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फकीर की निगरानी में बना था महाराजा रणजीत सिंह का दरबार

महाराजा रणजीत सिंह का समर पैलेस (रामबाग) काल के कपाल पर लिखी एक ऐसी ईबारत, जिसे मिटाया नहीं जा सकता। शहर के मध्य स्थित यह बाग हर समय लोगों की मौजूदगी से आबाद रहता है।

Shivani Awasthi
Published on: 12 April 2020 6:45 AM GMT
फकीर की निगरानी में बना था महाराजा रणजीत सिंह का दरबार
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दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर -महाराजा रणजीत सिंह का समर पैलेस (रामबाग) काल के कपाल पर लिखी एक ऐसी ईबारत, जिसे मिटाया नहीं जा सकता। शहर के मध्य स्थित यह बाग हर समय लोगों की मौजूदगी से आबाद रहता है। बड़े-बडे़ छायादार व फलदार दरख्तों से भरे इस बाग में विभिन्न प्रजातियों के फूलों व उनके उपर मकरंद लेते भंवरें व फूलों के आसपास मंडरातती रंगबिरंगी तिलियां और पछिंयों का कलरव हर प्रकृति प्रेमी को अपनी तरफ आकर्षित करता है। यदि राम बाग का वर्तमान इतना सुंदर है तो उसका अतीत कितना सुंदर रहा होगा, यह प्रत्येक प्रकृति प्रेमी के लिए सोचने, समझने का विषय हो सकता है।

678 कनाल में फैला है पैलेस

महाराजा रणजीत सिंह का समर पैलेस 678 कनाल 12 मरले में है। इस पैलेस की आधारशिला शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने 1818 में रखी थी। महाराजा ने इस बाग का नाम श्री गुरु रामदास जी के नाम पर 'रामबाग' रखा था। इस बाग का रकबा 84 एकड़ था। इस पैलेस का उपयोग महाराजा अपने गर्मियों के अवकाश के दौरान समर कैंप के रूप में करते थे। ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक इस बाग के निर्माण में उस समय 2.14 लाख रुपये खर्च किए गए थे।

1.25 लाख से बना था तीन मंजिला पैलेस

राम बाग के मध्य में नानक शाही ईटों व चूना प्लास्टर के मिश्रण से बने भव्य भवन को समर पैलेस के रूप में जाना जाता है। इतिहाकारों के मुताबिक इस पैलेस के निर्माण में उस समय 1.25 लाख रुपये खर्च किए गए थे। तीन मंजिली इस इमारत के निर्माण में पच्चीकारी के साथ-साथ हवा व प्रकाश का भी उमदा प्रबंध किया गया था।

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राम बाग को बनाने में लगे थे 10 साल

महाराजा रणजीत सिंह पैनोरमा व म्‍यूजियम सेवानिवृत्‍त हुए पूर्व इंचार्ज रमन कुमार कहते हैं कि यदि ऐतिहासिक साक्ष्यों पर गौर करें तो आज इतना सुंदर दिखने वाले रामबाग के निर्माण में दस साल का समय लगा था। वे कहते हैं कि देसा सिंह मजीठिया व फकीर अजीजुद्दीन की निगरानी में तैयार हुआ महाराजा रणजीत सिंह का समर पैलेस अरेबियन वास्तु कला का उम्दा नमुना है। तीन मंजील वाले पैलेस में एक तहखाना, ग्राउंड फ्लोर पर तीन कमरे व एक बड़ा हाल और मेहराबदार बरामदों से युक्त चार गैलरी है। जबकि उपरी मंजिल पर अद्भुत व अप्रतीम चित्रकारी की गई।

अद्भुत है महाराजा का हमाम

1780 में लाहौर के गुजरा वाला में जन्मे महाराजा रणजीत सिंह ने 1839 तक पंजाब के शासन की कमान संभाले रखी थी। उनके बारे में चरितार्थ है कि वह एक कुशल योद्धा, न्याय प्रिय शासक होने के साथ-साथ वास्तु व धर्म प्रेमी सम्राट भी थे। इसकी झलक राम में बने भव्य भवनों से मिलती है। महाराजा का समर पैलेस 90x90 फिट का वर्गाकार निर्माण है।

