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कोरोना: क्या अब पुरुषों को बचाएंगे महिलाओं के सेक्स हार्मोन? वैज्ञानिक कर रहे शोध
महिलाओं की मृत्युदर पुरुषों की अपेक्षा काफी कम है। अब वैज्ञानिक ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या महिलाओं में पाए जाने वाले सेक्स हॉर्मोन एक्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन के कारण वे वायरस से कुछ हद तक सुरक्षित हैं।
नई दिल्ली: दुनियाभर में कोरोना तेजी से कहर बरपा रहा है। पूरी दुनिया में अब तक 31 लाख 30 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हो चुके हैं, जबकि 2 लाख 15 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। लेकिन इन सब के बीच एक बात सामने निकल कर आई है कि महिलाओं की मृत्युदर पुरुषों की अपेक्षा काफी कम है। अब वैज्ञानिक ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या महिलाओं में पाए जाने वाले सेक्स हॉर्मोन एक्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन के कारण वे वायरस से कुछ हद तक सुरक्षित हैं। जिससे पता लगाया जा सके कि महिलाओं के सेक्स हार्मोंस से पुरुषों को कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने में मदद मिल सकती है।
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चीन के शोधकर्ताओं ने फरवरी में कोरोना के कारण मृत्युदर निकालने पर देखा कि वायरस 2.8% पुरुषों में मौत की वजह बना, जबकि महिलाओं में ये दर 1.7% थी। ये स्टडी 44,600 मरीजों पर की गई थी। इस पर वैज्ञानिकों ने पता किया तो जो जानकारी सामने आई उससे आप हैरान हो जाएंगे। कालांकि इसके पीछे का कारण पुरुषों की लाइफस्टाइल और प्रदूषण से उनका रोजाना होने वाला सामना भी हो सकता है।
महिलाओं का इम्यून पुरुषों की तुलना में ज्यादा मजबूत
डॉक्टरों के मुताबिक पुरुष ज्यादा नशा करते हैं। साथ ही उनका सामना प्रदूषण से ज्यादा होता है। इसलिए महिलाओं की तुलना में उनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है। लंदन में ग्लोबल पब्लिक हेल्थ की प्रोफेसर ने कहा कि यह बात तो सही है कि महिलाओं का इम्यून सिस्टम पुरुषों की तुलना में ज्यादा मजबूत होता है। इसके पीछे दो सेक्सुअल हार्मोंस हैं, जिन्हें एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन कहा जाता है। उन्होंने कहा कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन हार्मोंस बेहद कम होते हैं। इन्हीं दोनों हार्मोंस की वजह से महिलाओं में किसी भी संक्रमण से लड़ने की क्षमता विकसित होती है।
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जिसपर वैज्ञानिक जानने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या वाकई महिलाओं के सेक्सुअल हॉर्मोंस से पुरुषों को कोरोना वायरस से बचाया जा सकता है। क्या इसकी मदद से पुरुषों की बीमारियों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इस पर स्टोनी ब्रुक्स यूनिवर्सिटी की डॉ. शैरॉन नैशमैन ने कहा कि हम एक कोरोना मरीजों के छोटे समून का एक क्लीनिकल ट्रायल लेंगे। इसके लिए हमें करीब 110 मरीज की आवस्यकता होगी।
डॉ. शैरॉन ने कहा कि इसके लिए हम सबसे पहले यह देखेंगे कि मरीजों में कम से कम कोई एक लक्षण बहुत ज्यादा तीव्र हो। जैसे- बुखार, निमोनिया, सांस लेने में दिक्क्त आदि। इसमें 18 से लेकर 55 साल तक के कोरोना पीड़ित पुरुष और महिलाएं शामिल होंगी।
महिलाओं की जेनेटिक संरचना
साथ ही यह भी माना जा रहा है कि महिलाओं की जेनेटिक संरचना भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है, जिसमें दो X क्रोमोजोम होते हैं। इन्हीं X क्रोमोजोम्स में इम्यून स्सिटम को मजबूत बनाने वाले ज्यादातर जीन्स होते हैं। जबकि Y क्रोमजोम में ये तुलनात्मक तौर पर कम होते हैं। इसी वजह से बीमारियों से लड़ने में उनका इम्यून पुरुषों की अपेक्षा बेहतर काम करता है। इस थ्योरी के साथ-साथ अब वैज्ञानिक सेक्स हार्मोन पर भी स्टडी कर रहे हैं।
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