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तीस साल बाद गढ़ के बाहर चुनाव लड़ेंगी ममता, बड़ा सियासी संदेश देने की मंशा
नंदीग्राम के चुनावी रण में ममता बनर्जी को इस बार बड़ा सियासी मुकाबला लड़ना होगा क्योंकि उनके खिलाफ भाजपा की ओर से शुभेंदु अधिकारी को उतार दिया गया है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बार सबसे बड़ा सियासी दांव चला है। वे 30 साल बाद अपने चुनाव क्षेत्र के दायरे से बाहर निकलकर इस बार नंदीग्राम से किस्मत आजमाने जा रही हैं।
पहले माना जा रहा था कि वे नंदीग्राम के अलावा भवानीपुर सीट से भी किस्मत आजमाएंगी मगर ममता ने पार्टी प्रत्याशियों की सूची जारी करते समय हर किसी को चौंका दिया।
30 साल बाद छोड़ा अपना गढ़
नंदीग्राम के चुनावी रण में ममता बनर्जी को इस बार बड़ा सियासी मुकाबला लड़ना होगा क्योंकि उनके खिलाफ भाजपा की ओर से शुभेंदु अधिकारी को उतार दिया गया है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि सियासी जंग में कौन नायक बनकर उभरता है।
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अपने सियासी जीवन में चुनावी जंग में उतरने के बाद ममता बनर्जी लगातार भवानीपुर से जुड़ी रही हैं। 30 साल बाद यह पहला मौका है जब वे अपने मजबूत गढ़ से बाहर निकलकर चुनाव लड़ने जा रही हैं। ममता बनर्जी 1991 से लेकर 2011 तक लगातार कोलकाता दक्षिण सीट से सांसद रहीं।
दस साल से भवानीपुर से विधायक
इस लोकसभा सीट के अंतर्गत ही भवानीपुर विधानसभा सीट आती है। करीब 20 साल तक कोलकाता दक्षिण लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने के बाद ममता बनर्जी ने 2011 में विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। उस समय भी उन्होंने कोलकाता दक्षिण के अंतर्गत आने वाली भवानीपुर सीट को ही चुना और वे पिछले 10 सालों से इसी विधानसभा सीट से विधायक हैं।
सिर्फ एक सीट चुनकर सबको चौंकाया
तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ने शुक्रवार को पार्टी के 291 प्रत्याशियों की सूची जारी की। उन्होंने तीन विधानसभा सीटें अपने सहयोगी दल के लिए छोड़ दी हैं। ममता बनर्जी ने पहले ही नंदीग्राम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का एलान कर दिया था मगर माना जा रहा था कि वे भवानीपुर और नंदीग्राम दोनों विधानसभा सीटों से चुनाव मैदान में उतरेंगी।
टीएमसी के सूची से ममता ने सियासी जानकारों को भी हैरान कर दिया है क्योंकि उन्होंने भाजपा की चुनौती को स्वीकार करते हुए सिर्फ नंदीग्राम सीट से ही चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
भाजपा ने इसलिए शुभेंदु को उतारा
सियासी जानकारों का कहना है कि ममता बनर्जी के इस फैसले के बाद साफ है कि पश्चिम बंगाल की सियासी जंग में सबसे बड़ा संग्राम नंदीग्राम में ही लड़ा जाएगा। कभी ममता बनर्जी के काफी करीबी रहे शुभेंदु अधिकारी यहां ममता बनर्जी से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं।
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भाजपा ने शनिवार को पहले और दूसरे चरण की 57 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है और नंदीग्राम से पार्टी की ओर से शुभेंदु अधिकारी को उतारा गया है। भाजपा की यह भी रणनीति है कि शुभेंदु अधिकारी को चुनाव मैदान में उतारकर ममता बनर्जी को कुछ समय तक इस चुनाव क्षेत्र में ही बांधे रखा जाए।
भवानीपुर से रिश्ता बनाए रखेंगी ममता
भवानीपुर विधानसभा सीट से ममता का आत्मीय रिश्ता रहा है और यही कारण है कि ममता ने कहा कि जरूरत पड़ने पर मैं फिर यहां से चुनाव लड़ूंगी। उनका यह भी कहना था कि मैं यहां से चुनाव लड़ूं या न लड़ूं मगर भवानीपुर हमेशा मेरे दिल में रहेगा और इस क्षेत्र पर मेरी पकड़ पहले की तरह ही बनी रहेगी। ममता ने अपनी इस पारंपरिक सीट पर इस बार अपने करीबी शोभन देव चट्टोपाध्याय को चुनाव मैदान में उतारा है।
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नंदीग्राम से सियासी संदेश देने की मंशा
सियासी जानकारों का मानना है कि भवानीपुर सीट से चुनाव लड़ना ममता के लिए ज्यादा आसान था मगर नंदीग्राम से चुनाव लड़कर वे बड़ा सियासी संदेश देना चाहती हैं। उनका मकसद यह साबित करना है कि वे भाजपा की चुनौतियों से तनिक भी भयभीत नहीं हैं और नंदीग्राम में भाजपा का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
इसके साथ ही वे पार्टी से बगावत करने वाले शुभेंदु अधिकारी को सबक भी सिखाना चाहती हैं। हाल के दिनों में शुभेंदु अधिकारी सहित टीएमसी के कई नेताओं ने बगावत करके भाजपा का दामन थामा है।
दो नायकों की लड़ाई पर टिकीं नजरें
पार्टी नेताओं की इस बगावत से ममता काफी नाराज हैं। वे नंदीग्राम से चुनाव लड़कर बड़ा सियासी संदेश देने में जुट गई हैं। ममता बनर्जी की तरह शुभेंदु अधिकारी भी नंदीग्राम आंदोलन के नायक रहे हैं और अब देखने वाली बात यह होगी कि दो नायकों की इस लड़ाई में आखिर बाजी जीतने में कौन कामयाब होता है।