×

सुचेता कृपलानी: देश की पहली महिला मुख्यमंत्री, संभाली थी इस बड़े राज्य की कमान

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की समर्थक सुचेता उन 15 भारतीय महिलाओं में से एक थीं जिन्हें संविधान सभा के लिए चुना गया था। उन्होंने 1971 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था और तीन साल बाद 1974 में आज ही के दिन उनका निधन हुआ था।

Newstrack
Published on: 1 Dec 2020 5:18 AM GMT
सुचेता कृपलानी: देश की पहली महिला मुख्यमंत्री, संभाली थी इस बड़े राज्य की कमान
X
सुचेता कृपलानी: देश की पहली महिला मुख्यमंत्री, संभाली थी इस बड़े राज्य की कमान

लखनऊ: स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने वाली सुचेता कृपलानी को देश की पहली मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल है। उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया था। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की समर्थक सुचेता उन 15 भारतीय महिलाओं में से एक थीं जिन्हें संविधान सभा के लिए चुना गया था। उन्होंने 1971 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था और तीन साल बाद 1974 में आज ही के दिन उनका निधन हुआ था।

परिवार को संभालने की जिम्मेदारी

सुचेता का जन्म 25 जून 1908 में अंबाला में हुआ था और वे स्वतंत्रता संग्राम से उस समय जुड़ीं जब यह संग्राम अपने चरम पर पहुंच चुका था। कॉलेज से निकलने के बाद वे युवावस्था में ही स्वाधीनता संग्राम में कूदना चाहती थीं मगर 1929 में अपने पिता और बहन की मृत्यु के कारण वे ऐसा नहीं कर सकीं। परिवार को संभालने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। तब उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षक के रूप में नौकरी शुरू की।

ये भी पढ़ें: राजीव दीक्षितः मौत से पर्दा कब उठेगा, बाबा रामदेव के इस साथी की

विद्यार्थियों को पढ़ाने के दौरान सुचेता स्वतंत्रता संग्राम का महत्व समझाया करती थीं। इस विश्वविद्यालय में ही उनकी मुलाकात आचार्य जे बी कृपलानी से हुई थी जो स्वतंत्रता आंदोलन के जाने-माने नेता थे और बाद में उनके जीवन साथी बने।

महात्मा गांधी ने किया था विरोध

1938 में जब उन्होंने आचार्य कृपलानी से शादी करने का फैसला किया तब उनके परिवार के साथ ही महात्मा गांधी ने भी उनके इस फैसले का विरोध किया। दरअसल सुचेता और जे बी कृपलानी की उम्र में 20 वर्ष का अंतर था मगर सुचेता अपने फैसले पर अडिग रहीं। हालांकि उनके मन में महात्मा गांधी के प्रति असीम सम्मान था मगर उनके विरोध के बावजूद उन्होंने आचार्य जेबी कृपलानी से ही शादी की।

File photo

सुचेता ने राष्ट्रपिता को यह दिया था जवाब

जानकारों के मुताबिक गांधी जी को इस बात का डर सता रहा था कि कहीं शादी के कारण आचार्य स्वतंत्रता संग्राम के पीछे न हट जाएं। जब उन्होंने सुचेता को किसी और से विवाह करने का सुझाव दिया तो सुचेता का जवाब था कि ऐसा करना अनैतिक और बेईमानी होगी। आखिरकार दोनों शादी के बंधन में बंध गए। आचार्य कृपलानी से विवाह के बाद सुचेता पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गईं।

भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी

1940 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महिला शाखा अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की स्थापना की। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें एक साल के लिए जेल भी जाना पड़ा।

सुचेता कृपलानी ने खुद लिखा है कि मैं जेल जाने वालों के आगे खुद को छोटा महसूस करती थी क्योंकि मैंने कभी जेल का जीवन नहीं देखा था। आखिरकार 1942 के आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें जेल की सीखचों के पीछे भेज दिया।

आजादी के बाद राजनीति में सक्रियता

आजादी के बाद सुचेता ने भारतीय राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। जब उनके पति आचार्य जेबी कृपलानी मतभेदों के चलते पंडित जवाहरलाल नेहरू से अलग हो गए और अपनी खुद की किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई तब सुचेता भी उनके साथ ही इस पार्टी से सक्रिय हो गईं।

File Photo

1952 में सुचेता ने किसान मजदूर पार्टी की ओर से नई दिल्ली से चुनाव लड़ा और विजय हासिल की। बाद में वे राजनीतिक मतभेदों के चलते फिर कांग्रेस में लौट आईं और 1957 में कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से दोबारा चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की। जानकारों का कहना है कि दोनों पति पत्नी अलग-अलग राजनीतिक विचारों के प्रति निष्ठावान थे पर दोनों ने कभी एक-दूसरे से सवाल नहीं किए।

ये भी पढ़ें: ज्योतिराव फुले पुण्यतिथि: दलित उत्थान के महात्मा, समाज के लिए किये अनेक कार्य

सुचेता ने संभाली उत्तर प्रदेश की कमान

सुचेता कृपलानी ने 1963 से 1967 तक देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली। इस दौरान उन्होंने राज्य के आर्थिक घाटे पर लगाम लगाने के साथ ही प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता बनाए रखने का पूरा प्रयास किया।

बाद में उन्होंने उत्तर प्रदेश की गोंडा लोकसभा सीट से भी चुनाव जीता। 1971 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और 3 साल बाद 1 दिसंबर 1974 को उनका निधन हो गया। देश के इतिहास में उन्हें आज भी प्रभावी राजनेता के रूप में याद किया जाता है।

अंशुमान तिवारी

Newstrack

Newstrack

Next Story