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Diwali 2020: आखिर क्या है नरक चतुर्दशी का महत्व, क्यों मनाया जाता है यह पर्व

सनातन धर्म के पर्वो में सबसे बड़ा पर्व दीपावली को ही माना जाता है जो कि कई दिनों तक चलता है। इसे पांच पर्वों की श्रृंखला कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। धनतेरस एवं दीपावली के पहले नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली मनाई जाती है।

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Published on: 13 Nov 2020 4:04 AM GMT
Diwali 2020: आखिर क्या है नरक चतुर्दशी का महत्व, क्यों मनाया जाता है यह पर्व
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Diwali 2020: आखिर क्या है नरक चतुर्दशी का महत्व, क्यों मनाया जाता है यह पर्व

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: सनातन धर्म के पर्वो में सबसे बड़ा पर्व दीपावली को ही माना जाता है जो कि कई दिनों तक चलता है। इसे पांच पर्वों की श्रृंखला कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। धनतेरस एवं दीपावली के पहले नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली मनाई जाती है। पंडितों का कहना है कि इस बार नरक चतुर्दशी और दीपावली का एक साथ संयोग लगभग 500 साल बाद पड़ने जा रहा है। नरक चतुर्दशी कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आती है और दीवाली अमावस्या को लेकिन इस बार दोनों एक ही दिन है।

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एक ही दिन दीवाली और नरक चतुर्दशी

14 नवंबर को ही छोटी और बड़ी दीवाली मनाई जाएगी। इस बार 14 नवंबर को दोपहर 2.18 बजे तक चतुर्दशी है और फिर अमावस्या शुरु हो जाएगी। दोपहर 2.19 मिनट से अगले दिन 15 नवंबर को सुबह 10.36 बजे तक ही रहेगी। इसीलिए दीवाली और नरक चतुर्दशी दोनों एक ही दिन होगी।

ये है मान्यता

नरक चतुर्दशी को लेकर कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता यह भी है कि पौराणिक कथा है कि इसी दिन कृष्ण ने एक दैत्य नरकासुर का संहार किया था। एक और मान्यता है कि पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा रंति देव को जब यमदूत नरक ले जाने लगे तो उन्होंने पूछा कि मैने ऐसा क्या कर दिया कि मुझे नरक ले जा रहे तो यमदूतों ने बताया कि कि एक बार आपके द्वार से एक ब्राम्हण भूखा ही लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है।

तब ऋषियों ने बताया कि कार्तिक मास की चतुर्दशी को व्रत रखने के बाद ब्राह्मण भोज कराएंगे तो आप इस पाप से मुक्त हो जाएंगे। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति के लिए इस धरती पर कार्तिक चतुर्दशी का व्रत चला आ रहा है। इसमें सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नानादि से निपट कर यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित करने की परम्परा है। इसके बाद संध्या के समय दीपक जलाए जाते हैं।

चैदस की रात माता काली की होती है पूजा

हर साल कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी यानी कि चैदहवें दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन को काली चौदस भी कहते हैं। काली चैदस की रात माता काली की पूजा होती है। पूरे भारतवर्ष में रूप चतुर्दशी का पर्व यमराज के प्रति दीप प्रज्ज्वलित कर, यम के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए मनाया जाता है।

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मान्यता है कि सभी प्रकार के नरक से मुक्त कराने का कार्य यम करते हैं। इसलिए, नरक चतुर्दशी की रात को यम के नाम का दीया जलाया जाता है। साथ ही घर से निकाल कर एक दिए को कूड़े के ढेर पर भी रखा जाता है। कूड़े के ढेर पर दीया रखने से आशय घर से गंदगी को हटाना है।

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