TRENDING TAGS :
बचपन में लगा टीका बचाएगा कोरोना वायरस से! बड़ा सवाल और उम्मीद
पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. केएस रेड्डी के अनुसार “बीसीजी टीकाकरण का कोई प्रत्यक्ष एंटीवायरल प्रभाव नहीं है लेकिन बीसीजी एक इम्युनोपोटेंटाइटर हो सकता है जो शरीर को वायरस का बेहतर प्रतिरोध करने में सक्षम बनाता है। हालाँकि, हमें और मजबूत सबूत चाहिए जो कुछ देशों में शुरू किए गए रोकथाम परीक्षणों में हो सकते हैं।”
नीलमणि
“जमाने से टीबी के खिलाफ इस्तेमाल किया जाने वाला बीसीजी वैक्सीन अचानक सुर्खियों में है। एक स्टडी का कहना है कि कुछ देशों में कोविड-19 के प्रसार का कोई नाता उन देशों में बड़े पैमाने पर बीसीजी टीकाकरण से जरूर है।“
लखनऊ। 1960 तक भारत में लाखों लोगों के लिए बीसीजी एकमात्र वैक्सीन थी। ये ऐसी शुरुआत थी जिसने देश में टीकों की अवधारणा को पेश किया था। टीबी रोग के बोझ को कम करने के लिए 1948 में एक सीमित प्रोजेक्ट के तहत बीसीजी की शुरुआत हुई और फिर देश भर में इसका विस्तार किया गया।
अब वर्ष 2020 में ये सवाल और उम्मीद खड़ी हुई है क्या सदियों पुराना बीसीजी टीका कोरोन वायरस कोविड-19 बीमारी से भी बचाता है? यह ऐसा सवाल है जिस पर दुनिया भर में वैज्ञानिक चर्चा कर रहे हैं। इस चर्चा की शुरुआत तब हुई जब स्टडी में ऐसा दावा किया गया। लेकिन शोधकरतों के अन्य समूह ने इसका खंडन भी किया है।
बीसीजी है क्या
बैसिलस कैलमेट-गुएरिन (बीसीजी) टीका माइकोबैक्टीरियम बोविस से निकाला गया जीवित स्ट्रेन है। दुनिया भर में तपेदिक के टीके के रूप में इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता रहा है। एक जीवित स्ट्रेन टीके का मतलब है कि यह एक रोग ज़नक़ जीवाणु का उपयोग करता है जिसकी बीमारी पैदा करने की शक्ति कृत्रिम रूप से अक्षम कर दी गई है। लेकिन इसकी चारित्रिक पहचान को वैसे का वैसा रखा गया है ताकि शरीर का इम्यून सिस्टम स्टार्ट करने में मदद मिलती रहे।
भारत में शुरुआत
बीसीजी वैक्सीन के साथ भारत में आजादी के बाद टीकों के प्रवेश करने की कहानी जुड़ी हुई है। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में 2014 के एक लेख में बताया गया था कि "मई 1948 में भारत सरकार ने एक प्रेस नोट जारी किया जिसमें कहा गया था कि देश में टीबी एक महामारी बन रही है। टीबी पर नियंत्रण पाने के उपाय के तहत सरकार ने ‘सावधानीपूर्वक विचार के बाद' सीमित पैमाने पर बीसीजी टीकाकरण शुरू करने का फैसला लिया था।
तमिलनाडु में बनी प्रयोगशाला
1948 में तमिलनाडु के किंग इंस्टीट्यूट, गुंडी, मद्रास (चेन्नई) में बीसीजी वैक्सीन प्रयोगशाला की स्थापना की गई थी। अगस्त 1948 में भारत में पहला बीसीजी टीकाकरण किया गया था। भारत में बीसीजी पर काम 1948 में दो केंद्रों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू हुआ था। 1955-56 तक बीसीजी टीकाकरण एक जन अभियान बन चुका था और इसके तहत भारत के सभी राज्यों को कवर किया गया। आज भी बीसीजी यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल टीकों की लिस्ट का हिस्सा बना हुआ है।
क्या है कोविड-19 से नाता
न्यूयॉर्क इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनवाईआईटी) के शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के वैश्विक प्रसार का विश्लेषण किया और इस डेटा की तुलना दुनिया में बीसीजी के आंकड़ों के साथ की। विश्लेषण में ये देखा गया कि किन देशों में बीसीजी वैक्सीन कवरेज है और कहाँ नहीं है। शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जिन देशों में सार्वभौमिक रूप से बीसीजी का टीका लगाने की नीति है वहाँ अमेरिका की तुलना में कोविड-19 के मामलों की संख्या कम है। अमेरिका में टीबी की घटनाओं में कमी आने के बाद सार्वभौमिक बीसीजी टीकाकरण को बंद कर दिया गया था।
इटली में नहीं लगता है बीसीजी का टीका
