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आशियाने में सोशल डिस्टेंसिंग की एंट्री

कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे ने कमोबेश हर सेक्टर में उथल-पुथल मचा दी है। ऐसा ही एक सेक्टर है रियल इस्टेट। यहाँ भी ये सवाल लोगों को परेशान किए हुए है कि कल को कोरोना खत्म हो जाए और उसके जैसा कोई नया वायरस तबाही मचाने लगे तो क्या होगा?

suman
Published on: 9 May 2020 2:08 PM GMT
आशियाने में सोशल डिस्टेंसिंग की एंट्री
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे ने कमोबेश हर सेक्टर में उथल-पुथल मचा दी है। ऐसा ही एक सेक्टर है रियल इस्टेट। यहाँ भी ये सवाल लोगों को परेशान किए हुए है कि कल को कोरोना खत्म हो जाए और उसके जैसा कोई नया वायरस तबाही मचाने लगे तो क्या होगा?

इन्हीं चिंताओं और भविष्य के खतरों को देखते हुए देश-दुनिया के आर्किटेक्ट स्थायी सोशल डिस्टेंसिंग की एंट्री को लेकर मंथन करने लगे हैं। चर्चा इस बात पर होने लगी हैं कि भविष्य के मकान में सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन कैसे हो। किस ततरह का कन्स्ट्रकशन अब होना चाहिए क्योंकि पारंपरिक निर्माण अब नहीं चलने वाला।

देश-दुनिया के आर्किटेक्ट अब सेटेलाइट टाउनशिप से लेकर जीरो वेस्ट मैनेजमेंट पर भी चर्चा कर रहे हैं। फ्लैट के बीच दूरी, धूप और ताजी हवा की उपलब्धता के बीच के बीच कोरोना जैसे वायरस प्रूफ घरों का भविष्य देखा जा रहा है।

वेबिनार पर मंथन

प्लानिंग, कन्स्ट्रकशन और मैनेजमेंट के नए आयामों पर आर्किटेक्ट एक दूसरे से विचार विमर्श करने के साथ नए आइडिया का आदान प्रदान कर रहे हैं। इसी विषय पर मंथन को लेकर लॉकडाउन में आर्किटेक्ट का ज्यादातर समय वेबिनार में गुजर रहा है। वेबिनार सेमिनार का हाईटेक संस्करण है। जहां देश-दुनिया के विशेषज्ञ स्मार्टफोन पर एक दूसरे से लाइव जुड़ते हैं। पिछले 40 दिनों से देश-दुनिया के नामी आर्किटेक्ट के बीच वेबिनार के जरिये भविष्य के निजी मकान और टाउनशिप को लेकर मंथन हो रहा है। कोरोना संक्रमण की दिक्कतों को देखते हुए भविष्य के मकान को लेकर आर्किटेक्ट खूब वेबिनार अटेंड कर रहे हैं।

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लाइफ आफ्टर कोविड

‘लाइफ ऑफ्टर कोविड-19’ और ‘कोविड-19 ऑपरट्यूनिटी फॉर संस्टेबल डेवलेपमेंट’ जैसे विषयों पर देश-दुनिया के आर्किटेक्ट के साथ शहर के प्रमुख आर्किटेक्ट रोज तीन से चार घंटे तक मंथन कर रहे हैं। बीते 30 अप्रैल को ह्यूमन एसेट मैनेजमेंट कंसलटेंट फासिंस रिबेलियो की अगुवाई में वेबिनार में कोविड-19 के बाद के काल में मकान कैसे होने चाहिए, इस बात को लेकर चर्चांए हुईं।

अब वायरस प्रूफ निर्माण

अभी तक जहां मकानों में भूकंप रोधी, फायर रोधी जैसी मूलभूत सुविधा के साथ छोटी जगह में अधिक से अधिक जरूरतों को पूरा करने पर जोर होता था। अब मकान में सोशल डिस्टेंसिंग केन्द्रीय बिंदु हो गया है। दर्जन भर से अधिक वेबिनार में जुड़ चुके आर्किटेक्ट अशीष श्रीवास्तव बताते हैं कि ‘यूरोपियन, गल्फ और एशियाई देशों में फ्लैट की डिजाइनिंग की अलग-अलग दिक्कतें हैं। यूरोपीय देशों में अत्यधिक ठंड है तो गल्फ देशों में गर्मी। वहीं भारत में गर्मी और ठंड दोनों। सभी स्थितियों में ओपन एरिया, धूप और हवा का इंतजाम पहली शर्त है। फ्लैट के धनत्व को कम करने में सर्वाधिक जोर है। हालांकि इनमें मकान की कीमत बढ़ेगी। इसके लिए कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में टाउनशिप की संभावना देखनी होगी। आर्किटेक्ट कहते हैं कि चर्चा इस बात पर भी है कि घर में काम करने वाले घरेलू नौकरों के लिए ऐसी किचेन की डिजाइन हो, जिससे वह बिना घर में प्रवेश के ही अपना काम वापस चले जाएं।

जानेमाने आर्किटेक्ट अनुपम अग्रवाल का मानना है कि अब लोगों को मानचित्र में छोड़े गए ओपन एरिया पर कब्जे की सोच को छोड़ना होगा। वह कहते हैं कि मानचित्र में हवा और धूप के लिए पर्याप्त जगह छोड़ी जाती है, लेकिन लोग ओपेन एरिया पर निर्माण करा लेते हैं। जिंदगी की जंग जीतनी है तो ओपेन एरिया के साथ बालकनी की भी जगह छोड़नी होगी। सेंट्रली एयरकंडीशन को लेकर आ रही दिक्कतों को देखते हुए आधुनिक तकनीक के एसी का प्रयोग करना होगा। जिसमें एक कमरे की हवा दूसरे में प्रवेश नहीं करे। वेबिनार में जुड़े सभी विशेषज्ञ सहमत होते दिख रहे हैं कि घरों में प्रवेश के समय ही वॉशबेसिन, कपड़े और जूते उतारने की जगह छोड़ी जाएं। पानी के लिए फुट बटन हो जिससे घरों में वायरस के संभावित एंट्री को बाहर ही रोका जा सके। अग्रवाल मल्टीप्लेक्स, होटल से लेकर रेस्टोरेंट में सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर निर्माण में बदलाव की संभावना जताते हैं।

