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महात्‍मा गांधी और रेडियो: क्या आप जानते हैं कुरुक्षेत्र का किस्सा, जो बन गया इतिहास

रेडियो ही आज भी ऐसा माध्‍यम है जो भारत के सुदूर क्षेत्रों में लोगों से उनकी बोली ओर बानी में संवाद करने में सक्षम है। पूर्वोत्‍तर भारत के विभिन्‍न आकाशवाणी केंद्रों पर लंबे समय तक तैनात रहने वाले आकाशवाणी के अधिकारी प्रतुल जोशी, सहायक निदेशक आकाशवाणी लखनऊ बताते हैं

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Published on: 12 Nov 2020 8:20 AM GMT
महात्‍मा गांधी और रेडियो: क्या आप जानते हैं कुरुक्षेत्र का किस्सा, जो बन गया इतिहास
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महात्‍मा गांधी और रेडियो: क्या आप जानते हैं कुरुक्षेत्र का किस्सा, जो बन गया इतिहास (photo by social media)

नई दिल्ली: आजादी के बाद जब देश में चारों ओर अशांति का माहौल था तो महात्‍मा गांधी ने 12 नवंबर 1947 को पहली बार रेडियो का इस्‍तेमाल कुरुक्षेत्र में ठहरे विस्‍थापितों से संवाद स्‍थापित करने के लिए किया था। महात्‍मा गांधी का रेडियो के साथ यह पहला और अंतिम अनुभव रहा । महात्‍मा गांधी जो इससे पहले तक केवल अपनी सभाओं और लेखन के जरिये ही लोगों से संवाद स्‍थापित करते आए थे उनका यह प्रयोग कारगर साबित हुआ। महात्‍मा गांधी का यह प्रयोग आजादी के 73 सालों बाद भी सर्वाधिक प्रभावकारी है।

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रेडियो उन लोगों तक आज भी सहज-सुलभ संवाद माध्‍यम है

रेडियो ही आज भी ऐसा माध्‍यम है जो भारत के सुदूर क्षेत्रों में लोगों से उनकी बोली ओर बानी में संवाद करने में सक्षम है। पूर्वोत्‍तर भारत के विभिन्‍न आकाशवाणी केंद्रों पर लंबे समय तक तैनात रहने वाले आकाशवाणी के अधिकारी प्रतुल जोशी, सहायक निदेशक आकाशवाणी लखनऊ बताते हैं कि रेडियो आज भी कृषि, साहित्‍य- संगीत, संस्‍कृति के क्षेत्र में सर्वाधिक अहम भूमिका का निर्वाह कर रहा है। रेडियो उन लोगों तक आज भी सहज-सुलभ संवाद माध्‍यम है जिन तक कोई दूसरा माध्‍यम पहुंच ही नहीं रहा है।

atul-joshi Assistant Director AIR Lucknow Pratul-Joshi (photo by social media)

अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर आकाशवाणी केंद्र से 13 स्‍थानीय बोलियों में कार्यक्रम व 11 बोलियों में समाचार का प्रसारण आज भी किया जाता है। कोहिमा आकाशवाणी केंद्र से 14 बोलियों में कार्यक्रम व समाचार का प्रसारण होता है। कारगिल आकाशवाणी केंद्र से बाल्‍ती बोली में कार्यक्रम का प्रसारण हो रहा है। इन बोलियों का व्‍यवहार बेहद सीमित इलाकों में सीमित आबादी के लिए हो रहा है लेकिन बडी बात यह है कि इन इलाकों में अगर स्‍थानीय बोली में कार्यक्रम या समाचार का प्रसारण नहीं किया जाए तो एक समूह तक देश-दुनिया की कोई बात नहीं पहुंचेगी और न उनकी भावना एवं विचार दूसरों तक ही पहुंच पाएंगे।

देश के आजाद होने के बाद रेडियो ने समाज निर्माण में अहम भूमिका निभाई

देश के आजाद होने के बाद रेडियो ने समाज निर्माण में अहम भूमिका निभाई। आकाशवाणी केंद्र ही तब वह स्‍थान थे जहां से साहित्‍य, संस्‍कृति, संगीत व अन्‍य क्षेत्रों की प्रतिभाओं को पुष्पित व पल्‍लवित होने का अवसर मिला। प्रतुल जोशी बताते हैं कि इलाहाबाद में रहते हुए अपने बचपन में उन्होंने बच्चों के कार्यक्रमों की कंपेयरिंग के दौरान महसूस किया कि प्रतिभाओं के विकास के लिए रेडियो अत्यंत सशक्त माध्यम है। इससे स्‍थानीय प्रतिभाओं को प्रोत्‍साहन मिला। आकाशवाणी तब हिन्‍दी-उर्दू साहित्‍य के रचनाकारों, संगीतकारों की प्रतिभा प्रदर्शन का महत्‍वपूर्ण प्‍लेटफार्म होने के साथ ही उनके सम्‍मानपूर्ण जीवन यापन का भी सहारा बना। रेडियो ने समाज में विभिन्‍न मुद्दों पर जागरुकता बढाने के साथ ही ज्ञानवर्धन भी किया।

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खेती और स्‍वास्‍थ्‍य से संबंधित रेडियो कार्यक्रमों से बडे स्‍तर पर लोगों को फायदा मिला। आकाशवाणी के कृषि संबंधी कार्यक्रमों का तो आज भी किसी दूसरे संचार माध्‍यम में विकल्‍प नहीं है। अभी हाल में कोरोना प्रकोप काल में भी आकाशवाणी ने लोगों के जीवन में सकारात्‍मक भूमिका का निर्वाह किया है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि महात्‍मा गांधी ने रेडियो का प्रयोग जिस लोक संचार के मकसद से किया है आज भी रेडियो उस कसौटी पर खरा है।

रिपोर्ट- अखिलेश तिवारी

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