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अलेक्जेंडर कनिंघम: 21 साल की उम्र में करवाई थी सारनाथ में खुदाई, जानें उनके बारे में
भारत में 19वीं शताब्दी में भारतीय कला और पुरातत्व का विकास हुआ, जिसका पूरा श्रेय अलेक्जेंडर कनिंघम को जाता है। अलेक्जेंडर कनिंघम को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पिता के रूप में भी जाना जाता है। कनिंघम बंगाल इंजीनियर समूह के साथ एक ब्रिटिश सेना के इंजीनियर थे।
लखनऊ: भारत में 19वीं शताब्दी में भारतीय कला और पुरातत्व का विकास हुआ, जिसका पूरा श्रेय अलेक्जेंडर कनिंघम को जाता है। अलेक्जेंडर कनिंघम को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पिता के रूप में भी जाना जाता है। कनिंघम बंगाल इंजीनियर समूह के साथ एक ब्रिटिश सेना के इंजीनियर थे। बाद में उन्होंने भारत के इतिहास और पुरातत्व में रुचि ली।
अलेक्जेंडर कनिंघम का जन्म आज ही के दिन यानी 23 जनवरी 1814 को यूनाइटेड किंगडम में हुआ था। अलेक्जेंडर कनिंघम एक अंग्रेजी पुरातत्वविद्, सेना के इंजीनियर, स्कॉटिश शास्त्रीय विद्वान और आलोचक भी थे। उन्होंने कई पुस्तकें और मोनोग्राफ भी लिखा। इसके अलावा कलाकृतियों का व्यापक संग्रह भी किया। कनिंघम को 20 मई 1870 को सीएसआई और 1878 में CIE से सम्मानित किया गया था।
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अलेक्जेंडर कनिंघम का प्रारंभिक जीवन
बड़े भाई जोसेफ के साथ अलेक्जेंडर कनिंघम ने क्राइस्ट हॉस्पिटल, लंदन में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। फिर 19 साल की उम्र में वह बंगाल इंजीनियर्स में शामिल हो गए और अपने जीवन के अगले 28 साल भारतीय उपमहाद्वीप की ब्रिटिश सरकार की सेवा में बिताए। एक विशिष्ट कैरियर के बाद उन्होंने 1861 में प्रमुख जनरल के रूप में सेवानिवृत्त हुए।
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21 साल की उम्र में अपने पैसों से सारनाथ में करवाई थी खुदाई
कहा जाता है कि 21 साल की उम्र में कनिंघम ने सारनाथ की खुदाई शुरू करवाई थी। पुरातत्व में उनको बहुत लगाव था इसीलिए उन्होंने अपने खुद के खर्च से खुदाई करवाई थी। इतना ही नहीं कनिंघम ने भारतीय मंदिरों, ऐतिहासिक भूगोल, मुद्रा शास्त्र में तमाम कार्य किए हैं। वह 1871 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले डाइरेक्टर जनरल बने। उन्होंने मथुरा, बोधगया, काशी समेत कई स्थानों पर खुदाई का कार्य करवाया था।
प्राचीन काल में गहन रुचि
कनिंघम को शुरुआत से ही प्राचीन काल में गहन रुचि थी। 1842 में उन्होंने 1851 में संकिसा और सांची में खुदाई की।1865 में उनके विभाग को समाप्त कर दिए जाने के बाद, कनिंघम इंग्लैंड लौट आए और उन्होंने भारत के अपने प्राचीन भूगोल (1871) का पहला भाग लिखा, जिसमें बौद्ध काल शामिल था। 1870 में, लॉर्ड मेयो ने कनिंघम के साथ 1 जनवरी 1871 से महानिदेशक के रूप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को फिर से स्थापित किया। फिर वे भारत लौट आए और अपने प्रबंधन के तहत 24 रिपोर्टें, 13 को लेखक और बाकी लोगों के रूप में तैयार किया।
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30 सितंबर 1885 को पुरातत्व सर्वेक्षण से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने शोध और लेखन को पूरा करने के लिए वह लंदन वापस लौट आए। 1887 में, उन्हें नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर बनाया गया था। 28 नवंबर 1893 को लंदन में कनिंघम ने आखिरी सांस ली।