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कांशीराम की जयंती पर इन लोगों को मायावती ने लिया निशाने पर
बीएसपी नेत्री ने कहा कि विभिन्न संगठन व पार्टी आदि बनाकर इन दुःखी व पीडि़त लोगों को बांटने में लगे लोगों से इन वर्गों को कोई फायदा नहीं होगा। हालांकि इससे इन वर्गों की विरोधी जातिवादी पार्टियों की ‘’फूट डालो और राज करो’‘ की नीति जरूर कामयाब हो जायेगी ताकि दुःखी व पीडि़त लोग हमेशा-हमेशा के लिए उनके गुलाम व लाचार बने रहें और कभी अपने पैरों पर खड़े ना हो सकें।
ऩई दिल्लीः बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने कहा है कि स्वार्थी व बिके हुए लोग पर्दे के पीछे से विरोधी पार्टियों के हाथों में खेल रहे हैं। इनका ना तो बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर की मूवमेन्ट से और ना ही उनकी मूवमेन्ट को आगे बढ़ाने वाले कांशीराम की त्याग व तपस्या से कोई लेना-देना है। सच्चाई यह है कि ये लोग केवल अम्बेडकर के नाम का इस्तेमाल करके ज्यादातर अपनी ‘रोटी-रोजी’ सेकने में ही लगे हैं।
मायावती बामसेफ, डी.एस.-4 एवं बीएसपी मूवमेन्ट के जन्मदाता व संस्थापक कांशीराम की जयन्ती पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि इस किस्म के बिकाऊ व स्वार्थी लोगों से भोले-भाले दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गों एवं अन्य उपेक्षित वर्गों के लोगों को सावधान करने के खास उद्देश्य से ही कांशीराम ने ‘‘चमचा युग’’ के नाम से एक चर्चित किताब भी लिखी थी।
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बीएसपी नेत्री ने कहा कि विभिन्न संगठन व पार्टी आदि बनाकर इन दुःखी व पीडि़त लोगों को बांटने में लगे लोगों से इन वर्गों को कोई फायदा नहीं होगा। हालांकि इससे इन वर्गों की विरोधी जातिवादी पार्टियों की ‘’फूट डालो और राज करो’‘ की नीति जरूर कामयाब हो जायेगी ताकि दुःखी व पीडि़त लोग हमेशा-हमेशा के लिए उनके गुलाम व लाचार बने रहें और कभी अपने पैरों पर खड़े ना हो सकें।
कारवां पूरा करने में जुट जाएं
मायावती ने कहा कि मेरा यही कहना है कि किसी बहकावे में आए बिना कांशीराम के बताये हुये रास्तों पर चलकर अपने मसीहा व भारतीय संविधान के मूल-निर्माता बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के अधूरे पड़े कारवाँ को पूरा करने के कार्य में लगें।
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उन्होंने कहा कि बसपा के लोगों को (अपनी) मूवमेन्ट को आगे बढ़ाना है तभी पूरे आत्मसम्मान व स्वाभिमान के साथ अपनी जिन्दगी व्यतीत कर सकते हैं। और इसके लिए बी.एस.पी. के बैनर तले संगठित होकर केन्द्र व राज्यों की भी राजनैतिक सत्ता की मास्टर चाबी खुद अपने हाथों में लेनी होगी। इसका जीता-जागता उदाहरण उत्तर प्रदेश में बी.एस.पी. के नेतृत्व में चार बार बनी सरकार का है।