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भारत के लिए 'अगस्त' खास, इन ऐतिहासिक फैसलों से जुड़ा नाम...
देश आज भले ही अपनी आजादी की 74वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा हो लेकिन मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में जिन तीन मुद्दो का हल होने से आम जनमानस को आजादी का अहसास हो रहा है उसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता है।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: देश आज भले ही अपनी आजादी की 74वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा हो लेकिन मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में जिन तीन मुद्दो का हल होने से आम जनमानस को आजादी का अहसास हो रहा है उसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता है। इन तीनों समस्याओं के जाल में उलझी देश की जनता को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुक्ति दिलाकर एक सुखद अहसास कराने का काम किया है।
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अगस्त का यह महीना हर मायने में ऐतहासिक बन गया है
अगस्त का यह महीना हर मायने में ऐतहासिक बन गया है। अब तक जहां यह महीना देश की आजादी के लिए हर साल याद रहता है वही अब मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक के छुटकारे, धारा 370 के खात्मे, और वर्षो बाद रामलला के भव्य मंदिर निर्माण के शिलान्यास के कारण नहीं अब यह महीना हर साल याद रखा जाएगा।
मोदी सरकार का दूसरे कार्यकाल को बेहद तेजी भरा कार्यकाल कहा जा रहा है। जिस तरह से पिछले साल मई के अंत में सरकार गठन के दो महीने बाद ही राज्यसभा में तीन तलाक का बिल पारित कराकर मुस्लिम महिलाओं को इस जटिल समस्या से मुक्त कराया। उसे लेकर न केवल मुस्लिम समाज में बल्कि दूसरे वर्गो में दासता की जंजीरों में जकडी मुस्लिम महिलाओं को इससे मुक्ति के लिए मोदी सरकार को सराहा गया। तीन तलाक का कानून बनने के बाद पिछले एक साल में तीन तलाक के मामलों में सत्तर फीसदी तक की गिरावट आई है। 'मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक' पिछले साल जुलाई में संसद के दोनों सदनों से पारित हुआ था।
एक अगस्त को तीन तलाक बिल लाया गया
एक अगस्त को तीन तलाक बिल लाया गया और फिर तीन तलाक को गैर-कानूनी करार दे दिया। केन्द्र सरकार के इस कानून के बाद से कोई भी मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी को बोलकर-लिखकर या किसी अन्य माध्यम से तीन तलाक नहीं दे सकता है। अब देश की मुस्लिम महिलाएं इस कानून से अपने आप को बहुत सुरक्षित महसूस करती हैं। लखनऊ की रहने वाले जीनत के मुताबिक, मुस्लिम महिलाओं पर हमेशा तीन तलाक की तलवार लटकी रहती थी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने तीन तलाक की कुप्रथा के खिलाफ विधेयक लाकर मुस्लिम महिलाओं को इज्जत की जिंदगी का हक सुनिश्चित किया है।
देश की आजादी के समय पैदा हुई धारा 370 की समस्या के हल की मांग वर्षो से होती रही पर किसी सरकार ने इस पर कभी कोई कदम उठाने की हिम्मत नहीं की। पर मोदी सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 के सभी खंड जम्मू कश्मीर में लागू खत्म करवा दिए। यह विवाद बहुत ही पुराना विवाद था। इस अनुच्छेद में समय-समय पर कई बदलाव होते आये है पर इस समस्या का अभी तक कोई स्थाई हल नहीं खोजा जा सका। आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरी सिंह पहले तो अपने राज्य का विलय भारत में नहीं करना चाह रहे थे। लेकिन दबाव में आकर वे अपने राज्य का विलय भारत में करने को तैयार हो गए। विलय के वक्त उन्होंने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन नाम के एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किये थे जो कि धारा 370 का ही एक अहम अंग था।
धारा 370 को मोदी सरकार ने खत्म करा दिया
चूँकि जम्मू-कश्मीर में भारत का कोई भी नियम-कानून लागू नहीं होता था। इसी वजह से इसे खत्म करने की मांग कई वर्षो से हो रही थी। धारा 370 को संविधान से हटाया जाना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन मोदी सरकार आने के बाद बड़े स्तर पर कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए प्रयास शुरू हुए और धारा 370 को खत्म कर मोदी सरकार ने कश्मीर में अलगाववादियों की दुकाने हमेशा के लिए बंद कर दी। कश्मीर में हाल यह था कि संपत्ति में मालिकाना हक न मिल पाने के चलते दूसरे प्रदेशों के व्यापारी राज्य में निवेश नहीं करना चाहते थे।
कश्मीर के अधिकांश नेताओं ने भी भारत विरोधी प्रदर्शन भड़काकर दिल्ली से हजारों करोड़ के आर्थिक पैकेज की उगाही को धंधा बना लिया था, जिसे घाटी में बैठा राजनीतिक, प्रशासनिक और अलगाववादी तंत्र मिल-बांटकर खा लिया करता था। लेकिन धारा 370 और पूर्ण राज्य के दर्जे की समाप्ति ने फिलहाल इस राजनीति को खत्म कर दिया है। अब तक केवल स्थायी नागरिक का दर्जा प्राप्त कश्मीरी ही राज्य में जमीन खरीद सकते थे। लेकिन 370 हटने के बाद बदलाव आ रहा है। उसके बाद वहां उन लोगों के जमीन खरीदने का रास्ता भी खुल गया है। जिनके पास स्थायी नागरिक का दर्जा नहीं है। राज्य में अब तक केवल श्स्थायी नागरिकों को ही सरकारी नौकरियां मिलती थीं लेकिन अब यह सबके लिए खुल गया है।
5 अगस्त को शिलान्यास के साथ ही खत्म कर दिया
इसी साल 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांच सौ साल पुराने राममंदिर विवाद का खात्मा इसके शिलान्यास के साथ ही खत्म कर दिया। यह एक ऐसा जटिल मामला था जिसमें सात पक्षों की अलग अलग दलीलों पर फैसला लेना बेहद चुनौतीपूर्ण कदम था। वर्षो पुराने इस मुकदमें को लेकर देश में निराशा का भाव बन चुका था। साधु सतों का विश्वास डगमगाने लगा था, साधु संतो के साथ भारतीय समाज मे भी निराशा का भाव पनपने लगा था। इसके अलावा सरकारों के प्रति नाराजगी बढ चुकी थी। इसी कारण अयोध्या में कई बार जमावड़ा हुआ और अदालत और सरकारों को चुनौती दी जाने लगी थी। मोदी सरकार आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से मात्र 40 दिनों में दस्तावेजों के आधार पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया।
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इसके पहले 30 सितम्बर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसले में विवादित स्थान को तीन हिस्सों में बांट देने की बात कही गयी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने के बाद खास बात यह रही कि 6 अगस्त को इस मामले की सुनवाई शुरू हुई और 16 अक्टूबर 2019 को फैसला सुरक्षित रख लिया गया। इसके बाद 9 नवम्बर को 40 दिनों तक चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। फैसले में कहा गया कि अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक है।
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस साल 5 फरवरी को राम मंदिर के लिए ट्रस्ट का गठन कर दिया। ट्रस्ट ने 5 अगस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों राममंदिर निर्माण का शिलापूजन करवा कर वर्षो से टाट पर विराजमान अयोध्या में रामलला के लिए एक भव्य राममंदिर की शुरूआत की। साथ ही हिन्दू जनमानस के लिए उसके सुखद अहसास करवाने का काम किया।
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