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अकबर के नवरत्नों में शुमार अबुल फजल, जहांगीर ने इसलिए करवा दी थी हत्या
अबुल फजल का नाम सम्राट अकबर के दरबार में नवरत्नों की सूची में से एक था। अबुल फजल ने अकबर के कार्यकाल को कलमबद्ध किया था। अबुल फजल मुग़ल कार्यकाल की प्रसिद्ध पुस्तक अकबरनामा और आइने अकबरी की रचना के लिए जाने जाते हैं। इसके अवाला वह अपनी बुद्धि और वफादारी के कारण अकबर के चहेते रहे।
लखनऊ: 14 जनवरी की तारीख भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है। आज के दिन देशभर में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जा रहा है। वहीं भारत के इतिहास में भी 14 जनवरी की तारीख का एक खास महत्व है। 1761 में 14 जनवरी के दिन अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली की सेना और मराठों के बीच पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई थी। इस युद्ध को 18वीं सदी के सबसे भयंकर युद्ध के रूप में याद किया जाता है। इसके अलावा आज ही के दिन 1551 अकबर के नवरत्नों में शामिल अबुल फजल का जन्म भी हुआ।
कौन थे अबुल फजल??
अबुल फजल का नाम सम्राट अकबर के दरबार में नवरत्नों की सूची में से एक था। अबुल फजल ने अकबर के कार्यकाल को कलमबद्ध किया था। अबुल फजल मुग़ल कार्यकाल की प्रसिद्ध पुस्तक अकबरनामा और आइने अकबरी की रचना के लिए जाने जाते हैं। इसके अवाला वह अपनी बुद्धि और वफादारी के कारण अकबर के चहेते रहे।
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बचपन से ही प्रतिभावान थे अबुल फज़ल
उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में जन्में अबुल फज़ल अरब देश के मूल निवासी थे। उनका पूरा नाम फजल-इब्न-मुबारक था। बचपन से ही अबुल काफी बुद्धिमान और प्रतिभावान थे। उनकी प्रतिभा को देखते हुए पिता शेख़ मुबारक ने उनके लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था की। 15 साल की उम्र में ही उन्होंने जब उन्होंने दर्शन शास्त्र और इस्लामिक शिक्षा को प्राप्त कर लिया। अबुल फजल अध्यापक पद पर भी कार्यरत रहे।
दूसरी मुलाकात में ही बने अकबर के दरबारी
उस दौरान अकबरी हुकूमत लगातार बढ़ रही थी। ऐसे में सल्तनत को कानून की जरुरत होती थी। अकबर की सल्तनत में हर छोटे-बड़े फैसलों पर विद्वान लोगों का एक समूह दरबार में हमेशा मौजूद दिखता था। अबुल फज़ल की भी इच्छा थी कि वह अकबर के दरबार का हिस्सा बने। इसके लिए उन्होंने एकांत में रहते हुए उस दौर की कई सारी तफसीरे लिख डालीं, जिसकी वजह से अकबर के कानों तक उनका नाम पहुंच गया।
प्रभावित होकर सम्राट अकबर ने उनसे मिलने की इच्छा जताई। जल्द ही अकबर से अबुल फजल की मुलाकात आगरा में हुई। हालांकि पहली मुलाकात में वे अकबर से नहीं जुड़ सके। उनकी अकबर से दूसरी मुलाकात अजमेर में हुई। यहां दोनों की कई मुद्दों पर सलाह मशविरा हुई। माना जाता है कि इस मुलाकात के बाद अकबर उनका कायल हो गया और उसने अबुल फज़ल को अपना दरबारी बना लिया।
‘अकबर नामा’ और ‘आइने अकबरी’ की रचना
अबुल फज़ल कई सालों तक अकबर के दरबार में रहे। अपनी काबिलियत के दम पर वजीर और सलाहकार जैसे पदों पर भी कार्यरत रहे। अबुल फजल सिर्फ एक दरबारी और उच्च पदों पर अधिकारी ही नहीं थे बल्कि वे एक बड़े विद्वान और शायर भी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में कई पुस्तके लिखीं। ‘अकबर नामा’ और 'आइन-ए-अकबरी' ऐसे ही दो बड़े उदाहरण हैं।
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अबुल फजल की मौत
कहा जाता है कि जैसे-जैसे अबुल फजल अकबर के खास बनते जा रहे थे, वैसे-वैसे वह दूसरों की नजरों में खटकते जा रहे थे। खासकर शहजादा सलीम यानी जहांगीर उन्हें बिलकुल पंसद नहीं करता था। इतिहासकार बताते हैं कि 1602 ई. में सलीम ने वीरसिंह बुन्देला द्वारा अबुल फजल हत्या करवा दी।
मन की बात में PM मोदी ने किया याद
पिछले दिनों हुई मन की बात में पीएम मोदी ने अबुल फजल को याद करते हुए कहा कि अकबर के दरबार के एक प्रमुख सदस्य अबुल फजल थे। उन्होंने एक बार कश्मीर की यात्रा के बाद कहा था कि कश्मीर में एक ऐसा नजारा है, जिसे देखकर चिड़चिड़े और गुस्सैल लोग भी खुशी से झूम उठेंगे।