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राम मंदिर भूमि पूजन: शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद के बाद काशी इस संत ने भी उठाए सवाल

अयोध्या में श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। द्वारिका पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के बाद शुमेरुपीठ के पीठाधीश्वर स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने भी भूमि पूजन के मूर्हत पर सवाल उठाए हैं।

Newstrack
Published on: 24 July 2020 12:00 PM GMT
राम मंदिर भूमि पूजन: शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद के बाद काशी इस संत ने भी उठाए सवाल
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वाराणसी: अयोध्या में श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। द्वारिका पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के बाद शुमेरुपीठ के पीठाधीश्वर स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने भी भूमि पूजन के मूर्हत पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि पांचांग की गणना के अनुसार पांच अगस्त को भूमि पूजन का मूर्हत नहीं है। उन्होंने प्रस्वाति भूमि पूजन को शास्त्र सम्मत नहीं बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह के कार्य से अनिष्ट की संभावना बनी रहती है।

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पीएम ने धर्माचार्यों से कराना चाहिए भूमि पूजन

नरेंद्रानंद सरस्वती ने मंदिर के भूमि पूजन पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि 5 नवंबर 1990 को विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी के शीर्ष नेताओं की मौजूदगी में अयोध्या में मंदिर का भूमि पूजना और शिलान्यास का कार्य पूर्ण हो चुका है। ऐसे में अब तो सिर्फ मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरु करनी थी। उन्होंने कहा कि 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या फिर किसी अन्य राजनैतिक व्यक्ति के हाथों भूमि पूजन कराने से बेहतर रहता अगर देश के पांच शीर्षस्थ धर्माचार्यों से ये काम संपन्न कराया जाता।

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लंबे समय से विवाद का केंद्र रहा है श्रीराम मंदिर

भारतीय राजनीति में राम मंदिर लंबे समय तक विवाद का केंद्र रहा। हिंदू और मुस्लिम दोनों ही रामलला की भूमि पर अपना दावा करते रहे। इसे लेकर अदालतों में एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई। हालांकि साल के शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसके बाद श्रीराम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो गया। हालांकि अब इसके शिलान्यास को लेकर द्वारीका पीठाधीश्वर स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती ने मोर्चा खोल दिया है। शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद को अब काशी के दूसरे संतों का साथ मिलने लगा है। यहां तक भूमि पूजन में शामिल होने जा रहे काशी के संत भी मूर्हत से सहमत नहीं हैं।

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