सरकार में है दमः 27 साल का दफन राज, खुला तो अच्छे अच्छे हों जाएंगे बेनकाब

तत्कालीन सरकार ने राजनीतिक मजबूरी के तहत, रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों को साझा करने से इनकार कर दिया था और बाद में सुप्रीम कोर्ट में जाकर रिपोर्ट के निष्कर्षों को सार्वजनिक करने से रोक लगवा दी थी। केंद्र सरकार जो कि अपनी पूर्ववर्ती सरकारों से अलग होने का दावा करती रही है वह भी आज तक इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का साहस नहीं दिखा पाई है।

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Published on: 13 July 2020 12:32 PM GMT
सरकार में है दमः 27 साल का दफन राज, खुला तो अच्छे अच्छे हों जाएंगे बेनकाब
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रामकृष्ण वाजपेयी

सोशल मीडिया पर यकीन करें तो पहले से तय शुदा विकास दुबे एनकाउंटर के बाद बहुत सारे सवाल उठ रहे हैं। जिसमें सोशल मीडिया ब्राह्मणवाद और गैर ब्राह्मणवाद के खांचे में बंटा नजर आ रहा है। लेकिन इस उठापटक में असली सवाल पिछले तीन दशक से गुम है। रामराज लाने वाली केंद्र सरकार भी उस रिपोर्ट को सामने लाने का साहस नहीं जुटा पा रही है जिसे पिछले तीन दशक से जनता की नजरों से इसलिए दबा कर रखा हुआ है कि तमाम सफेदपोश चेहरे बेनकाब हो जाएंगे।

गृह मंत्रालय में कार्यरत अधिकारी वोहरा कमेटी के निष्कर्षों और रिपोर्ट की सामग्री को छिपाते छिपाते रिटायर होते जा रहे हैं और आने वाले नए अफसरों को ये गुरुतर दायित्व सौंपते जा रहे हैं कि ये कभी जनता के सामने न आने पाए।

वोहरा समिति, जिसका गठन राजनीति के अपराधीकरण और अपराधियों, नौकरशाहों और राजनेताओं के बीच सांठगांठ का खुलासा करने के लिए तकरीबन 26 साल से कुछ पहले किया गया था।

गृह मंत्रालय के मामलों की (इंटरनल सिक्योरिटी डिवीजन) ने एक आरटीआई क्वेरी का जवाब देते हुए कहा है कि मीटिंग्स के मिनट एन.एन. वोहरा समिति इसके साथ उपलब्ध नहीं है।

इससे अनुमान लगाया गया कि 100 से अधिक पृष्ठों की रिपोर्ट "गलत" हो सकती है। गृह मंत्रालय ने समिति की बैठकों की फाइल नोटिंग को "गुप्त" करार देते हुए उसे साझा करने से मना कर दिया है।

दफन है राज गहरे

एक रिपोर्टर ने गृह मंत्रालय (आंतरिक सुरक्षा डेस्क) के साथ एक आरटीआई क्वेरी दायर की थी जिसमें एन.एन. बोहरा कमेटी से संबंधित बैठकों और मिनटों का विवरण मांगा गया था। वोहरा समिति की रिपोर्ट 1 मई 2009 से सरकारी रिकॉर्ड का हिस्सा तो बन गई लेकिन जनता के सामने कभी नहीं आ पाई।

हालांकि, अपने जवाब में, गृह मंत्रालय ने विवरण साझा करने से इनकार कर दिया था। और कहा था कि “एनएन वोहरा समिति की रिपोर्ट से संबंधित बैठकों के मिनट उन कार्यालयों में उपलब्ध नहीं हैं, जिनमें अधोहस्ताक्षरी सीपीआईओ है। जैसा कि फाइल नोटिंग का संबंध है, यह प्रदान नहीं किया जा सकता है क्योंकि आवश्यक दस्तावेज आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) (एच) के तहत एक वर्गीकृत / गुप्त दस्तावेज है।"

अधिकारियों के अनुसार, गृह मंत्रालय ने इसे "गुप्त" करार दिया है, लेकिन इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है कि राजनेताओं और नौकरशाहों ने अपराधियों को अपराध करने में मदद की, जिसमें अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम सहित 1993 के मुंबई विस्फोट भी शामिल थे।

बहुत विस्फोटक

वरिष्ठ खुफिया एजेंसी के अधिकारियों ने कहा था कि एन.एन. वोहरा समिति की रिपोर्ट "बहुत विस्फोटक" थी क्योंकि इसमें दाऊद के लिए काम करने वाले वरिष्ठ नेताओं और नौकरशाहों का पता लगाया गया था।

हालांकि बाद में पूर्व गृह सचिव एन.एन. वोहरा, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल भी बनाए गए। समिति का गठन मार्च 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के बाद जुलाई 1993 में किया गया था।

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उन्होंने अपराध सिंडिकेट / माफिया संगठनों की गतिविधियों के बारे में सभी उपलब्ध जानकारी का जायजा लिया था, जिनसे लिंक विकसित हुए थे। और सरकारी अधिकारियों और राजनीतिक हस्तियों द्वारा संरक्षित किया जा रहा था। समिति के निष्कर्ष अक्टूबर 1993 में सरकार को सौंपे गए थे।

तत्कालीन सरकार ने राजनीतिक मजबूरी के तहत, रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों को साझा करने से इनकार कर दिया था और बाद में सुप्रीम कोर्ट में जाकर रिपोर्ट के निष्कर्षों को सार्वजनिक करने से रोक लगवा दी थी। केंद्र सरकार जो कि अपनी पूर्ववर्ती सरकारों से अलग होने का दावा करती रही है वह भी आज तक इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का साहस नहीं दिखा पाई है।

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