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बिखरते कुनबे से कांग्रेस बेहालः क्या भाजपा है इससे अछूती, क्यों होता है ये

आखिर क्या कारण है कि कांग्रेस नेतृत्व को बार-बार बागियों के संकट का सामना करना पड़ता है। गहराई से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि किसी भी बात को लेकर असंतोष या नाराजगी की सुगबुगाहट पर भी भाजपा नेतृत्व हरकत में आ जाता है जबकि कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है।

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Published on: 20 July 2020 2:21 PM IST
बिखरते कुनबे से कांग्रेस बेहालः क्या भाजपा है इससे अछूती, क्यों होता है ये
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अंशुमान तिवारी

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: मौजूदा राजस्थान संकट से पहले भी कांग्रेस को विभिन्न राज्यों में बागियों की दिक्कतों से जूझना पड़ा है। कर्नाटक, मध्यप्रदेश और अब राजस्थान, इन तीन बड़े राज्यों में बागी विधायकों ने कांग्रेस आलाकमान की नाक में दम कर दिया। आखिर क्या कारण है कि कांग्रेस नेतृत्व को बार-बार बागियों के संकट का सामना करना पड़ता है जबकि भाजपा आमतौर पर ऐसे संकटों से दूर रहती है। इसका गहराई से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि किसी भी बात को लेकर असंतोष या नाराजगी की सुगबुगाहट पर भी भाजपा नेतृत्व हरकत में आ जाता है जबकि कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है।

मणिपुर में भाजपा ने ऐसे सुलझाया संकट

अभी पिछले दिनों मणिपुर में ए बीरेन सिंह की अगुवाई वाली भाजपा सरकार के सामने संकट खड़ा हो गया था। नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के चार विधायकों ने भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेते हुए सरकार गिराने की धमकी दी थी। एनपीपी की धमकी के बाद भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व तुरंत हरकत में आ गया। भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तुरंत असंतुष्ट विधायकों और एनसीपी के चीफ कोनार्ड संगा से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद 17 जून को पैदा हुए संकट को 25 जून को सुलझा लिया गया।

कर्नाटक और हरियाणा में भी सुलझ गई समस्या

कर्नाटक में भी गत फरवरी में ऐसा ही संकट पैदा होने के आसार दिख रहे थे जब भाजपा के कई नेता कैबिनेट में जगह न मिलने के कारण नाराज थे। कर्नाटक में भी भाजपा नेतृत्व तुरंत हरकत में आया और उसने नाराज विधायकों से मुलाकात करने के बाद संकट को टाल दिया। हरियाणा में भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और वरिष्ठ मंत्री अनिल बिज के बीच मतभेद पैदा हो गए थे मगर भाजपा नेतृत्व ने यह संकट भी सुलझा लिया।

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राजस्थान में शुरू से ही था मतभेद

अब अगर कांग्रेस को देखा जाए तो राजस्थान में सचिन पायलट की शुरू से ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ पटरी नहीं बैठ रही थी। सचिन और उनके साथी विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से काफी दिनों से नाराज चल रहे थे। दोनों के बीच मतभेद की खबरें दिल्ली भी पहुंची थीं मगर कांग्रेस आलाकमान ने आ बैल मुझे मार वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए संकट को विस्फोट की सीमा तक बढ़ने दिया। जब पानी नाक से ऊपर पहुंच गया तो सचिन पायलट अपने साथी विधायकों को लेकर दिल्ली पहुंच गए और राजस्थान सरकार के लिए संकट पैदा कर दिया।

मध्यप्रदेश में भी नहीं चेता कांग्रेस नेतृत्व

राजस्थान से पहले मध्य प्रदेश में भी पार्टी को बड़ी बगावत का सामना करना पड़ा था। फिर भी कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व नहीं चेता। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में 22 विधायकों ने इस्तीफा देकर राज्य में भाजपा सरकार की वापसी का रास्ता साफ कर दिया। सियासी जानकारों का कहना है कि यदि कांग्रेसी नेतृत्व ने सक्रियता दिखाई होती तो मध्यप्रदेश में पैदा हुए संकट को भी टाला जा सकता था। मध्यप्रदेश में अभी भी कांग्रेस का संकट दूर नहीं हुआ है और हाल में एक और पार्टी विधायक ने भाजपा की सदस्यता ले ली है। अभी कुछ और कांग्रेस विधायकों के भाजपा में जाने की चर्चाएं जोरों पर हैं।

भाजपा इस तरह सुलझाती है समस्या

भाजपा के महासचिव और हरियाणा- छत्तीसगढ़ के प्रभारी अनिल जैन का कहना है कि हमारी पार्टी में शिकायतों के निपटारे के लिए कई सिस्टम विकसित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि हमारे यहां फैसले सामूहिक रूप से लिए जाते हैं, किसी व्यक्ति की पसंद पर नहीं। इसी कारण पार्टी में टकराव जैसी स्थिति नहीं पैदा हो पाती। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी विचारधारा पर आधारित है और यहां व्यक्ति केंद्रीय नेतृत्व नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां राज्य के नेताओं में मतभेद पैदा होने पर हम उसे दूर करने के लिए तुरंत सक्रिय हो जाते हैं।

लोकतांत्रिक रूप से होते हैं फैसले

भाजपा महासचिव और बिहार के प्रभारी भूपेंद्र यादव का भी कहना है कि हमने पार्टी में शिकायतों को दूर करने के लिए रास्ते बना रखे हैं और हमारे यहां फैसले लोकतांत्रिक रूप से लिए जाते हैं। उनका यह भी कहना है कि भाजपा और कांग्रेस में एक बड़ा अंतर यह भी है कि भाजपा में फैसला लेने की सर्वोच्च इकाई संसदीय बोर्ड है जबकि कांग्रेस में हर महत्वपूर्ण फैसला गांधी परिवार ही लेता है।

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संघ भी भाजपा के लिए सेफ्टी वाल्व

एक और भाजपा नेता ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि भाजपा में एक तीसरी ताकत भी है जो कई बार सेफ्टी वाल्व के रूप में काम करती है। यह ताकत है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की। कई बार पार्टी के लोग आरएसएस पदाधिकारियों से अपने विचार साझा करते हैं और कई बार आरएसएस की ओर से भी संकट के समाधान का रास्ता निकलता है।

वैसे भाजपा में भी कुछ नेता मतभेद के बाद पार्टी छोड़ चुके हैं और ऐसे नेताओं में यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, कीर्ति आजाद और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नाम शामिल हैं, लेकिन राज्यों में पार्टी विधायकों की बगावत से महफूज रही है। कांग्रेसी नेता प्रणव झा का कहना है कि यह कहना गलत है कि उनकी पार्टी में शिकायतों को दूर करने का सिस्टम ठीक नहीं है। सच्चाई तो यह है कि भाजपा में मतभेदों को बलपूर्वक कुचलकर दूर किया जाता है।



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