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रमेश चंद्र मजूमदार : चलते फिरते इतिहास पुरुष, बन गए किंवदंती

यह भारत के प्रति उनका लगाव ही था जिसने उन्हें हमारे अतीत की पड़ताल करने और इस तथ्य को स्थापित करने के लिए प्रेरित किया कि हम दो हजार वर्षों तक निर्बाध रूप से दुनिया में सबसे बड़ी सभ्यता थे।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 3 Dec 2020 4:39 AM GMT
रमेश चंद्र मजूमदार : चलते फिरते इतिहास पुरुष, बन गए किंवदंती
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आर.सी. मजूमदार अपने स्कूल के दिनों में ईश्वर चंद्र विद्यासागर से बहुत प्रभावित थे और बाद में रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बहुत बड़े भक्त बन गए।

रामकृष्ण वाजपेयी

शायद ही इतिहास का कोई ऐसा छात्र हो जिसने आचार्य रमेश चंद्र मजूमदार को न पढ़ा हो। वह खुद में चलता फिरता इतिहास थे। वह एक किंवदंती थे और उन्हेंन एक पूर्ण, उत्पादक और उपयोगी जीवन लगभग सदी तक जिया। आर.सी. मजूमदार अपने स्कूल के दिनों में ईश्वर चंद्र विद्यासागर से बहुत प्रभावित थे और बाद में रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बहुत बड़े भक्त बन गए।

एक महान देशभक्त

अपने जीवन के अंत तक, आर.सी. मजूमदार ने गर्व से स्वामी विवेकानंद की एक आदमकद पेंटिंग को अपने लिविंग रूम में प्रदर्शित किया। इन और अन्य प्रेरणाओं से, उन्होंने भारतवर्ष की शाश्वत प्रतिभा में एक अटल विश्वास विकसित किया और एक महान देशभक्त के रूप में अपनी पहचान बनाई। वास्तव में, यह भारत के प्रति उनका लगाव ही था जिसने उन्हें हमारे अतीत की पड़ताल करने और इस तथ्य को स्थापित करने के लिए प्रेरित किया कि हम दो हजार वर्षों तक निर्बाध रूप से दुनिया में सबसे बड़ी सभ्यता थे।

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मजूमदार का जन्म 4 दिसंबर 1888 को, खंडारपारा जिले, फरीदपुर, जो अब बांग्लादेश में है, हुआ था। वे तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। उनका प्रारंभिक जीवन आसान नहीं था। जब उन्होंने अपनी माँ को खोया तब वह सिर्फ 18 महीने के थे। भाई-बहनों के साथ उनका पालन पोषण चाची द्वारा किया गया। एक समय ऐसा आया जब वह बिना भोजन किये दो दिन तक रहे। जब पाँच या छह साल के थे तब शर्ट पहनने को मिली... वे दिन बेहद दर्दनाक थे। उनके पास एक जोड़ी जूते भी नहीं थे। जब शिशु थे तो एक दिन रात में बाढ़ में बह जाने वाले थे। किसी तरह चाची को जगाया गया, और वह बचे।

इतिहास से आजीवन प्यार किया

उन दिनों न तो बसें थीं और न ही ट्रेनें; सड़कें भी नहीं थीं। इसलिए तैराकी सीखना जरूरी था। ईंधन की जरूरत नहीं, लाइन में खड़े होने की जरूरत नहीं। बस पानी में कूदो और गंतव्य तक तैरो। जब स्कूल जाते थे तो सूखे रहने के लिए केले के पेड़ की मोहरों या खोखले ताड़ के टुकड़ों से राफ्ट बनाते थे। लिखने के लिए ताड़ के पत्ते थे, लेकिन अपने स्कूल में, उन्होंने केले के पत्तों को प्राथमिकता दी क्योंकि वे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे। उन पर लिखने के लिए तेज बांस की छड़ियों का इस्तेमाल किया। उन्होंने इतिहास से आजीवन प्यार किया और सत्तर से अधिक वर्षों तक खुद को इसके लिए समर्पित रखा।

जुलाई 1914 में मजूमदार ने प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति विभाग में व्याख्याता के रूप में विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। प्राचीन भारत में कॉर्पोरेट जीवन शीर्षक वाली उनकी पीएचडी थीसिस प्रकाशित हुई।

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BHU में पहले प्राचार्य के रूप में नियुक्त

बाद में मजूमदार Dacca विश्वविद्यालय के कुलपति बने, उन्हें कॉलेज ऑफ इंडोलॉजी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में पहले प्राचार्य के रूप में नियुक्त किया गया, और फिर नागपुर विश्वविद्यालय। वे शिकागो और पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में भारतीय इतिहास के विजिटिंग प्रोफेसर थे। वह रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड और बॉम्बे के मानद फैलो थे। वह पूना के भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के मानद सदस्य, कलकत्ता के एशियाई सोसाइटी के अध्यक्ष बने। उन्हें भारतीय इतिहास कांग्रेस और अखिल भारतीय प्राच्य सम्मेलन का अध्यक्ष बनाया गया था। उन्हें रामकृष्ण मिशन इंस्टीट्यूट ऑफ कल्चर, कलकत्ता का अध्यक्ष भी बनाया गया था।

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कलकत्ता का शेरिफ नियुक्त

मजूमदार की विद्वतापूर्ण सेवाओं की मान्यता में, उन्हें 1967-68 में कलकत्ता का शेरिफ नियुक्त किया गया। आचार्य आर.सी. मजूमदार ने मुख्य रूप से अंग्रेजी और बंगाली में कुल सैंतीस खंड और सैकड़ों लेख और पत्र लिखे। बंगाल का प्रारंभिक इतिहास, डक्का, 1924। चम्पा, सुदूर पूर्व में प्राचीन भारतीय उपनिवेश। सुवर्णद्वीप, सुदूर पूर्व में प्राचीन भारतीय उपनिवेश। बंगाल का इतिहास, कंबुज देश में एक प्राचीन हिंदू कॉलोनी, भारत का एक उन्नत इतिहास। भारतीय लोगों का इतिहास और संस्कृति (ग्यारह खंडों में): सामान्य संपादक, भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास (तीन खंडों में), वाकाटक - गुप्त युग लगभग २००-५५ ए.डी. सुदूर पूर्व में हिंदू उपनिवेश, भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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