इटली, जहां कोविड-19 मृत्यु दर बहुत अधिक है वहाँ कभी भी सार्वभौमिक बीसीजी टीकाकरण लागू नहीं किया गया। दूसरी ओर, जापान ने सोशल डिस्टेन्सिंग सख्त तरीके से लागू नहीं करने के बावजूद कोविड-19 मृत्यु दर को कम बनाए रखा है। जापान 1947 से बीसीजी टीकाकरण को लागू कर रहा है। ईरान को भी कोविड -19 से भारी नुकसान हुआ है। इसने अपनी सार्वभौमिक बीसीजी टीकाकरण नीति की शुरुआत 1984 में ही कर दी थी, जिससे संभावित रूप से 36 साल से अधिक का कोई भी व्यक्ति सुरक्षित नहीं था।
इसे भी पढ़ें
ये हैं कोरोना के वीर ; बचाई हजारों जिंदगियां, अब दुनिया कर रही सलाम
चीन में भी लगता है बीसीजी
शोधकर्ताओं ने लिखा है – “1950 के दशक से सार्वभौमिक बीसीजी नीति होने के बावजूद कोविड-19 चीन में क्यों फैल गया, ये बड़ा सवाल है। दरअसल, सांस्कृतिक क्रांति (1966-1976) के दौरान टीबी की रोकथाम और उपचार एजेंसियों को भंग कर दिया गया था। इससे अनुमान लगाया गया है कि इससे कोरोना वायरस के संभावित मेजबान लोगों का एक समूह बन गया होगा। जो प्रभावित हुआ और कोविड-19 के प्रसार का कारण बना। हालांकि चीन की स्थिति में सुधार हो रहा है।
सांस की बीमारियों से बचाता है
शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि बीसीजी का टीका बड़ी संख्या में श्वसन रोगों के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रदान करने वाला पाया गया है। शोधकर्ताओं ने ये भी कहा है कि बीसीजी टीके और कोविड-19 के सबंध के बारे में परीक्षण किया जाना चाहिए। ताकि ये सही सही पता चल सके कि ये यह कोरोनो वायरस के खिलाफ सुरक्षा प्रदान कर सकता है या नहीं।
इसे भी पढ़ें
पुणे में कोरोना से एक दिन में तीन लोगों की मौत, धारावी में एक और पॉजिटिव केस
व्यापक सुरक्षा
शोधकर्ताओं ने लिखा है - “बीसीजी टीकाकरण वायरल संक्रमण और सेप्सिस के खिलाफ व्यापक सुरक्षा कवच तैयार करता है। इससे ये संभावना बनती है कि बीसीजी का सुरक्षात्मक प्रभाव सीधे कोविड-19 पर नहीं होता बल्कि ये बीमारी के साथ आने वाले अन्य संक्रमण या सेप्सिस पर प्रभाव डालता हो। हालांकि, हमने यह भी पाया कि बीसीजी टीकाकरण जिन देशों में व्यापकता से होता आया है वहाँ कोविड-19 के संक्रमण में कमी रही है। यानी बीसीजी कोविड-19 के खिलाफ विशेष रूप से कुछ सुरक्षा प्रदान कर सकता है।“
दावे की आलोचना
एनवाईआईटी अध्ययन के दिनों के भीतर मैकगिल इंटरनेशनल टीबी सेंटर, मॉन्ट्रियल के शोधकर्ताओं ने एक आलोचनात्मक लेख लिखा। इसमें एनवाईआईटी अध्ययन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए। ये कहा गया है कि एनवाईआईटी अध्ययन में अनुमान ज्यादा लगाए गए हैं।
मैकगिल इंटरनेशनल के शोधकर्ताओं ने लिखा : “इस बात का हवाला देना ठीक नहीं कि इस बात के सबूत हैं कि सौ साल पुरानी वैक्सीन व्यक्तियों में प्रतिरक्षा को बढ़ावा दे सकती है और कोविड-19 के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती है या उसकी गंभीरता को कम करती है। जनता को गलत जानकारी देने वाले ऐसे चित्रणों के खतरों को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, भारत जैसे देशों में, उनकी सार्वभौमिक टीकाकरण नीति द्वारा प्रस्तावित व्यापक बीसीजी कवरेज सुरक्षा की गलत भावना पैदा कर सकता है और निष्क्रियता पैदा कर सकता है। ”
इसे भी पढ़ें
कोरोना पर चौंकाने वाला खुलासा: ब्रिटेन के इस वैज्ञानिक ने कही ये बड़ी बात
मैकगिल शोधकर्ताओं के तर्कों में से एक बात यह है कि जब एनवाईआईटी विश्लेषण किया गया था, तब तक कोविड-19 का प्रसार वास्तव में गरीब और निम्न आय वाले देशों में नहीं हुआ था। यह प्रसार बाद में हुआ। उदाहरण के लिए, भारत में कोविड-19 के मामले 31 मार्च को 195 से बढ़कर 21 मार्च को 1,071 हो गए। दक्षिण अफ्रीका में 31 मार्च को मामलों की संख्या 205 से बढ़कर 21,326 हो गई। 3 अप्रैल को भारत के मामले 2,500 को पार कर गए।
पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. केएस रेड्डी के अनुसार “बीसीजी टीकाकरण का कोई प्रत्यक्ष एंटीवायरल प्रभाव नहीं है लेकिन बीसीजी एक इम्युनोपोटेंटाइटर हो सकता है जो शरीर को वायरस का बेहतर प्रतिरोध करने में सक्षम बनाता है। हालाँकि, हमें और मजबूत सबूत चाहिए जो कुछ देशों में शुरू किए गए रोकथाम परीक्षणों में हो सकते हैं।”