पूरे समर पैलसे का निर्माण 803.72 स्क्वायर मीटर में है। इसके साथ ही साथ महाराजा का हमाम व वारादरी सहित अन्य इमारतें स्थित हैं। कहा जाता है कि कंपनी बाग में कुल 8 बारादरी व चार वाचिंग टावर थे; इनमें से मात्र एक बारादरी बची है जो अपने पुराने स्वरूप को कायम रखे हुए है।

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समर पैलेस के चारों तरफ थी गहरी खाई और सिख सैनिकों की छावनी

महाराजा के समर पैलेस का निर्माण करते समय उनके सुरक्षा प्रबंधों का भी पूरा ध्यान रखा गया था। क्योंकि वाचिंग टावरों अर्थात रामबाग के चारों तरफ सुरक्षा कर्मियों का रेजिडेंट था, इसके अतिरिक्त चारों तरफ 20 फुट चौड़ी और 14 फुट गहरी खाई खोदी गई थी। इससे एक तरफ जहां महाराजा के पैलेस की सुरक्षा किसी अभेद दुर्ग की तरह होती थी, वहीं इस चौड़ी खाई में भरे पानी को छुकर जब हवाएं चलती थीं तो समर पैलेस भयंकर गर्मी में भी कूल-कूल रहता था।

यही नहीं इस पैलेस के चारों तरफ फूलों व फव्‍वारों की उत्तम व्यवस्था की गई थी। बताया जाता है कि उस समय महाराजा की सुरक्षा में लगे सैनिकों व सैन्य अधिकारियों के रहने लिए रामबाग के चारों तरफ आवास बनाए गए थे। इतिहास के चढ़ाव उतार के बाद मौजूदा समय में न तो खाई बची है और ना ही सैनिकों के आवास। बचा है तो समर पैलेस, बुर्जियां, फववारा सिस्टम व राम बाग का भव्य मुख्य प्रवेषद्वार, जिसमें कभी महाराजा के सिपाहसालार बैठते थे, लेकिन अब इसमें सर्वे आफ आक्र्योलाजिकल विभाग का जोनल कार्यालय है।

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नौ माह लाहौर और तीन माह अमृतसर में रहते थे रणजीत सिंह

कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह वर्ष में नौ माह तत्कालीन पंजाब की राजधानी लाहौर में रहते थे और बाकी के तीन माह श्री हरिमंदिर साहिब के दशर्न व अमृतसर के लोगों के बीच इसी रामबाग में बने समर पैलेस में रहते थे। उस समय उनकी कचहरी और दरबार भी यहीं लगा करता था और यहीं से वह कई महत्वपूर्ण फैसले भी लिया करते थे। लेकिन महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु और सिख एंग्लो युद्ध के बाद इस्टइंडिया कंपनी की अंग्रेजी हुकुमत ने रामबाग का नाम बदल कर कंपनी बाग कर दिया और तब से रामबाग कंपनी बाग के नाम से जाना जाने लगा। कहा तो यहां तक जाता है कि अमृतसर जिला बनने बाद अंग्रेजों ने अपनी पहली कचहरी समर पैलेस में ही लगाई थी।

पुरातत्व विभाग के अधीन है रामबाग

लगभग 21 साल तक महाराजा रणजीत सिंह की प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र व लगभग दो सदी के इतिहास का गवाह रहे रामबाग को 15 अक्तूबर 2014 को तत्कालीन भारत सरकार ने भारीय पुरातत्व विभाग को सौंप दिया। वर्तमान में महाराजा के समर पैलेस व रामबाग को पंजाब टुरिज्म विभाग और पुरातत्व विभाग सजा और संवार रहा है।

1977 में संग्रहालय बना समर पैलेस

पंजाब दुरिज्म विभाग के पूर्व सह निदेशक बलराज सिंह कहते हैं कि सन 1977 में समर पैलेस को संग्रहालय का रूप दिया गया। इसमें माहाराजा से जुड़ी वस्तुओं को संग्रह कर लोगों की ऐतिहासिक जानकारी के लिए प्रदर्शित किया गया। यहां सैकड़ों पर्यटक रोजना इन वस्तुओं को देखने आते हैं।

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Shivani Awasthi

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