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महाराजा रणजीत सिंह की छोटी महारानी जिन्द कौर यहां कैद...
जिस पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन करने में इस्टइंडिया कंपनी को सौ साल लग गए। उसी पंजाब की महारानी को अंग्रेजों ने उत्तर प्रदेश के चुनार में कैद कर रखा था। यह महारानी थीं शेर-ए-पंजाब के नाम से मशहूर महाराजा रणजीत सिंह पांचवीं और सबसे छोटी महारानी जिन्द कौर जिन्हें 'जिंदा कौर' के नाम से जाना जाता है।
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर: जिस पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन करने में इस्टइंडिया कंपनी को सौ साल लग गए। उसी पंजाब की महारानी को अंग्रेजों ने उत्तर प्रदेश के चुनार में कैद कर रखा था। यह महारानी थीं शेर-ए-पंजाब के नाम से मशहूर महाराजा रणजीत सिंह पांचवीं और सबसे छोटी महारानी जिन्द कौर जिन्हें 'जिंदा कौर' के नाम से जाना जाता है।
इतिहास गवाह है- जबतक महाराजा रणजीत सिंह जिंदा रहे तबतक अंग्रेजों ने उनके विशाल साम्राज्य की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखा। महाराजा रणजीत सिंह के संबंध में ब्रिटिश इतिहासकार जे टी व्हीलर ने कहा था- "अगर वह एक पीढ़ी पुराने होते, तो पूरे हिंदुस्तान को ही फ़तेह कर लिए होते।"
इसी तरह एक फ्रांसीसी पर्यटक विक्टर जैकोमाण्टा ने महाराजा रणजीत सिंह की तुलना '' नेपोलियन बोनापार्ट '' से की थी। लेकिन, इनकी मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने पंजाब पर धावा बोल दिया।
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कौन थी महारानी जिन्द कौर
महाराजा रणजीत सिंह की सबसे छोटी महारानी जिन्द कौर सियालकोट रियासत के गांव चॉढ (जो अब पाकिस्तान में है) निवासी सरदार मन्ना सिंह औलख की पुत्री थीं। जिन्द कौर 1843 से 1846 तक सिख साम्राज्य की संरक्षिका और अन्तिम महाराजा दिलीप सिंह की मां थीं। महारानी जिंद कौर के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत सुंदर, ऊर्जावान और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण के लिए प्रसिद्ध थीं। इसलिए लोग उन्हें 'रानी जिन्दा' कहते थे। यही नहीं रानी जिन्दा की प्रसिद्धि से अंग्रेज भी डरते थे।
सिख-एंग्लो युद्ध में किया नेतृत्व
सन 1843 ई. में जब महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे पुत्र दलीप सिंह जब गद्दी पर बैठे तो वह नाबालिग थे। ऐसे में महारानी जिन्दा उसकी संरक्षिका बनीं। महाराजा दलीप सिंह के पंजाब का राज्यभार संभालने के करीब दो साल बाद 1845 ई. में प्रथम सिख-एंग्लो युद्ध छिड़ गया।
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सन 1846 ई. में सिखों और अंग्रेजों के बीच संधि हुई, जिसे लाहौर की संधि के नाम से जाना जाता है। इसके बाद महारानी जिंदा कौर दलीप सिंह की संरक्षिका बनी रहीं। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें लाहौर संधि के करीब दो साल बाद 1848 ई. में षड्यंत्र रचने के आरोप में उन्हें लाहौर से हटा दिया। फल स्वरूप वर्ष 1849 में द्वितीय सिख-एंग्लो युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में सिखों की हार हुई और अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्जा कर महाराजा दलीप सिंह को गद्दी से उतार दिया।
इंग्लैंड में निधन और नासिक में हुआ संस्कार
इतिहास के मुताबकि लाहौर पर अधिकार के बाद अंग्रेजों ने महारानी जिन्दा कौर को लाहौर राजमहल से ले जाकर पहले शेखूपुरा में नज़रबंद रखा। इसके कुछ माह बाद 19 अगस्त 1849 को उत्तर प्रदेश के चुनार के खुंटे में कैद कर दिया।
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कहा जाता है कि महारानी जिन्दा कौर यहां से साध्वी का वेश धारण कर कैद से निकल कर नेपाल चली गईं। नेपाल में सम्मान पूर्वक रहने के बाद वह 1861 में महाराजा दलीप सिंह को देखने के लिए इंग्लैंड चली गईं। और वहीं पर एक अगस्त 1863 को लंदन में ही 46 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। इनका अंतिम संस्कार अंग्रेजों ने नासिक में किया।
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