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करवाचौथ स्पेशलः ये कहानियां कहेंगी तो घर में आएगी समृद्धि, जीवनसाथी होगा चिरायु

एक समय था जब बड़ी बूढियों को करवा चौथ की कहानियां याद रहा करती थीं और वह पूरे परिवार के साथ बैठकर कहानियां सुना कर पूजा किया करती थीं। लेकिन बदलते समय के साथ लोग इन कहानियों को भूलते गए।

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Published on: 2 Nov 2020 11:54 AM GMT
करवाचौथ स्पेशलः ये कहानियां कहेंगी तो घर में आएगी समृद्धि, जीवनसाथी होगा चिरायु
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करवाचौथ स्पेशलः ये कहानियां कहेंगी तो घर में आएगी समृद्धि, जीवनसाथी होगा चिरायु (Photo by social media)

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: करवा चौथ का व्रत महिलाएं बहुत प्रेम से करती हैं। नवविवाहित लड़कियों में करवा चौथ के व्रत को लेकर खास उमंग रहती है। इस वर्ष करवा चौथ का व्रत 04 नवंबर दिन बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएं अपने जीवनसाथी के दीर्घ और सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।

एक समय था जब बड़ी बूढियों को करवा चौथ की कहानियां याद रहा करती थीं और वह पूरे परिवार के साथ बैठकर कहानियां सुना कर पूजा किया करती थीं। लेकिन बदलते समय के साथ लोग इन कहानियों को भूलते गए।

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इस करवा चौथ पर हम आपके लिए लाए हैं चुनिंदा पौराणिक कहानियां जिन्हें सुनाकर आप अपना व्रत सफल बना सकते हैं।

छलनी से क्यों देखते हैं चांद

दरअसल पौराणिक कथा के अनुसार चौथ का चंद्रमा शापित है और जो भी इसको देखता है उसे कलंक लगता है लेकिन करवाचौथ पर गणेश जी की पूजा कर चंद्रमा को अर्घ दिया जाता है। इस आवश्यक कार्य को करने के लिए चंद्रमा को सीधे न देखकर छलनी से देखा जाता है ताकि कलंक न लगे।

पहली कहानी

बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में खुद खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।

शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला था, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी थी।

सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।

इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।

वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। खबर सुनते ही वह विलाप करने लग जाती है।

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।

सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है

सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव को तेल में डुबोकर उसके पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।

एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।

सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, वह कहती है कि मै तो तुम्हारे पति को जिंदा नहीं कर सकती लेकिन अभी एक करवा बचने वाली आएगी जो बहुत गंदी होगी, गालियां बक रही होगी तुम उसे पकड़ लेना वही तुम्हारा काम कर सकती है।

Karvachauth Karvachauth (Photo by social media)

शाम को कई करवा वाली आती हैं लेकिन कोई भी उस जैसी नहीं होती जैसा भाभी ने बताया था

बहन शाम तक इंतजार करती है। शाम को कई करवा वाली आती हैं लेकिन कोई भी उस जैसी नहीं होती जैसा भाभी ने बताया था। वह निराश होने लगती है तब तक वह देखती है एक बुढ़िया गाली बकती चली आ रही है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है। उसकी सेवा करती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। करवा वाली उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।

अंत में उसकी तपस्या को देख करवा वाली का दिल पसीज जाता है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।

दूसरी कथा

करवा चौथ की पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है, जब नीलगिरी पर्वत पर पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने गए। तब किसी कारणवश उन्हें वहीं रूकना पड़ा। उन्हीं दिनों पांडवों पर गहरा संकट आ पड़ा। तब चिंतित व शोकाकुल द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया तथा कृष्‍ण के दर्शन होने पर पांडवों के कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा।

तब कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! मैं तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण जानता हूं। उसके लिए तुम्हें एक उपाय करना होगा। जल्दी ही कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम पूरे मन से करवा चौथ का व्रत रखना। भगवान शिव, गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे तथा सबकुछ ठीक हो जाएगा।

कृष्ण की आज्ञा का पालन कर द्रोपदी ने वैसा ही करवा चौथ का व्रत किया। तब उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सारी चिंताएं दूर हो गईं।

जब मां पार्वती द्वारा भगवान शिव से पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना की विधि पूछी तब शिव ने 'करवा चौथ व्रत’ रखने की कथा सुनाई थी। करवा चौथ का व्रत करने के लिए श्रीकृष्ण ने दौपदी को निम्न कथा का उल्लेख किया था।

करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी

पुराणों के अनुसार करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।

पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची। उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और साथ ही यह भी कहा की मगरमच्छ को उसके इस कार्य के लिए कठिन से कठिन दंड देने का आग्रह किया और बोली- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें।

करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूँगी।

करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया

करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया। तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

तीसरी कथा

एक गणेश भक्त बुढ़िया थी। वह सदा गणेश जी की भक्ति में लीन रहती थी। उसकी बहू सास का कहना मानती थी लेकिन सास को लगता था कि बहू बेवकूफ है। सास की तीर्थ यात्रा की काफी इच्छा थी। एकबार उसे मौका मिला लेकिन उसे चिंता थी कि गणेशजी का ख्याल कौन रखेगा। उसने बहू को काफी समझाया। बहू ने कहा ठीक है मां जी जो बन पड़ेगा करूंगी। सास चली गई। बहू को फुर्सत कहां थी कि वह देख पाती सास कैसे पूजा करती है। शाम को उसने खाना बनाया बच्चों से कहा पहले गणेश जी को बुला लाओ। फिर तुम लोग खाना। बच्चे बुलाने गए कहा वह नहीं आ रहे हैं। बहू ने फिर बच्चों को भेजा। इस पर भी गणेश जी नहीं आए।

