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लाॅकडाउन में ऐसे मन रही ईद, जानिए क्यों मनाया जाता है ये त्योहार

देश भर में आज ईद का त्योहार मनाया जा रहा है। रमजान खत्म होते ही जो ईद मनाई जाती है, उसे ईद-उल-फितर कहा जाता है  । ईद के दिन खास रौनक होती है। इस दिन मस्जिदों को सजाया जाता है, लोग नए कपड़े पहनते हैं

suman
Published on: 25 May 2020 10:41 AM IST
लाॅकडाउन में ऐसे मन रही ईद, जानिए क्यों मनाया जाता है ये त्योहार
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नई दिल्ली : आज ईद का त्योहार मनाया जा रहा है। रमजान खत्म होते ही जो ईद मनाई जाती है, उसे ईद-उल-फितर कहा जाता है। रमजान के 30 रोजों के बाद चांद देखकर ईद मनाई जाती है। ईद का मतलब होता है खुशी मनाना। मुस्लिमों का सबसे बड़ा त्योहार इस दिन मस्ज़िद में नमाज़ अदा कर एक-दूसरे से गले मिल कर ईद की मुबारकबाद दी जाती है। ईद का त्योहार भाईचारे को बढ़ावा देने वाला और बरकत के लिए दुआएं मांगने वाला है।

ईद के दिन खास रौनक होती है। इस दिन मस्जिदों को सजाया जाता है, लोग नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे से गले लगकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। हालांकि इस बार लॉकडाउन के चलते ये रौनक थोड़ी फीकी पड़ गई है।कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से ना तो लोग गले मिल सकेंगे और ना ही मस्जिद जाकर नमाज अदा कर पाएंगे। इस बार की ईद ज्यादातर लोग अपने घरों में ही मना रहे हैं। जानते हैं कि आखिर ईद क्यों मनाई जाती है और इसकी शुरुआत कैसे हुई।

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पवित्र कुरान के अनुसार, रजमान के पाक महीने में रोजे रखने के बाद अल्लाह इस दिन अपने बंदों को बख्सीश और इनाम देता है। इसलिए इस दिन को ईद कहते है। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे धूमधाम से मानाई जाती है।मुसलमान ईद के दिन खुदा का शुक्रिया अदा करते है कि उन्होंने महीनेभर उपावस रखने की ताकत दी। ईद पर एक खास रकम जिसे जकात कहते हैं जो गरीबों और जरूरतमंदों के लिए निकाल दी जाती है। नमाज के बाद परिवार में सभी लोगों का फितरा दिया जाता है, जिसमें 2 किलो ऐसी चीज दी जाती है जो प्रतिदिन रखने की हो।

पहली ईद उल-फितर पैगंबर मुहम्मद ने सन 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था। पैगंबर हजरत मुहम्मद ने बद्र के युद्द में विजय प्राप्त की थी। उनके विजय होने की खुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है।

ईद प्‍यार और सद्भावना का त्‍योहार है। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त, नए कपड़े भी पहने जाते हैं, और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। ईद उल-फ़ितर के दौरान ही झगड़ों ख़ासकर घरेलू झगड़ों को निबटाया जाता है।ईद के दिन मस्जिद में सुबह की प्रार्थना से पहले, हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान करे।

ईद-उल-फितर' दरअसल दो शब्द हैं। 'ईद' और 'फितर'. असल में 'ईद' के साथ 'फितर' को जोड़े जाने का एक खास मकसद है। वह मकसद है रमजान में जरूरी की गई रुकावटों को खत्म करने का ऐलान। साथ ही छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सबकी ईद हो जाना। यह नहीं कि पैसे वालों ने, साधन-संपन्न लोगों ने रंगारंग, तड़क-भड़क के साथ त्योहार मना लिया व गरीब-गुरबा मुंह देखते रह गए।

शब्द 'फितर' के मायने चीरने, चाक करने के हैं और ईद-उल-फितर उन तमाम रुकावटों को भी चाक कर देती है, जो रमजान में लगा दी गई थीं। जैसे रमजान में दिन के समय खाना-पीना व अन्य कई बातों से रोक दिया जाता है। ईद के बाद आप सामान्य दिनों की तरह दिन में खा-पी सकते हैं। गोया ईद-उल-फितर इस बात का ऐलान है कि अल्लाह की तरफ से जो पाबंदियां माहे-रमजान में तुम पर लगाई गई थीं, वे अब खत्म की जाती हैं।

असल में ईद से पहले यानी रमजान में जकात अदा करने की परंपरा है। यह जकात भी गरीबों, बेवाओं व यतीमों को दी जाती है.इसके साथ फित्रे की रकम भी उन्हीं का हिस्सा है। इस सबके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है।

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कुरआन के अनुसार पैगंबरे इस्लाम ने कहा है कि जब अहले ईमान रमजान के पवित्र महीने के एहतेरामों से फारिग हो जाते हैं और रोजों-नमाजों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं तो अल्लाह एक दिन अपने उक्त इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है। इसलिए इस दिन को 'ईद' कहते हैं और इसी बख्शीश व इनाम के दिन को ईद-उल-फितर का नाम देते हैं।

रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस पूरे माह में रोजे रखे जाते हैं। इस महीने के खत्म होते ही 10वां माह शव्वाल शुरू होता है। इस माह की पहली चांद रात ईद की चांद रात होती है। इस रात का इंतजार वर्षभर खास वजह से होता है, क्योंकि इस रात को दिखने वाले चांद से ही इस्लाम के बड़े त्योहार ईद-उल-फितर का ऐलान होता है।

इस तरह से यह चांद ईद का पैगाम लेकर आता है। इस चांद रात को 'अल्फा' कहा जाता है। जमाना चाहे जितना बदल जाए, लेकिन ईद जैसा त्योहार हम सभी को अपनी जड़ों की तरफ वापस खींच लाता है और यह अहसास कराता है कि पूरी मानव जाति एक है और इंसानियत ही उसका मजहब है।



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