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कथाकार यशपाल: मनुष्य के पूर्ण विकास का साहित्य रचने वाला लेखक

गुरुकुल कांगड़ी की शिक्षा के साथ ही यशपाल का संपर्क कांग्रेस से हुआ। उन दिनों देश में गांधी के अहिंसा आंदोलन की धूम थी। लेकिन युवा हो रहे यशपाल को गांधी की समझौतावादी नीतियां पसंद नहीं आ रही थीं। इसी बीच 12 फरवरी 1922 को चौरीचौरा कांड हुआ और महात्मा गांधी ने आंदोलन स्थगित करने का ऐलान कर दिया।

Newstrack
Published on: 3 Dec 2020 3:53 PM IST
कथाकार यशपाल: मनुष्य के पूर्ण विकास का साहित्य रचने वाला लेखक
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कथाकार यशपाल: मनुष्य के पूर्ण विकास का साहित्य रचने वाला लेखक

रिपोर्ट,

अखिलेश तिवारी

लखनऊ: हिन्दी के मशहूर कथाकार यशपाल ने साहित्य लेखन को लेकर कहा कि मनुष्य के पूर्ण विकास और मुक्ति के लिए संघर्ष करना ही लेखक की सार्थकता है। अपने रचना संसार में इस सत्य को साकार करने वाले यशपाल निजी जीवन में भी मनुष्य के पूर्ण विकास और मुक्ति के आकांक्षी बने रहें। इसी आकांक्षा और अभिलाषा ने उन्हें राजनीतिक सत्ता परिवर्तन का लक्ष्य संधान करने के लिए प्रेरित किया और सालों तक महात्मा गांधी का साथ निभाने के बाद उन्होंने गांधी का रास्ता छोडक़र क्रांतिपथ का चयन कर लिया।

मशहूर कथाकार यशपाल का पारिवारिक पृष्ठभूमि

पंजाब के फ़िरोज़पुर छावनी में 3 दिसंबर 1903 को एक साधारण खत्री परिवार में जन्म लेने वाले यशपाल का जीवन राजनीतिक चेतना के साथ ही साहित्य सृजन की उर्वरा से संपन्न रहा। उनकी मां श्रीमती प्रेमदेवी शिक्षिका थीं और फ़िरोज़पुर के अनाथालय के साथ ही काशीपुर, नैनीताल में भी लंबे समय तक स्कूलों में अध्यापन किया। उनकी मां पर आर्य समाज और स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षाओं का खासा प्रभाव था, इसलिए उन्होंने आगे चलकर यशपाल को हरिद्वार की गुरुकुल कांगड़ी में शिक्षा पाने भेज दिया। यशपाल के पिता हीरालाल एक साधारण कारोबारी व्यक्ति थे।

yashpal

शिक्षा के साथ ही कांग्रेस से मिले थे यशपाल

गुरुकुल कांगड़ी की शिक्षा के साथ ही यशपाल का संपर्क कांग्रेस से हुआ। उन दिनों देश में गांधी के अहिंसा आंदोलन की धूम थी। लेकिन युवा हो रहे यशपाल को गांधी की समझौतावादी नीतियां पसंद नहीं आ रही थीं। इसी बीच 12 फरवरी 1922 को चौरीचौरा कांड हुआ और महात्मा गांधी ने आंदोलन स्थगित करने का ऐलान कर दिया। यह वह मौका था, जब यशपाल ने गांधी का साथ छोडक़र क्रांति-पथ का वरण कर लिया। हालांकि, उनके बारे में जानने वालों का कहना है कि यशपाल के जीवन में क्रांति के विचार पहले ही पुष्पित होने लगे थे, जब वह नेशनल कॉलेज लाहौर में पढ़ाई के दौरान भगत सिंह, सुखदेव और भगवतीचरण बोहरा के संपर्क में आए। नौजवान भारत सभा की गतिविधियों में उनकी सक्रियता के साथ-साथ गांधीवाद से दूरी बनती गई।

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कहानीकार और उपन्यास लेखक को मिली प्रसिद्धि

यशपाल को कहानीकार और उपन्यास लेखक के तौर पर प्रसिद्धि मिली, तो इसकी बड़ी वजह उनकी कथावस्तु का भारत के मध्यवर्ग से सीधा जुड़ाव है। उनके लगभग सोलह कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। मध्यवर्ग की असंगतियों, कमज़ोरियों, विरोधाभासों, रूढिय़ों पर उन्होंने करारा प्रहार किया। दो विरोधी परिस्थितियों का वैषम्य प्रदर्शित कर व्यंग्य की सर्जना उनकी प्रमुख विशेषता है।

यशपाल के व्यंग्य का तीखा रूप

चार आने, गवाही और सोमा का साहस में उन्होंने समाज की विसंगतियों को इस तरह सामने रखा कि पाठक वर्ग की संवेदना स्वमेव यशपाल के साथ जुड़ती चली जाती है। एक राज़ कहानी में मालकिन और नौकर की मनोवृत्तियों की विषमताओं को उन्होंने इस तरह से उभारा है कि पढऩे वाला नौकर की सहानुभूति में तिलमिला उठता है। यशपाल के व्यंग्य का तीखा रूप 80/100, ज्ञानदान आदि में देखा जा सकता है।

उपन्यास में झलकती हैं यशपाल की क्रान्तिकारी दृष्टिकोण

उपन्यास में यशपाल का दृष्टिकोण और भी अधिक अच्छी तरह उभर सका है। उनका पहला उपन्यास दादा कामरेड क्रान्तिकारी जीवन का चित्रण करते हुए मज़दूरों के संघठन को राष्ट्रोद्धार का अधिक संगत उपाय बतलाया है। देश द्रोही उपन्यास में वह गांधीवाद तथा कांग्रेस की तीव्र आलोचना करते हुए समाजवादी व्यवस्था का समर्थन करते हैं।

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बड़े पुरस्कारों से नवाजे ज चुके हैं यशपाल

हिन्दी के मशहूर कथाकार यशपाल को देव पुरस्कार (1955), सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1970), मंगला प्रसाद पारितोषिक (1971), पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।

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प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ

अगर मशहूर कथाकार यशपाल की कृतियों की बात करें, तो उन्होंने दिव्या, देशद्रोही, झूठा सच, दादा कामरेड, अमिता, मनुष्य के रूप, मेरी तेरी उसकी बात (उपन्यास), पिंजड़े की उड़ाना, फूलो का कुर्ता, भस्मावृत चिंगारी, धर्मयुद्ध, सच बोलने की भूल (कहानी-संग्रह) तथा चक्कर क्लब (व्यंग्य-संग्रह) जैसी तमाम कृतियां प्रकाशित हुई है।

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मशहूर ये यशपाल की रचनाएं

यशपाल की कई उपन्यास मशहूर हैं। इनकी दिव्या, देशद्रोही, झूठा सच, दादा कामरेड, अमिता, मनुष्य के रूप, तेरी मेरी उसकी बात जैसे उपन्यास प्रसिद्ध हैं। वहीं, इनकी कहानी संग्रह में पिंजरे की उड़ान, फूलों का कुर्ता, धर्मयुद्ध, सच बोलने की भूल, भस्मावृत चिंगारी, उत्तनी की मां, चित्र का शीर्षक, तुमने क्यों कहा था मै सुंदर हूं, ज्ञान दान, वो दुनिया मशहूर हैं। इसके अलावा यशपाल की चक्कर क्लब और कुत्ते की पूंछ जैसे व्यंग्य संग्रह प्रसिद्ध हैं।

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