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नंदीग्राम में होगा सबसे बड़ा संग्राम, ममता के बाद अब शुभेंदु पर टिकी नजरें

भाजपा की ओर से उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की गई है मगर यहां से कभी ममता के काफी करीबी रहे पूर्व मंत्री शुभेंदु अधिकारी के चुनाव लड़ने की चर्चाएं हैं। ममता पार्टी से बगावत करने वाले शुभेंदु अधिकारी को इस चुनाव क्षेत्र में सबक सिखाना चाहती हैं।

Ashiki
Published on: 6 March 2021 3:45 AM GMT
नंदीग्राम में होगा सबसे बड़ा संग्राम, ममता के बाद अब शुभेंदु पर टिकी नजरें
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अंशुमान तिवारी

कोलकाता: पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी सियासी जंग पश्चिम बंगाल में लड़ी जा रही है। तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के पत्ते खोल दिए हैं। पार्टी ने 291 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। इस सियासी जंग में ममता बनर्जी नंदीग्राम से चुनाव मैदान में उतरेंगी। ममता ने पहले ही इस चुनाव क्षेत्र से मैदान में उतरने का एलान कर दिया था।

शुभेंदु को सबक सिखाने की मंशा

हालांकि अभी तक भाजपा की ओर से उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की गई है मगर यहां से कभी ममता के काफी करीबी रहे पूर्व मंत्री शुभेंदु अधिकारी के चुनाव लड़ने की चर्चाएं हैं। ममता पार्टी से बगावत करने वाले शुभेंदु अधिकारी को इस चुनाव क्षेत्र में सबक सिखाना चाहती हैं। इसलिए पश्चिम बंगाल चुनाव का सबसे बड़ा संग्राम नंदीग्राम में ही लड़ा जाएगा।

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नंदीग्राम में 70 फीसदी हिंदू आबादी

सियासी नजरिए से नंदीग्राम को पहले ही काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में रहने वाली आबादी में करीब 70 फीसदी हिंदू हैं जबकि शेष मुसलमान है। भूमि अधिग्रहण के खिलाफ खूनी संघर्ष का गवाह रहा नंदीग्राम चुनाव से पहले ही सांप्रदायिक आधार पर ब॔टा हुआ नजर आ रहा है। भाजपा इस स्थिति का फायदा उठाने में जुटी हुई है। ममता बनर्जी ने अपने लिए नंदीग्राम को छोड़कर कोई दूसरी सीट भी नहीं चुनी है।

भवानीपुर से लड़ने का विकल्प छोड़ा

पहले ममता बनर्जी के नंदीग्राम के साथ ही भवानीपुर से भी चुनाव लड़ने की चर्चा थी मगर ममता की ओर से घोषित की गई सूची में उनका नाम सिर्फ नंदीग्राम सीट से ही तय किया गया है। इसलिए माना जा रहा है कि ममता बनर्जी भी इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक देंगी।

संघर्ष का गवाह रहा है नंदीग्राम

भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष के कारण नंदीग्राम कभी राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा है। 2007 में प्रदेश की तत्कालीन वामपंथी सरकार की ओर से यहां विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) बनाने के खिलाफ संघर्ष हुआ था। नंदीग्राम में हुए गोलीकांड में 14 किसानों की मौत हुई थी और 100 से ज्यादा किसानों के गायब होने का दावा किया गया था। उस समय एक ही नारा गूंजा करता था- तुम्हारा नाम, मेरा नाम, नंदीग्राम, नंदीग्राम मगर अब यह इलाका उस समय से काफी आगे निकल आया है। अब नंदीग्राम की दीवारों पर जगह-जगह जय श्रीराम का नारा प्रमुखता से लिखा हुआ दिखता है।

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दो नायकों में संघर्ष की जमीन तैयार

विधानसभा क्षेत्र में बढ़ते सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की सबसे बड़ी वजह कभी तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे शुभेंदु अधिकारी के भाजपा में शामिल होने और फिर ममता के यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा को बताया जा रहा है। ‌मजे की बात यह है कि ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी दोनों ही नंदीग्राम आंदोलन के नायक माने जाते रहे हैं और अब समय ने ऐसी करवट ली है कि इस चुनाव क्षेत्र में दो नायकों के बीच ही संघर्ष की जमीन तैयार हो गई है।

