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जब महाराजा रणजीत सिंह ने कुरान शरीफ को लगाया माथे से
पंजाब के इतिहास को स्वर्णिम अध्याय देने वाले महाराजा रणजीत सिंह न केवल एक कुशल शासक-प्रशासक थे बल्कि वह एक सर्वधर्म प्रिय राजा भी थे। वह पंजाब के लोक जीवन और लोक कथाओं में इस कदर रचबस गए हैं कि उनके नाम को अलग करना दूध से पानी को निकालने जैसा है।
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर : पंजाब के इतिहास को स्वर्णिम अध्याय देने वाले महाराजा रणजीत सिंह न केवल एक कुशल शासक-प्रशासक थे बल्कि वह एक सर्वधर्म प्रिय राजा भी थे। वह पंजाब के लोक जीवन और लोक कथाओं में इस कदर रचबस गए हैं कि उनके नाम को अलग करना दूध से पानी को निकालने जैसा है।
चांदी की स्याही से लिखी कुरान शरीफ और रणजीत सिंह का किस्सा
महाराजा रणजीत सिंह के जीवन से जुड़ी कहानियों में उनकी विरता के अलावा अधिकांश कहानियां उनकी उदारता, न्यायप्रियता और सभी धर्मों के प्रति समदृष्टि को लेकर कही और सुनी जाती हैं। अपनी इन्हीं न्याय और धर्म प्रियता के कारण महाराजा रणजीत सिंह अपने जीवन काल में ही लोक गाथाओं और जनश्रुतियों का केंद्र बन गये थे। इन्हीं अनेकानेक कहानियों में से एक है चांदी की स्याही से लिखे कुरान शरीफ को माथे पर लगाने की कथा।
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नवाब नहीं खरीद पाए थे कुरान
इतिहासकार सुरेंद्र कोछड़ कहते हैं कि महाराजा रणजीत सिंह के संबंध में एक जगह उल्लेख है कि एक मुसलमान खुशनवीस ने सोने और चांदी से बनी स्याही से 'क़ुरान शरीफ़' की एक प्रति तैयार की। उस प्रति को लेकर वह पंजाब और सिंध के अनेक नवाबों के पास गया। सभी ने उसकी प्रशंसा तो की लेकिन मूल्य अधिक होने के कारण किसी ने भी कुरान की उस प्रति को नहीं खरीदा। अंत में वह निराश होकर लाहौर आया और महाराजा रणजीत सिंह के सेनापति से मिला।
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महाराजा ने खरीदा कुरान शरीफ
कोछड़ कहते हैं इतिहास के पन्नों में दर्ज इस कथा के अनुसार जब उस खुशनवीस ने क़ुरान शरीफ़ की वह प्रति महाराजा राणजीत सिंह को दिखाई तो उन्होंने सम्मान से उसे उठाकर अपने मस्तक से लगाया।
महाराजा ने अपने मंत्री से कहा - "खुशनवीस को उतना धन दे दिया जाय, जितना वह चाहता है और क़ुरान शरीफ़ की इस प्रति को मेरे संग्रहालय में रख दिया जाय।"
इस दौरान वहां मौजूद एक फ़क़ीर अजिजद्दीन ने पूछा- "हुजूर, आपने इस प्रति के लिए बहुत बड़ी धनराशि दी है, परन्तु यह मुसलमानों की धार्मिक पुस्तक है।"
इस पर महाराज ने उत्तर दिया- "फ़क़ीर साहब, ईश्वर की यह इच्छा है कि मैं सभी धर्मों को एक नज़र से देखूँ।"
काशी विश्वनाथ मंदिर को भी दान में दिया था 22 मन सोना
सिख होते हुए भी महाराजा रणजीत सिंह सभी धर्मों को समान रूप से देखते थे। अमृतसर स्थित श्री हरिमंदिर साहिब पर सोना मढ़वा कर इसे स्वर्ण मंदिर में बदल दिया। इसके अलावा उन्होंने वाराणसी स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के शिखर पर सोने का कलश और 22 मन सोना मढ़वा कर स्वर्ण जडि़त कर दिया। तभी से बाबा विश्वनाथ के इस मंदिर उत्तर प्रदेश का स्वर्ण मंदिर को स्वर्ण मंदिर भी कहा जाने लगा।
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कई मस्जिदों का करवाया जिर्णोधार
यहीं नहीं महाराजा के बारे में प्रचलित है कि उन्होंने देश की अनेको मस्जिदों की मरम्मत करवाई। 40 वर्ष के अपने शासनकाल में महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब को इतना सुद्रिढ़ कर दिया कि उनके जीते जी अफगान और अंग्रेज उनके राज्य की सीमा का अतिक्रमण करने से डरते थे।
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