पंडित जसराज: जाने से पहले इस तरह पूरा किया संकटमोचन का इकलौता नागा

वर्ष 2006 में हुई नागे की भरपाई पंडित जसराज ने इस साल की। कोरोना संकट के कारण इस साल संकटमोचन दरबार में ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया गया।

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Published on: 18 Aug 2020 4:56 AM GMT
पंडित जसराज: जाने से पहले इस तरह पूरा किया संकटमोचन का इकलौता नागा
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Pandit Jasraj In Kashi

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: अपनी आवाज से केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर को शास्त्रीय संगीत के सुरों में पिरोने वाले पंडित जसराज नहीं रहे। पंडित जसराज ने अपनी आवाज के सम्मोहन से कई पीढ़ियों को मोहित किए रखा। 82 साल की उम्र में अंटार्कटिका पर अपनी प्रस्तुति के साथ ही वे सातों महाद्वीपों में कार्यक्रम पेश करने वाले पहले भारतीय बन गए। उन्होंने दुनिया भर में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया मगर काशी के संकटमोचन संगीत समारोह से उनका भावुक नाता था। 47 वर्षों के दौरान सिर्फ एक बार वे बजरंगबली के दरबार में हाजिरी नहीं लगा सके थे और जाने से पहले उन्होंने इस साल दो बार दरबार में हाजिरी लगाकर अपने इकलौते नागे की भरपाई की।

47 साल लंबा जुड़ाव

संकटमोचन संगीत समारोह में हर साल एक से बढ़कर एक कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देते रहे हैं। संकटमोचन दरबार में कार्यक्रम पेश करने को हर बड़ा कलाकार अपना सौभाग्य मानता है। पंडित जसराज उन बड़े कलाकारों में एक थे और इस संगीत समारोह से पंडित जसराज का 47 साल लंबा जुड़ाव रहा।

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Pandit Jasraj In Kashi Pandit Jasraj In Kashi

अपने 47 साल लंबे इस जुड़ाव के दौरान सिर्फ एक बार ही ऐसा हुआ था जब पंडित जसराज बजरंगबली के दरबार में हाजिरी नहीं लगा सके। 2006 में संकटमोचन न आ पाने की कसक पंडित जसराज को कई सालों तक सालती रही। वे हर साल संकटमोचन दरबार में एक साल न आ पाने का दर्द बयां किया करते थे।

इस साल दो बार लगाई दरबार में हाजिरी

Pandit Jasraj In Kashi Pandit Jasraj In Kashi

वर्ष 2006 में हुई नागे की भरपाई पंडित जसराज ने इस साल की। कोरोना संकट के कारण इस साल संकटमोचन दरबार में ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान पंडित जसराज ने पहली बार एक साल के भीतर दो बार संकटमोचन दरबार में हाजिरी लगाई और वह भी मात्र 7 दिनों के अंतराल पर। इस साल 8 अप्रैल को हनुमान जयंती के दिन उन्होंने अमेरिका से ऑनलाइन होकर संकटमोचन हनुमान जी को अपना गायन सुनाया और फिर उसी अनुष्ठान के क्रम में होने वाले संगीत समारोह में 14 अप्रैल को भी हनुमान दरबार में अपनी आखिरी प्रस्तुति दी।

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पंडित जसराज संकटमोचन दरबार में एक साल के नागे की पीड़ा से मुक्त होना चाहते थे। उन्हें जरूर कोई आभास हो गया था तभी तो उन्होंने अपना नागा पूरा करने के लिए अमेरिका से खुद संकटमोचन मंदिर के महंत प्रोफ़ेसर विशवम्भर नाथ मिश्र को फोन किया था। उन्होंने हनुमान जयंती के दिन संकटमोचन हनुमान जी को गायन सुनाने का अनुरोध किया और फिर संगीत समारोह में भी अपनी प्रस्तुति देने का वादा किया था।

कभी होटल में नहीं रुके पंडित जसराज

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संकटमोचन मंदिर के महंत प्रोफ़ेसर विशवम्भर नाथ मिश्र का कहना है कि पंडित जसराज का 1973 से संकटमोचन दरबार से अटूट नाता था और वे हर साल दरबार में आकर अपनी हाजिरी जरूर लगाया करते थे। संकटमोचन मंदिर में संगीत संगीत समारोह से 47 साल के लंबे जुड़ाव के दौरान पंडित जसराज कभी काशी के किसी होटल में नहीं रुके। वे हमेशा मंदिर प्रांगण स्थित गेस्ट हाउस में ही रुका करते थे। कई दिनों तक चलने वाले इस संगीत समारोह में उनका कार्यक्रम हमेशा अंतिम दिन हुआ करता था मगर वह कार्यक्रम के पहले दिन ही आ जाते थे।

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इस साल अमेरिका के न्यू जर्सी से पंडित जसराज ने अपने ऑनलाइन गायन की शुरुआत राग विहाग में युग युग चले अचल जग की गति से की थी। उन्होंने संकटमोचन से प्रार्थना की थी कि वह पूरे विश्व को कोरोना के संकट से मुक्ति दिलाएं। भजन के बीच में ही पंडित जी ने बजरंगबली को संबोधित करते हुए पूछा आपने सुना न मेरे बाबा। संकटमोचन में पंडित जसराज हर साल अपना प्रिय भजन हनुमान लला मेरे प्यारे लला जरूर गाया करते थे। इस साल पंडित जसराज जब हनुमान लला मेरे प्यारे लाला भजन गा रहे थे तो उनकी आंखें छलक आई थीं।

पंडित जी को सुरों का देवता बताया

Pandit Jasraj Pandit Jasraj

पंडित जी की ऑनलाइन प्रस्तुति देखने वाले भी यह देखकर भावुक हो गए थे। कैमरे के पीछे मौजूद पंडित जी की पुत्री दुर्गा जसराज ने उन्हें किसी तरह संभाला। पंडित जी के इस ऑनलाइन कार्यक्रम को करीब पौने दो लाख लोगों ने सुना था। प्रख्यात शास्त्रीय गायक बंधुओं पंडित राजन मिश्र और साजन मिश्र ने पंडित जसराज को याद करते हुए कहा कि हम जैसे कलाकारों और शास्त्रीय संगीत प्रेमियों का सौभाग्य रहा कि पंडित जसराज जैसे महान संगीतकार ने हमारे समय में जन्म लिया।

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उन्होंने पंडित जसराज को सुरों का देवता बताया और कहा कि पंडित जसराज ने शास्त्रीय गायन में वह मिठास भरी जिसे सुनकर सुरों के प्रेमी असीम शांति और आनंद में खो जाते थे।

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