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आत्मनिर्भर भारत है मोदी की एक नयी उड़ान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन से प्रभावित लोगों, अर्थव्यवस्था, रोजगार, कृषि एवं उद्योगों के लिए आत्मनिर्भर भारत के अभ्युदय का सूरज उगाया है। उन्होंने कोरोना लॉकडाउन के दौरान अपने पांचवें राष्ट्रीय सम्बोधन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प का रोडमैप प्रस्तुत किया है।

suman
Published on: 17 May 2020 6:50 AM GMT
आत्मनिर्भर भारत है मोदी की एक नयी उड़ान
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ललित गर्ग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन से प्रभावित लोगों, अर्थव्यवस्था, रोजगार, कृषि एवं उद्योगों के लिए आत्मनिर्भर भारत के अभ्युदय का सूरज उगाया है। उन्होंने कोरोना लॉकडाउन के दौरान अपने पांचवें राष्ट्रीय सम्बोधन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प का रोडमैप प्रस्तुत किया है। उनके द्वारा घोषित यह पैकेज और पहले सरकार की ओर से दिए गए आर्थिक पैकेज एवं रिजर्व बैंक के फैसलों के जरिए दी गई राहत का कुल जोड़ है। मोदी ने इस आर्थिक पैकेज की घोषणा से न केवल चौंकाया बल्कि एक सकारात्मक सन्देश दिया है कि इस भारी भरकम पैकेज के द्वारा उन्होंने आपदा को अवसर में बदलने की ठान ली है।

मोदी के इस आत्मनिर्भर भारत का सीधा अर्थ है कि वे इस आर्थिक पैकेज के जरिये केवल धराशायी हो गये कारोबार, पस्त पड़ी अर्थ-व्यवस्था एवं निस्तेज हो गये रोजगार क्षितिजों को संकट से उबारने ही नहीं जा रहे हैं बल्कि सम्पूर्ण देश के मनोबल एवं आत्म-विश्वास को नयी उडान दे रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सिद्ध करने के लिए इस पैकेज में लैंड, लेबर, लिक्विडिटी और लॉज सभी पर बल दिया गया है।

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कोरोना महासंकट के बीच भी हमने देखा है कि नरेन्द्र मोदी जिस आत्मविश्वास से इस महामारी से लडे़, उससे अधिक आश्चर्य की बात यह देखने को मिली कि उन्होंने देश का मनोबल गिरने नहीं दिया। निश्चित ही जीडीपी के 10 प्रतिशत के बराबर के इस पैकेज से एक नई आर्थिक सभ्यता और एक नई जीवन संस्कृति करवट लेगी। इससे न केवल आम आदमी में आशाओं का संचार होगा बल्कि नये औद्योगिक परिवेश, नये अर्थतंत्र, नये व्यापार, नये राजनीतिक मूल्यों, नये विचारों, नये इंसानी रिश्तों, नये सामाजिक संगठनों, नये रीति-रिवाजों और नयी जिंदगी की हवायें लिए हुए आत्मनिर्भर भारत की एक ऐसी गाथा लिखी जाएंगी, जिसमें राष्ट्रीय चरित्र बनेगा, राष्ट्र सशक्त होगा, न केवल भीतरी परिवेश में बल्कि दुनिया की नजरों में भारत अपनी एक स्वतंत्र हस्ती और पहचान लेकर उपस्थित होगा। यह पैकेज एक ब्रह्मास्त्र की तरह है जिससे हम आर्थिक महाशक्ति बनेंगे, दुनिया के बड़े राष्ट्र हमसे व्यापार करने को उत्सुक होंगे, महानगरों की रौनक बढे़ंगी, गांवों का विकास होगा, कृषि उन्नत होगी, स्मार्ट सिटी, कस्बों, बाजारों का विस्तार अबाध गति से होगा। भारत नई टेक्नोलॉजी का एक बड़ा उपभोक्ता एवं बाजार बनकर उभरेगा। प्रधानमंत्री के संबोधन से इसका आभास तो हो ही गया कि इस पैकेज में व्यापार-उद्योग के साथ-साथ किसानों, रोज कमाने-खाने वालों, छोटे-मझोले कारोबारियों का खास ध्यान रखा जायेगा। इसके साथ सप्लाई चेन को सुदृढ़ करने, उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर करने, स्वदेशी उत्पादों की खपत बढ़ाने और तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाने का काम प्राथमिकता के आधार पर किया जायेगा।

स्वदेशी उत्पाद, स्वदेशी उपभोक्ता और स्वदेशी बाजार की व्यवस्था को तीव्रता से लागू करते हुए छोटे-बड़े कारोबारियों को इसे स्वीकार करना होगा। सरकार आवश्यक आर्थिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त करेंगी, लेकिन कारोबार जगत को अपने हिस्से की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाना एवं सरकार के साथ-साथ आम-जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना ही होगा।

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आज राष्ट्र के सामने बाहरी खतरों से ज्यादा भीतरी खतरे हैं। लोग समाधान मांगते हैं, पर गलत प्रश्न पर कभी भी सही उतर नहीं होता। हमें आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये दृढ़ संकल्प और तड़प के साथ उसकी क्रियान्विति के परिदृश्य पैदा करने होंगे। 130 करोड़ लोगों के राष्ट्र का जीवन सभी ओर से सुन्दर होगा। लेकिन आशाओं के बीच घने अंधेरे भी कायम है। इन घने अंधेरों के बीच अच्छे दिन की कल्पना करते हुए यह भी माना जाने लगा था कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। चूंकि अपेक्षाओं की कोई सीमा नहीं होती और कई बार सक्षम सरकारों के लिए भी जन आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना मुश्किल हो जाता है इसलिए इस निष्कर्ष पर पहुंचना कठिन है कि भारत की जनता आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के लिये कितनी उत्साहित है और कितनी नाउम्मीद? लेकिन इतना तो तय है ही कि अधूरी उम्मीदों और बेचैनी के भाव के बाद भी लोगों का भरोसा कायम दिख रहा है। यह भरोसा ही सबसे बड़ी ताकत है।

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