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इन्‍हें 'सरगम' की नहीं है समझ, फिर भी मिलाते हैं सुर

अवतार सिंह ने कभी संगीत की शिक्षा नहीं ली। इन्‍हें सरगम की समझ भी नहीं है, लेकिन परख इतनी है कि ये सुर साधना में काम आने वाली हारमोनियम को कभी बेसुरा नहीं होने देते।

Shivani Awasthi
Published on: 12 April 2020 6:53 AM GMT
इन्‍हें सरगम की नहीं है समझ, फिर भी मिलाते हैं सुर
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पार्थसारथी

जालंधर: इनसे मिलिए, ये हैं 75 साल के अवतार सिंह। इन्‍होंने कभी संगीत की शिक्षा नहीं ली। इन्‍हें सरगम की समझ भी नहीं है, लेकिन परख इतनी है कि ये सुर साधना में काम आने वाली हारमोनियम को कभी बेसुरा नहीं होने देते। आठवीं जमात पास अवतार सिंह की बनाई हारमोनियम से बडे-बडे गायक सुर से सुर मिलाते हैं।

अवतार सिंह कहते हैं कि उन्‍होंने संगीत का पहला अंतरा सा रे गा मा... के आरोह व अवरोह के अलावा कुछ नहीं आता। यह आरोह-अवरोह भी उन्‍हें अपने पिता सेवा सिंह से विरासत में मिला है। उनका परिवार पिछले चार पीढियों से हारमोनियम बनात आ रहा है। फर्क इतना है कि पिछली तीन पीढियां मुल्‍तान (अब पाकिस्‍तान) में हारमोनियम और पियानू बनाया करती थीं और अब चौथी पीढी जालंधर में बना रही है। बस उन्‍हीं से मिला यह हुनर है कि सरगम की समझ न होते हुए भी हारमाेनियम को बनाते समय सुरों का खास ध्‍यान रखते हैं, क्‍योंकि हारमोनियम के यही 39 परदे गीत को संगीत से सजाते हैं।

जालंधर शहर के ओल्‍ड रेलवे रोड पर छोटी सी दुकान करने वाले अवतार सिंह कहते हैं कि हारमोनियम को बनाने में तीन चीजें महत्‍वपूर्ण हैं पहला हल्‍की लकडी, कंघी और पीतल के रिड़़स। इसके अलावा चमडा व गत्‍ते का भी प्रयोग किया जाता है। वे कहते हैं िक ये सभी वस्‍तुएं पंजाब व हरियाणा के अलग-लगह शहरों से मंगवाई जाती हैं।

37 से 42 परदे की होती है हारमोनियम

अवतार सिंह कहते हैं कि हारमोनियम 37, 39 और 42 परदों की होती है। इन परदों को रिड्स भी कहते हैं। अब गायक पर निर्भर करता है कि वह कौन सी हारमोनियम इस्‍तेमाल करना चाहता है। 37 परदों वाली या फिर 42 परदों वाली। वे कहते हैं कि वैसे तो सीखने व सिखाने के लिए ज्‍यादातर 37 परदों वाली हारमोनियम ही इस्‍तेमाल की जाती है।

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पठानकोट से लकड़ी तो पानीपत से मंगाते हैं कंधी

हारमोनियम को बनाने जिन वस्‍तुओं का इस्‍तेमाल किया जाता है उनमें प्रमुख है परतल या सागौन की लकडी। परतल की लकडी सागौन से हल्‍की होती है, जो पठानकोट से मंगवाई जाती है। जबिक लकडी की जाली अमृतसर से तो कंधी पानीपत से जो परदों के नीचे लगाई जाती है। इसी तरह पीतल के रिड्स और तांबे की कमानी जालंधर की होती है। जिन्‍हे मिलाकर हारमाेनियम तैयार किया जाता है।

इस तरह बनाते हैं सुरीली

अवतार कहते हैं, हमें सुरों की समझ नहीं है, लेकिन पुश्‍तैनी कारोबार होने के कारण इतनी तो समझ आ गई है कि इसके सुर कहां बेसुरे हो रहे है। इसके सुरों को मिलाने के लिए संगीत के सप्‍तक यानी सा रे गा मा... बजाते हैं, जहां आवाज मोटी लगती है वहां पदों के नीचे लगे रिड्स को घीस कर सुरों से सुर को मिलाते हैं। ताकि किसी भी गायक का सुर बेसुरा न हो।

चार दिन में तैयार होती है एक हारमोनियम

सही ढंग से एक हारमोनियम को तैयार करने में चार से छह दिन का समय लगता है। जो 37, 39 व 42 पर्दों में जरूरत के अनुसार तैयार होती है। अब यह गायक के पर डिपेंड करता है कि वह 42 पर्दो वाली हारमोनियम पर सुर साधना करता है या 37 पर्दों वाली पर। यह हारामोनियम 4500 से 35000 में बिकती। ये पूछे जाने पर कि किसी प्रसिद्ध गायक ने आपकी हारमोनियम पर रियाज किया है या नहीं। इसपर उनका कहना है आजतक हमने किसी खरीदार का नाम नहीं पूछा हो सकता है कोई ले भी गया हो।

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आज भी कायम है बादशहत

हारमोनियम मेकर अवतार सिंह कहते हैं कि केशियो के बाजार में आने से हारमोनियम पर कोई फर्क नहीं पडा है। इसकी बादशाहत पहले की ही तहर आज भी कायम है। क्‍योंकि गीत और संगीत का रियाज हारमोनियम पर ही होता है। केशियो पर नहीं।

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