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यह सूरज हमसे ही रोशन है

महिला जिसके बारे में जितना कहे उतना कम है। ऐसे में हम लाए हैं एक महिला सशक्तिकरण पर आधारित खूबसूरत कविता।

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Published on: 2 July 2020 10:45 AM IST
यह सूरज हमसे ही रोशन है
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यह सूरज हमसे ही रौशन है

यह धरती हमसे ही उपवन है

तुम क्या जानो क्या हममें है

वह अद्भुत शक्ति जो न तुममें है

मुझको न तुम अब अबला समझो

मैं क्या हूँ ये इन हवाओं से पूछो

जो कण-कण में मेरा वर्चस्व लिए

तुमको मुझसे परिचित करवाएगी

नारी बिन है तुम्हारा जीवन सूना

तुमको ये हर पल बतलायेगी

मैं तुम सब सी न मूरख हूँ

अब मैं खुद अपनी मार्गदर्शक हूँ

मुझे न किसी का सहारा चाहिए

न ही स्वयं के लिए कोई किनारा चाहिए

अब अपना जहाँ है मैंने चुन लिया

सपनों का ताना-बाना है बुन लिया

उन सपनों में रंग-बिरंगे पंख लगा उड़ जाऊंगी

अपने सपनों का आशियाँ अब मैं स्वयं बनाऊंगी

अब हर क्षेत्र में वर्चस्व है मेरा

तुम फिर भी मुझे दुर्बल कहते हो

मैं तो वह अबला नारी हूँ मूरख

जिनसे तुम खुद रौशन रहते हो

आंखें खोल के देख मनुष्य तू

हकीकत क्या रंग लायी है

तूने बाँधी थी जो मेरे जंजीरे

देख वह स्वयं मैंने खुलवाई है

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लेखिका

अर्चना पाल

शोध विद्यार्थी

(शिक्षा विभाग)

लखनऊ यूनिवर्सिटी

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