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इस गांव के लोग कभी नहीं मनाते रक्षाबंधन, मानते हैं अपशगुन, जानिए क्यों?

भाई-बहनों का त्यौहार रक्षाबंधन 3 अगस्त को पूरे देश में मनाया जाएगा। इस दिन ही सावन का आखिरी दिन है। इसलिए इस दिन का खास महत्व है। रक्षाबंधन के दिन सुबह 9:28 बजे भद्रा रहेगी। राखी बांधने का मुहूर्त सुबह 9:28 बजे शुरू होगा।

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Published on: 1 Aug 2020 8:59 AM IST
इस गांव के लोग कभी नहीं मनाते रक्षाबंधन, मानते हैं अपशगुन, जानिए क्यों?
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लखनऊ: भाई-बहनों का त्यौहार रक्षाबंधन 3 अगस्त को पूरे देश में मनाया जाएगा। इस दिन ही सावन का आखिरी दिन है। इसलिए इस दिन का खास महत्व है। रक्षाबंधन के दिन सुबह 9:28 बजे भद्रा रहेगी। राखी बांधने का मुहूर्त सुबह 9:28 बजे शुरू होगा।

इसके बाद ही रक्षाबंधन मनाना शुभ होगा। कहा कि इस दिन ब्राह्मण समाज के लिए भी उपाकर्म के रूप में महत्वपूर्ण दिवस होता है। ब्राह्मण समाज के लोग पूजा पाठ कर जनेऊ को बदलते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस कर्म से पित्रों को भी मोक्ष मिलता है।

3 अगस्त को जहां रक्षाबंधन का पर्व पूरे भारत में हर्षोल्लास से मनाया जाएगा, वही गाजियाबाद के मुरादनगर के सुराना-सुठारी गांव के छबडिया गौत्र के लोग हर साल की भांति इस साल भी रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाएंगे।

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रक्षाबंधन नहीं मनाने के पीछे जुड़ी है ये मान्यता

ये गांव गाजियाबाद में हिंडन नदी किनारे बसा है। क्योंकि यहां के लोग इसको अपशकुन के तौर पर देखते हैं। ग्रामीण रक्षा बंधन नहीं मनाने के पीछे एक खास कारण बताते हैं।

इस गांव के लोग बताते हैं कि सैकड़ों वर्ष पूर्व राजस्थान से आए पृथ्वीराज चौहान के परिजन छतर सिंह राणा ने हिंडन नदी किनारे बसेरा बनाया था। उनके पुत्र सूरजमल राणा ने थे।

सूरजमल राणा के दो पुत्र विजेश सिंह राणा व सोहरण सिंह राणा थे। विजेश सिंह राणा को घुड़सवारी का शौक था। उन्होंने बुलंदशहर की जसकौर से शादी कर ली थी। वह हिंडन नदी किनारे रहने लगे, तब इसका नाम सोहनगढ़ रखा गया।

मोहम्मद गौरी ने लोगों को हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया था उन्होंने बताया कि जब मोहम्मद गौरी को पता चला कि सोहनगढ़ में पृथ्वीराज चौहान के परिजन रहते हैं, तो उसने रक्षाबंधन वाले दिन सोहनगढ़ पर हमला कर औरतों, बच्चों, बुजुर्गों व जवान युवकों को हाथियों के पैरों तले जिंदा कुचलवा दिया था।

हमले में विजेश सिंह राणा मारे गए थे, जबकि हमले के वक्त सोहरण सिंह राणा गंगास्नान को गए थे। विजेश सिंह राणा की मृत्यु की खबर मिलते ही उनकी पत्नी जसकौर सती हो गई थी, जिसकी समाधि आज भी गांव में खंडहर हालत में मंदिर के प्रमाण में है।

यहां सुराना-सुठारी गांव में रहने वाले ज्यादातर लोग छबडिया गौत्र से है। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज 1106 में यहां आकर बस गये थे। उन्होंने बताया कि इस कारण छबड़िया गौत्र के लोग तब से रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाते।

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रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाते हैं छबड़िया गौत्र के लोग

गांव वालों ने बताया कि उस वक्त सोहरण सिंह राणा की पत्नी राजवती बुलंदशहर के उल्हैड़ा गांव अपने मायके पिता सुमेर सिंह यादव के गई हुई थी। इसलिए केवल राजवती ही अकेली महिला जिंदा बची थी।मायके में उसने दो पुत्र लखी व चुपड़ा को जन्म दिया।

दोनों का नंदसाल में पालन-पोषण हुआ। बेटों ने बड़े होने पर मां से पिता और अपने परिवार के बारे में पूछा। राजवती ने बेटों को मोहम्मद गौरी द्वारा परिवार के मारे जाने की बात बताई।

तब लखी व चुपड़ा के साथ राजवती सोहनगढ़ वापस आईं और गांव को दोबारा बसाया। सोहनगढ़ बसने के वर्षों बाद सुठारी गांव को बसाया गया। सुठारी गांव में छबडिया गौत्र के लोग हैं। वह रक्षाबंधन के पर्व को अपशकुन मानते हैं।

रक्षाबंधन को मानते हैं अपशगुन

ग्रामीणों ने कहा- गांव के किसी परिवार में भाई-बहन राखी का पर्व मनाते हैं तो उनके साथ अप्रिय घटना घटित होती है। एक मान्यता थी कि रक्षाबंधन वाले दिन किसी गांव की महिला बेटा या गाय के बछड़ा पैदा होने पर पर्व मनाया जा सकता है।

रक्षाबंधन वाले दिन गांव में किसी के यहां पुत्र पैदा हुआ था। परिवार वालों ने खुशी के साथ रक्षाबंधी पर्व मनाया था, लेकिन कुछ दिन बाद ही जयपाल सिंह यादव का पुत्र विकलांग हो गया और बाद में नदी में डूबने से उसकी मौत हो गई थी।

सुराना रक्षाबंधन पर्व की भरपाई पूरी करने के लिए भैयादूज का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भैयादूज पर अधिकतर बहनें गांव सुराना में भाई के घर आती हैं।

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