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महाराष्ट्र: राजनीति में नया नहीं है शह-मात का खेल, यूपी में भी हुआ है सियासी उलटफेर
महाराष्ट्र में जिस तरह का सियासी ड्रामा हो रहा है वह भले ही देश के लिए अचरज भरा हो पर यूपी के लोगों के लिए यह सब कुछ नया नहीं है। यहां के लोग राजनीति में सत्ता के लिए टकराव पहले देख चुके हैं।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: महाराष्ट्र में जिस तरह का सियासी ड्रामा हो रहा है वह भले ही देश के लिए अचरज भरा हो पर यूपी के लोगों के लिए यह सब कुछ नया नहीं है। यहां के लोग राजनीति में सत्ता के लिए टकराव पहले देख चुके हैं। यूपी की राजनीति में पहले इस तरह का सियासी ड्रामे होते रहे हैं। जिनमें सत्ता के लिए 24 साल पहले हुए स्टेट गेस्ट हाउस कांड को लोग आज भी नहीं भूले हैं।
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सत्ता के लिए हुआ गेस्ट हाऊस काण्ड
यूपी की पालिटिक्स में वर्ष 1995 में गेस्ट हाउसकांड एक अध्याय के रूप में दर्ज है। 1993 में सपा -बसपा की साझा सरकार बनने के बाद जब बहुजन समाज पार्टी ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और मायावती को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भाजपा ने समर्थन दे दिया।
इसके बाद बसपा के विधायकों को कैद कर लिया गया और इसका आरोप तत्कालीन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव पर लगा। 2 जून 1995 के दिन मायावती लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं।
तभी दोपहर करीब तीन बजे कथित समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की भीड़ ने अचानक गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया। कहा जाता है कि इस कांड में मायावती की जान भाजपा नेता ब्रम्हदत्ति़द्ववेदी ने बचाई थी।
तब प्रदेश के राज्यपाल मोतीलाल वोरा थे और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। बसपा और भाजपा के कुल विधायकों की संख्या बहुमत से काफी ज्यादा थी लिहाजा राज्यपाल मोतीलाल वोरा ने आनन-फानन में ही रात बारह बजे मायावती को राजभवन में मायावती को शपथ दिला दी थी।
दिलचस्प बात यह है कि सत्ताच्युत होने के बाद भी मुलायम सिंह यादव इस शपथ समारोह में मौजूद थे। यह पहला मौका था जब अचानक देर रात किसी मुख्यमंत्री को शपथ दिलाई गयी। राज्यपाल ने बहुमत की संख्या से संतुष्ट होते हुए मायावती को देररात बारह बजे शपथ दिला दी थी।
जगदंबिका पाल बने 24 घंटे के लिए मुख्यमंत्री
इसी तरह 1 फरवरी 1998 को एक बड़े राजनीति घटनाक्रम के चलते कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कल्याण सरकार के कैबिनेट मंत्री जगदंबिका पाल को उस समय राज्यपाल रहे रोमेश भंडारी ने मुख्यमंत्री को पद एवं गोपनीयता पद की शपथ दिलाई थी।
1998 में ही लोकसभा के चुनाव हो रहे थे और प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह मुख्यमंत्री हुआ करते थे। चुनाव में हार की आशंका के चलते मुलायम सिंह यादव ने बसपा को विश्वास में लेकर जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री बनवा दिया।
हालांकि कैबिनेट मंत्री से मुख्यंमंत्री बने जगदम्बिका पाल मात्र 24 घंटे ही मुख्यमंत्री रह सकें। बहुमत के अभाव में उनकी सरकार का पतन हो गया। यह पहला मौका था जब विधानसभा में केशरीनाथ त्रिपाठी ने अपने दाएं-बाएं दो कुर्सिया डलवाई जिनमें एक कल्याण सिंह और दूसरी पर जगदंबिका पाल को बिठाया गया। बहुमत का फैसला मतदान के जरिए हुआ।
आखिर में बहुमत कल्याण सिंह के पक्ष में दिखा और पाल के हिस्सें में मुख्यमंत्री की की कुर्सी नहीं आ पाई। इस मामलें को जब उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी तो न्यायालय ने शपथ प्रक्रिया को ही अमान्य घोषित कर दिया था।
जिसके बाद कल्याण सिंह पूर्ववत अपने पद पर बने रहे और उन्होंने पद न्यायालय का आदेश मिलते ही पाल को मंत्रीपद से बर्खास्त कर दिया था। देर रात हुए इस शपथ समारोह में जहां पाल को सीएम तो नरेश अग्रवाल को डिप्टी सीएम की शपथ दिलाई गयी थी।
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अब देवेन्द्र फडऩवीस पर मंडराया संकट
अब ये ताजा मामला महाराष्ट्र की राजनीति में चल रहा है। जहां शनिवार को देर रात राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शपथ तो दिला दी लेकिन इससे बेखबर जब एनसीपी कांग्रेस और शिवसेना को यह बात पता चली तो वह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए जहां पर कोर्ट ने मामले की सुनवाई शुरू हो गयी है और अब इसका फैसला सोमवार को आना बाकी है।
दरअसल देवेन्द्र फडऩवीस के मुख्यमंत्री पद के शपथ लेने के पूर्व शिवसेना प्रमुख उद्वव ठाकरें के नाम पर सहमति भी बन गयी थी लेकिन शनिवार की सुबह ने सबको चौंका दिया। जब यह खबर आई कि राज्यपाल कोश्यारी ने दिल्ली में राज्यपालों के सम्मेलन में न पहुंचकर देवेन्द्र फडऩवीस को मुख्यमंत्री पद और एनसीपी के नेता अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली।
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