नंदीग्राम में बदलीं सियासी स्थितियां

पश्चिम बंगाल की सियासत में वामदलों और कांग्रेस को हाशिए पर धकेलने में ममता बनर्जी ने कभी नंदीग्राम को ही बड़ा हथियार बनाया था और अब नंदीग्राम में ही ममता बनर्जी को भाजपा से बड़ी सियासी जंग लड़नी होगी। नंदीग्राम में हिंसा की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं। वर्ष 2007 से 2011 के बीच यहां हुए संघर्ष में कई लोग मारे गए थे मगर तब भी कभी सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण नहीं हुआ था और मतभेद पूरी तरह राजनीतिक ही दिखते थे मगर अब स्थितियां बदलती हुई नजर आ रही हैं।

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मुस्लिम तुष्टीकरण से नाराजगी

वैसे इलाके के कुछ जानकारों का मानना है कि इलाके में सांप्रदायिक विभाजन के लिए टीएनसी ही जिम्मेदार है क्योंकि टीएमसी ने मुस्लिम तुष्टीकरण की अपनी नीति को जारी रखा। इससे एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय के खिलाफ खड़े होते नजर आ रहे हैं। इलाके के जानकारों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन के दौरान हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर लड़ाई लड़ी, लेकिन कुछ मुट्ठी भर नेता और एक समुदाय विशेष के लोगों को ही ज्यादा फायदा मिला और इसे लेकर अब दूसरे समुदाय के लोगों में नाराजगी है और ऐसे लोग चुनाव के दौरान टीएमसी को सबक सिखा सकते हैं।

हिसाब बराबर करना चाहती हैं ममता

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का एलान काफी सोच-समझकर किया है। वे टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले बागियों को सबक भी सिखाना चाहती हैं। शुभेंदु अधिकारी ने भाजपा की सदस्यता लेकर टीएमसी को भारी झटका दिया है और ऐसे में ममता शुभेंदु अधिकारी से अपना हिसाब बराबर करना चाहती हैं। दूसरी ओर शुभेंदु अधिकारी को नंदीग्राम के मतदाताओं पर पूरा भरोसा है और वे ममता की चुनौती स्वीकार करने को तैयार हैं। उन्होंने तो चुनाव से पहले ही ममता बनर्जी को 50,000 से अधिक मतों से हराने का दावा तक कर डाला है।

भाजपा की यह होगी कोशिश

वैसे भाजपा की ओर से अभी तक नंदीग्राम से शुभेंदु अधिकारी के चुनाव लड़ने का आधिकारिक एलान नहीं किया गया है। शुभेंदु अधिकारी का भी कहना है कि पार्टी में व्यापक चर्चा के बाद ही यहां से प्रत्याशी तय किया जाएगा। वैसे जानकारों का कहना है कि भाजपा की ओर से यहां शुभेंदु अधिकारी को ही चुनाव मैदान में उतारने की प्रबल संभावनाएं हैं। पार्टी यहां से शुभेंदु अधिकारी को उतारकर ममता बनर्जी को नंदीग्राम में कुछ समय तक बांधने की कोशिश जरूर करेगी।

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रणनीति बनाने में जुटे हैं शुभेंदु

शुभेंदु अधिकारी ने राज्य के दूसरे हिस्सों में भाजपा की रैलियों के साथ ही नंदीग्राम में अपनी चुनावी रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं। उन्होंने नंदीग्राम से ममता बनर्जी के चुनाव लड़ने के फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि मैं ममता से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि भाजपा की ओर से बंगाल में पूरी ताकत झोंके जाने के कारण सभी विधानसभा सीटों पर तीखी जंग देखने को मिलेगी मगर सबसे बड़ा संग्राम तो नंदीग्राम की रणभूमि पर ही लड़ा जाएगा।

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