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यहां गिरे थे सती के नयन, नाम पड़ा नैना देवी

वैसे तो हिमाचल प्रदेश अपनी प्राकृतिक छंटा के लिए जाना जाता है। सर्दी हो या गर्मी यहां वर्षभर पर्यटकों का तांता लगा रहा है।  इसके अलावा यह प्रदेश तीर्थ यात्रियों से भी भरा रहता है।

Shreya
Published on: 8 March 2020 8:10 AM GMT
यहां गिरे थे सती के नयन, नाम पड़ा नैना देवी
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दुर्गेश पार्थसारथी,

अमृतसर: वैसे तो हिमाचल प्रदेश अपनी प्राकृतिक छंटा के लिए जाना जाता है। सर्दी हो या गर्मी यहां वर्षभर पर्यटकों का तांता लगा रहा है। इसके अलावा यह प्रदेश तीर्थ यात्रियों से भी भरा रहता है। यहां को कोई भी ऐसा जिला नहीं होगा जहां किसी देवी या देवता मंदिर नहीं होगा। तभी तो इसे देव भूमि भी कहा जाता है।

51 शक्तिपीठों में से एक है माता मंदिर

51 शक्तिपीठों में से एक माता नैना देवी का मंदिर इसी हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले स्थित है। शिवालिक की पहाडि़यों पर स्थित यह भव्यम मंदिर नेशनल हाईवे न. 21 से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। मंदिर परिसर में एक पीपल का पेड़ है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह कई सौ साल पूराना है। मंदिर के मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति है। मंदिर के र्गभ गृह में तीन प्रतिमाएं प्रतिष्ठाेपित हैं। दाईं तरफ माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बाई ओर भगवान श्री गणेश की प्रतिमा है।

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1.30 किमी. चलना पड़ता है पैदल

माता नैना देवी के दर्शन के लिए भक्तोंद को मुख्यी मार्ग से करीब 1.30 किमी चढ़ाई पैदल तय करनी पड़ती है। हलांकि प्रशासन ने यहां पहुंचने के लिए उड़न खटोले का भी प्रबंध कर रहा है। इसके अलावा पलकी की भी उत्त म व्यंवस्थाय है। माता नैना देवी मंदिर से कुछ दूरी पर एक तालाब और गुफा है। जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है।

पौराणिक मान्यता

नैना देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार देशभर में कुल 51 शक्तिपीठ हैं। इन सभी शक्तिपीठों की उत्पपत्ति की कथा एक है। माता नैना देवी मंदिर शिव और शति की कथा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमेX उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। यह बात सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी।

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यज्ञ स्थंल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कूद गईं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। माता के इन्हीं 51 अंगों में से एक उनके नयन यहां गिरे थे। जिस कारण इस स्थ ल का नाम नैना देवी पड़ गया।

कैसे पहुंचें

माता नैना देवी का स्थान हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए रेल मार्ग से जालंधर या पंजाब के होशियारपुर तक पहुंचा जा सकता है। आगे का रास्ताज बस या निजी वाहन से तक कर सकते है। यह स्थान दिल्ली से 350 किमी, जालंधर से 115 किमी, अमृतसर से 200 किमी, लुधियाना से 125 किमी, चिन्तपूर्णी 110 किमी और चंड़ीगढ़ से करीब 115 किमी की दूरी पर स्थित है।

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