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जानिए कौन थे चंद्रेश्वर तिवारी, राम मंदिर के लिए हिला दी थी अटल सरकार

आज जब अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास की तैयारियां जोरो पर हैं तो ऐसे में अयोध्या से लेकर दिल्ली तक रामभक्त इस आंदोलन की नींव में रहे चंद्रेश्वर तिवारी की भूमिका को याद कर रहे हैं।

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Published on: 3 Aug 2020 12:00 PM IST
जानिए कौन थे चंद्रेश्वर तिवारी, राम मंदिर के लिए हिला दी थी अटल सरकार
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श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: आज जब अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास की तैयारियां जोरो पर हैं तो ऐसे में अयोध्या से लेकर दिल्ली तक रामभक्त इस आंदोलन की नींव में रहे चंद्रेश्वर तिवारी की भूमिका को याद कर रहे हैं। यही वह रामभक्त थें जो अयोध्या में रहकर पूरे आंदोलन को दिशा देते थें लेकिन अयोध्या में मंदिर निर्माण का सपना लिए 17 साल पहले ही उनका निधन हो गया।

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रामचंद्र दास ने पहली धर्म संसद से आंदोलन को धार

यहां हम बात कर रहे हैं अयोध्या के हर आंदोलन और धर्मरक्षा सम्मेलन में वह अगुवाकार रहे परमहंस रामचन्द्र दास की, जिनको सख्त तेवर के लिए जाना जाता था। परमहंस जी महाराज का पूर्व नाम चन्द्रेश्वर तिवारी था। 17 वर्ष की आयु में साधु जीवन अंगीकार करने के बाद उनका नाम रामचन्द्र दास हो गया। बिहार के छपरा जिला के सिंहनीपुर ग्राम में 1912 में माता स्वर्गीय सोना देवी और पिता पण्डित भाग्यरन तिवारी के पुत्र के रूप में उनका जन्म हुआ था। रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे महंत परमहंस रामचंद्र दास ने 1984 को दिल्ली में हुई पहली धर्म संसद से आंदोलन को धार देते रहे।

दूसरी धर्मसंसद में खुद ताला खोलने की धमकी दे डाली

अपना पूरा जीवन रामजन्मभूमि आंदोलन के लिए न्योछावर करने वाले परमहंस रामचंद्र दास को शलाका पुरुष भी कहा जाता था। कर्नाटक के उडुपी में हुई दूसरी धर्मसंसद में उन्होंने घोषणा की कि अगले साल शिवरात्रि तक जन्मभूमि पर लगा ताला नहीं खोला गया तो हम खुद जाकर रामलला का ताला तोड देगें। इसके बाद ही राजीव गांधी सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया और शिवरात्रि के पहले ही अदालत के आदेश पर 1 फरवरी 1986 को ही ताला खोल दिया गया।

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आत्मदाह की घोषणा से हिल गई थी अटल सरकार

परमहंस रामचन्द्र दास एक ऐसे संत थें जिन्होंने अटल सरकार तक को हिला दिया था। जनवरी, 2002 में अयोध्या से दिल्ली तक की चेतावनी सन्त यात्रा का निर्णय पूज्य परमहंस रामचन्द्र दास जी का ही था। 27 जनवरी 2002 को प्रधानमंत्री से मिलने गए सन्तों के प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व भी उन्होंने ही किया। मार्च 2002 के पूर्णाहुति यज्ञ के समय शिलादान पर अदालत द्वारा लगायी गई बाधा के समय 13 मार्च को पूज्य परमहंस की इस घोषणा ने सारे देश को हिला कर रख दिया कि अगर मुझे शिलादान नहीं करने दिया गया तो मैं आत्मदाह कर लूँगा । इसके बाद केन्द्र और प्रदेश सरकार के प्रतिनिधियों ने उनको मनाया और केन्द्र से आई शिलाओं को सौपकर उन्हे आश्वस्त किया। रामचन्द्र परमहंस दास ने ही रामजन्मभूमि मंदिर का मामला कोर्ट में दाखिल किया था। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

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