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राम मंदिर भूमि पूजनः पाँच अगस्त को भी बनता है शुभ योग
राम भक्तों ने 34 किलों की तीस चाँदी की ईंटें दान में पहले से दे रखी हैं। एक शंकराचार्य ने भूमि पूजन किसी धर्माचार्य द्वारा कराने की बात कही है। पर ऐसा कहने व सोचने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते तो यह फ़ैसला इतनी जल्दी नहीं आता।
योगेश मिश्र
लखनऊ। आगामी पाँच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर के गर्भ गृह का भूमि पूजन करेंगे। इस तिथि को लेकर ज्योतिषियों व विद्वानों में मतभेद है। बहुत से विद्वान इस तिथि को शुभ नहीं मानते। लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि इस दिन अभिजीत मुहूर्त मिल रहा है। जिसमें कोई शुभ काम किया जा सकता है। जबकि कुछ का मानना है कि इस दिन दुर्लभ संधिकरण योग का मुहूर्त मिलता है। जो भूमि पूजन के लिए ठीक है। अधिकांश विद्वान यह मानते हैं कि जिस भगवान राम के नाम से बड़ी से बड़ी बाधा कट जाती है। उसके लिए सभी मुहूर्त शुभ है।
ग़ौरतलब है कि नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव के लिए जिस समय के दौरान नामजदगी का पर्चा भरा था। उसे भी काशी के पंडितों ने भद्रा काल कहा था। लेकिन इसके बाद भी वह नाबाद दूसरी पारी खेल रहे हैं। देश में उनकी लोकप्रियता के ग्राफ़ के बराबर कोई नेता नहीं है।
जब होगा भूमि पूजन
यहीं नहीं, त्रेता काल में जब मुनि वशिष्ठ से राम के राज्याभिषेक के लिए मुहूर्त के बारे में पूछा गया तब उन्होंने कहा कि शुभ अशुभ सब भगवान राम से प्रकाशित होते हैं। राम का जिस दिन राज्याभिषेक होगा वह शुभ दिन बन जायेगा। ऐसे ही जिस भी दिन राम मंदिर का शिलान्यास होगा वही दिन शुभ हो जायेगा।
मोदी अभी तक वह अयोध्या नहीं गये। पहली बार अयोध्या पहुँचेंगे तो मंदिर की सौग़ात लेकर। उस राम मंदिर की सौग़ात लेकर जो भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र का हिस्सा रहा है। 1989 में हिमाचल के पालमपुर अधिवेशन में राम मंदिर पर प्रस्ताव पास हुआ। जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विषय रहा है। जो आज़ादी के बाद से भारतीय समाज व राजनीति के सबसे ज्वलंत मुद्दे के तौर पर रहा है।
इसके चलते भाजपा ने राजनीतिक नुक़सान व फ़ायदा दोनों झेला है। तमाम अवरोधों से निपटने के बाद जब मंदिर का सपना साकार होने का समय आया तब कुछ मुट्ठी भर लोग मुहूर्त को लेकर सवाल खड़ा करने में जुट गये हैं।
500 साल बाद आया ये दिन
हालाँकि आज़ादी के समय से चल रही लंबी अदालती लड़ाई के बाद यह अवसर मिल रहा है। यहाँ तक पहुँचने के लिए राम और मीर बाक़ी को बराबर करने वाली ताक़तों से पाँच सौ साल लोहा लेना पड़ा है। राम की अयोध्या है इसका प्रमाण देना पड़ा।
वह भी तब जब राम भारतीय जन मानस के आदर्श हैं। भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं। आज़ादी की लड़ाई में हमारा लक्ष्य ही राम राज्य की स्थापना करना था। हमारा सुराज, हमारी स्वतंत्रता राम राज्य के लिए था। थक हार कर 1986 में तीस अक्टूबर से अशोक सिंहल जी की अगुवाई में मंदिर आंदोलन लगातार चलाना पड़ा।
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अनगिनत लोग इस लंबी चली प्रक्रिया में काल कवलित हो गये। हिंदुओं को लंबे समय तक हिंदुस्तान में तिरस्कार के भाव में जीना पड़ा। धर्म निरपेक्षता व सांप्रदायिक की स्वहितपोषी परिभाषा गढ़ी गयी। सेकुलर शब्द बेमानी बना दिया गया।
मुहूर्त पर सवाल
द्वारिका पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के बाद सुमेरुपीठ के पीठाधीश्वर स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने भी भूमि पूजन के मुहूर्त पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि पंचांग की गणना के अनुसार पांच अगस्त को भूमि पूजन का मुहूर्त नहीं है। उन के मुताबिक़ प्रस्तावित भूमि पूजन शास्त्र सम्मत नहीं है।
नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि 5 नवंबर 1990 को विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी के शीर्ष नेताओं की मौजूदगी में अयोध्या में मंदिर का भूमि पूजन और शिलान्यास का कार्य पूर्ण हो चुका है। काशी के संत भी मुहूर्त से सहमत नहीं हैं।
इन्होंने दिया मुहूर्त
लेकिन काशी के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने भूमि पूजन का मुहूर्त निकाला है। उनकी विद्वता भी कम नहीं है। उसे भी चुनौती नहीं दी जा सकती है। उन्होंने मंदिर के भूमि पूजन के लिए अभिजीत मुहूर्त निकाला है। जो 12 बजकर 15 मिनट 15 सेकेंड से शुरू होगा। ३२ सेकेंड तक रहेगा।
इसी बीच प्रधानमंत्री को भूमि पूजन की ईंट रखनी होगी। हालाँकि पूजन पाठ सुबह आठ बजे से शुरू हो जायेगा।
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राम भक्तों ने 34 किलों की तीस चाँदी की ईंटें दान में पहले से दे रखी हैं। एक शंकराचार्य ने भूमि पूजन किसी धर्माचार्य द्वारा कराने की बात कही है। पर ऐसा कहने व सोचने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते तो यह फ़ैसला इतनी जल्दी नहीं आता।
जिसका काम। उसका नाम। यह तो आदि काल से चला आ रहा है। और राम काज करने से कोई पीछे क्यूं हटेगा। किसी को अवसर मिलने पर पीछे क्यूं हटना चाहिए।