गांव की तरफ बढ़ेंगे शहर

आर्किटेक्ट संतोष शाही भी तीन वेबिनार में शामिल हो चुके हैं। बताते हैं कि अपार्टमेंट में फ्लैट आपस में चिपके होते हैं, वहीं व्यक्तिगत घर में वैक्टीरिया जनरेट होने की संभावना कम होती है। आपस में सटे फ्लैट सीलन के साथ ही हाइजीन नहीं होते हैं। अब सेटेलाइट टाउनशिप की संभावना देखी जा रही है। जिससे गांव और शहर के बीच बैलेंस भी बनेगा। इसके साथ ही मकान में टेरस फार्मिंग और वर्टिकल बागवानी भी समय की मांग है। सोसाइटियों में जीरो वेस्ट मैनेजमेंट पर जोर है। इसके साथ ही फ्लैट के बीच दूरी को लेकर भी चर्चा हो रही है। ऐसा होने से आमने-सामने रहते हुए भी लोग सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन कर सकेंगे। आर्किटेक्ट अशीष श्रीवास्तव कहते हैं कि नेशनल बिल्डिंग कोड के मुताबिक 24 मीटर की सड़क पर 330 फ्लैट वाले अपार्टमेंट बन सकते हैं। बदली परिस्थितियों में शहर के 20 से 30 किमी के दायरे में सेटेलाइट टाउनशिप पर बहस हो रही है। जहां फ्लैट के बीच दूरी भले ही कम हो, वहां स्कूल, अस्पताल, मल्टीप्लेक्स आदि की सुविधा होनी चाहिए। ऐसा इसलिए कि कोरोना जैसे संकट में एक ही जगह लोगों को सभी सुविधाएं मिल सकें।

दरवाजे आमने-सामने नहीं

कोरोना प्रूफ भविष्य के घरों का खाका कैसा होगा इसपर अभी से हो रहे मंथन पर कुछ बिंदुओं पर सहमति बन रही है। जैसे घरों के बाहर जूतों के लिए जगह हो और घर के बाहर ही एक वॉशबेसिन भी हो। नौकरों के लिए सेकेंड एग्जिट और कचरे के निस्तारण के लिए भी खास इंतजाम पर चर्चा हो रही है। हर कमरे में एक वॉशबेसिन और पानी के लिए फुट बटन भविष्य के घरों में जरूरी तत्व होगा। जीरो वेस्ट मैनेजमेंट, इको फ्रैंडली और किचेन गार्डेंन पर अधिक बजट खर्च करना होगा। इसके साथ ही छतों पर गार्डेन भी विकसित करने होंगे, ताकि बिना एसी के ही कमरे का तापमान सामान्य रहे। घरों में एंट्री प्वाइंट पर ही डोरबैक बनाने पर भी चर्चा हो रही है ताकि लोग बाहर ही कपड़े आदि उतारे जा सकें।

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महामारी अब साथ रहेगी

नए कोरोना वायरस की महामारी ने हमारे घर के बाहर की दुनिया को सुनसान जंगल में तब्दील कर दिया है। आधुनिक युग के शहरों की परिकल्पना, ऐसी महामारी को ध्यान में रख कर नहीं की गई थी। इक्कीसवीं सदी के पहले बीस बरसों में ही हमने सार्स, मर्स, इबोला, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू और अब कोविड-19 के रूप में कई महामारियां देख ली हैं। अगर ऐसा है कि अब मानवता, महामारी के युग में प्रवेश कर चुकी है, तो फिर हमें अब अपने शहरों की रूप-रेखा भी नए सिरे से बनानी होगी। ताकि, घर से बाहर निकलने पर पाबंदी न लगानी पड़े। घर से बाहर क़दम रखने में डर न लगे। हम बाहर जाएं तो सुरक्षित महसूस करें।

बॉक्स 2

लाने होंगे बदलाव

- शहर के कुछ हिस्सों में यातायात बंद कर के उन्हें वर्ज़िश के लिए खोल देना होगा।

- कुछ सड़कों में ट्रैफिक रोक देने से सोशल डिस्टेंसिंग के लक्ष्य ज़्यादा आसानी से हासिल होंगे।

- पैदल चलने वालों को ध्यान में रख कर योजना बनानी होगी, चौड़े फुटपाथ बनाने होंगे।

- हर शहर में हाथ धोने के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने होंगे।

- शिपिंग कंटेनर से इमारतें बनाने का बढ़ सकता है चलन।

- महामारी से निपटने के लिए शहरों में सेंसर लगाए जा सकेंगे, ताकि वो महामारी के प्रकोप को फैलने से रोकने में मदद कर सकें।

- हर शहर को आत्म निर्भर बनना होगा।

- रिहाइशी फ्लैट, बाज़ारों, दफ़्तरों को भी खुला बनाना होगा। जहां रोशनी और हवा के आने जाने की पर्याप्त सुविधा हो।

- घरों के भीतर संक्रमण ख़त्म करने की सुविधाओं वाले कोने भी बनाने पड़ सकते हैं।

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