तीसरी बार बहू को गुस्सा आ गया उसने चूल्हे से जलती लकड़ी खींची

तीसरी बार बहू को गुस्सा आ गया उसने चूल्हे से जलती लकड़ी खींची और लेकर गणेशजी के पास गई कहा चल रहे हो या लगाऊं दो चार। गणेश जी उठे और चल दिये। अब ये रोज का क्रम हो गया। बहू ने गणेश जी से कहा बैठे बैठ तुम्हारा तोंद निकल रहा है जाओ बच्चों के साथ खेला करो। गणेश जी बेचारे बच्चों के साथ खेलने लगे। उधर सास कर तो तीर्थ यात्रा रही थी लेकिन उसकी जान गणेश जी में अटकी थी। जैसे तैसे तीर्थ यात्रा पूरी हुई वह घर पहुंची सबसे पहले पूजा घर में गई देख गणेश जी गायब। बुढिया का पारा चढ़ गया। वह बहू पर चीखने चिल्लाने लगी।

बहू ने कहा क्या बात है अम्मा। बुढ़िया ने कहा मेरे गणेशजी कहां हैं। बहू ने कहा बच्चों के साथ खेलने गए हैं। बुढ़िया का पारा और चढ़ा तू ने मेरे गणेशजी को बच्चों को खेलने को दे दिया। बहू ने कहा मै क्यों दूंगी वह खुद गए हैं। बुढ़िया चिल्लाने लगी। बहू ने कहा अभी आ रहे होंगे खुद देख लेना। जितना बच्चे मिलकर खाते हैं उससे ज्यादा तो तुम्हारे गणेश जी खाते हैं। बुढ़िया ने कहा ठीक है देखती हूं। शाम को बहू ने खाना बनाया बच्चों को बाहर जाकर आवाज दी आ जाओ सब लोग खाना खा लो।

बुढ़िया ने देखा बच्चों के साथ गणेश जी भी चले आ रहे हैं

बुढ़िया ने देखा बच्चों के साथ गणेश जी भी चले आ रहे हैं बच्चे जमीन पर बैठ गए गणेश जी भी बच्चों के साथ बैठकर खाने लगे। ये देख बुढ़िया के होश उड़ गए। वह गणेशजी के सामने दंडवत हो गई। कहा मैने सारी जिंदगी पूजा की मुझे दर्शन नहीं मिले। इस अनपढ़ गंवार को दर्शन दे दिया। गणेश जी ने कहा इसने मुझे अपना बच्चा माना। इसने माटी की मूरत माना नहीं मै क्या करता। मै भक्त के आगे विवश हूं। गणेशजी की कृपा सके जैसे उनके दिन फिरे सबके फिरें।

करवा चौथ की चौथी कथा

किसी गांव में दो बुढ़िया रहती थीं। एक लालची थी दूसरी उदार धर्मात्मा। दोनो गणेश जी की भक्त थीं। एक बार गणेशजी ने दोनो की परीक्षा लेने की सोची। वह एक बच्चे का रूप बनाकर कटोरी में दूध और चावल लेकर घूमने लगे। कोई मेरी खीर बना दो सब भगा देते थे। अंत में वह लालची बुढ़िया के पास पहुंचे मां मेरी खीर बना दो बुढ़िया ने कहा ला दे बना देती हूं। गणेश जी ने कहा मां बड़े से भगोने में चढ़ाना। मै अपने दोस्तों को बुला लाता हूं।

थोड़ी देर में गणेशजी पहुंचे बोले मां खीर बन गई

थोड़ी देर में गणेशजी पहुंचे बोले मां खीर बन गई। बुढ़िया चिढ़ गई। बोली बड़ा दूध ही दे गया था तू। जरा से चावल और दूध सब जल गए। गणेशजी अब दूसरी बुढ़िया के पास पहुंचे बुढ़िया से कहा मां मेरी खीर बना दो। बुढ़िया को बच्चे पर बहुत तरस आया उसने बच्चे की बात रखने को अपने घर के सबसे बड़े भगोने में जैसे ही दूध डाला। भगोना दूध से भर गया। चावल डाले तो महक से पूरा घर महकने लगा। थोड़ी देर में गणेश जी आए बोले मां खीर तैयार है।

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बुढ़िया ने कहा प्रभु तैयार है। गणेशजी ने कहा मै दोस्तों को लाता हूं। तुम आसन बिछा दो। बुढ़िया के घर में कुछ था ही नहीं जैसे ही उसने अपना बक्सा खोला उसमें से आसन निकलने लगे। उसने आसन बिछाए। इसी तरह कटोरी के पास सोने चांदी के बर्तनों का ढेर लग गया। बुढ़िया ने सबको भोजन कराया। अंत में गणेशजी ने कहा मां आँख बंद कर बुढिया ने आँखें बंद कर लीं।

गणेशजी ने कहा मां आँखें खोल तेरे सामने 33 कोटि देवता खड़े हैं दर्शन कर ले। फिर गणेश जी ने कहा बोल मां क्या मांगती है। बुढ़िया ने कहा प्रभु सत खंडा महल हो पोते को चांदी की कटोरी में खीर चटा रही होऊं यही साध है। गणेशजी ने कहा तथास्तु। बुढ़िया ने देखा पोता धोती खींच रहा है। उसके हाथ में चांदी की कटोरी है। जैसे उनके दिन फिरे सबके फिरें।

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