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एक नेकी के बदले सात नेकियां, माहे रमजान में
इस्लाम में कुछ लोगों को विशेष परिस्थितियों में रोज़ा रखने से छूट भी दी गई है। कुरान शरीफ के मुताबिक रोगी, वृद्ध, यात्री, बच्चे व गभग्वती महिलाओं को रोज़ा रखने से छूट है।
दुर्गेश पार्थ सारथी
अमृतसर: रमजान (रोज़ा) का महीना मुसलमानों के लिए नेकी और बरकत का महीना होता है। इसी मुबारक महीने में जन-कल्याण के लिए पवित्र कुरान का अवतरण हुआ था। रोजा के लिए कुरान शरीफ में 'सियाम' शब्द का प्रयोग किया गया है। जिसका मौलिक अर्थ होता है रुक जाना। इस्लाम धर्म के अनुसार सुबह सूर्य की किरणों के निकलने से पहले और सूर्य के अस्त होने तक रोज़ा रखने वालों को स्त्री प्रसंग, खाना-पीना, सुगंध लेना, इत्र लगाना, बुरा सोचना, बुरा सुनना, बुरा देखना, फरेब करना आदि सर्वथा वर्जित हैं।
सबसे पाक महीना है रमज़ान
धर्म की दृष्टि से यह सबसे पवित्र महीना माना गया है। इस महीने में इस्लाम को मानने वाले पूरे एक महीने तक उपवास रख कर मन को पवित्र करते हुए अल्लाह के प्रति अपनी गहरी आस्था व्यक्त करते हैं। इस्लामी नौवां महीना रमजान का महीना कहलाता है।
अल्लाह के बंदों पर खर्च करो कमाई का कुछ हिस्सा
इजरत मुहम्मद (स.) ने फरमाया है कि अल्लाह के द्वारा बख्शे गए धन-सम्पत्ति का कुछ हिस्सा अल्लाह के बंदों (जरूरतमंदों) पर खर्च करो। दूसरे शब्दों में इसे जकात भी कह सकते हैं। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है 'दान देना'। इस्लाम की शरीयत के मुताबिक हर एक समर्पित मुसलमान को साल (चन्द्र वर्ष) में अपनी आमदनी का 2.5 % हिस्सा ग़रीबों को दान में देना चाहिए। इसी दान को ज़कात कहते हैं।
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ईश्वर के बताए हुए रास्ते पर हमेशा चलो, खुदा तुम्हें नेकी बख्शेगा। रमज़ान में की गई एक नेकी के बदले में अल्लाह सात नेकियां बख्शता है। इस्लाम में आस्था रखने वाले प्रत्येक मुसलमान को रोज़ा रखना आवश्यक होता है, क्योंकि वर्ष के ग्यारह महीने तो आदमी अपनी मर्जी के मुताबिक जीता है, लेकिन उसके एक महीना खुदा की मर्जी से जीवन जीना चाहिए।
रमज़ान में इनको है छूट
इस्लाम में कुछ लोगों को विशेष परिस्थितियों में रोज़ा रखने से छूट भी दी गई है। कुरान शरीफ के मुताबिक रोगी, वृद्ध, यात्री, बच्चे व गभग्वती महिलाओं को रोज़ा रखने से छूट है। परंतु इन व्यक्तियों के लिए भी (सूर: वकर: 2/183) में नियम है कि किसी आवश्यक कारण से किसी दिन का रोज़ा छूट जाए तो उसके बदले दूसरे दिनों में रोज़ा रख कर गिनती पूरी कर देनी चाहिए और जिन्हें (बच्चों, गर्भवती महिलाओं व बूढ़ों को) रोज़े में रखे गए उपवास के कारण भूख और प्यास बर्दाश्त करना मुश्किल हो तो उनको इज़ाजत है कि वे किसी जरूरतमंद निर्धन व्यक्तियों को पेटभर भोजन दे दें या चाहे तो उतनी कीमत दे दें। सफर और बीमारी की आड़ में रोज़े के बदले किसी गरीब को खाना खिला कर बच निकलने की कोई गुंजाइश रमजान में नहीं है।
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सबसे करीबतर है अल्लाह
रोज़ा रखना रुहानी और जिस्मानी दोनों रोज़ा रखना रुहानी और जिस्मानी दोनो तरह से फायदेमंद है। आज का वैज्ञानिक युग भी इसका समर्थन करता है कि उपवास रखने से शरीर को लाभ मिलता है। कुरान शरीफ में बताया गया है कि कुछ लोगों ने रसूल अल्लाह (स.) से पूछा था कि अल्लाह हमारे करीब है या दूर? हम दुआ धीमी आवाज में करें या जोर से? इस पर उन्होंने फरमाया है कि जिस तरह कपड़ा शरीर के साथ मिलता है और धड़कन दिल से, ठीक उसी तरह अल्लाह हमारे सबसे करीबतर है।
इंसान को इंसानियत से जोड़ता है रोज़ा
रोज़ा का मकसद इंसान को इंसानियत से जोड़ना है। साथ ही एक स्वस्थ्य समाज एवं व्यक्तित्व की आधारशिला रखना है। स्वस्थ लोगों के बना एक सभय समाज एवं सुसंगठित राष्ट्र की कल्पना असंभव है।
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