुरू हो गयी कि देश ने गठबंधन की राजनीति को नकार दिया है।

देश का पहला गठबंधन

1971 के चुनाव में विपक्षी इन्दिरा गांधी का मुकाबला करने के लिए जनसंघ, कांग्रेस(ओ), स्वतंत्र पार्टी और एसएसपी ने राष्ट्रीय डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीएफ) का गठन किया। इसे स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास का पहला पूर्ण गठबंधन कहा जा सकता है लेकिन इंन्दिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस(आर), जो कांग्रेस (आई) बन गया था, ने विपक्ष को बुरी तरह से पछाड़ते हुए 352 सींटे प्राप्त की और एनडीएफ को विपक्ष में बैठना पड़ा लेकिन 1975 से 1977 तक देश में इन्दिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया जो उनके लिये घातक सिद्ध हुआ।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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