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जन्मदिन विशेषः सादगी की मिसाल डॉ. राजेंद्र प्रसाद, कॉपी पर परीक्षक ने की ये टिप्पणी

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार के जिले के जीरादेई गांव में 3 दिसंबर 1884 को हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार के छपरा जिला स्कूल में हुई थी।

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Published on: 3 Dec 2020 10:32 AM IST
जन्मदिन विशेषः सादगी की मिसाल डॉ. राजेंद्र प्रसाद, कॉपी पर परीक्षक ने की ये टिप्पणी
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जन्मदिन विशेषः सादगी की मिसाल डॉ. राजेंद्र प्रसाद

लखनऊ: देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को आज भी काफी आदर और सम्मान के साथ याद किया जाता है। सरलता, सादगी और नम्रता के पक्षधर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बाद भी इन गुणों का कभी परित्याग नहीं किया। अंग्रेजों के खिलाफ स्वाधीनता संग्राम में पूरी शिद्दत से हिस्सा लेने वाले डॉ राजेंद्र प्रसाद पढ़ाई-लिखाई में इतने होनहार थे कि उनके शिक्षक भी उनकी जमकर प्रशंसा किया करते थे। एक बार उनकी एग्जाम की कॉपी जांचते समय एग्जामिनर ने यहां तक टिप्पणी कर दी थी कि एग्जामिनी इज बेटर दैन एग्जामिनर यानी परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है।

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कई भाषाओं पर थी पकड़

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार के जिले के जीरादेई गांव में 3 दिसंबर 1884 को हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार के छपरा जिला स्कूल में हुई थी। बाद में उन्होंने अपने शैक्षिक जीवन में अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कीं।

उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर कानून के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। डॉ प्रसाद बहुभाषी थे और हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली एवं फारसी पर उनकी अच्छी पकड़ थी।

File Photo

इन कथाओं का रहा जीवन पर असर

बचपन में राजेंद्र बाबू अपनी मां और दादी से रामायण और महाभारत की कथाएं बड़े चाव से सुना करते थे और इन कथाओं का प्रभाव उनके जीवन में अंत तक बना रहा। उन दिनों प्रायः लड़के-लड़कियों का विवाह बहुत छोटी उम्र में ही कर दिया जाता था।

डॉ राजेंद्र प्रसाद का विवाह भी 13 वर्ष की उम्र में ही राजवंशी देवी के साथ हो गया था। बाद में राजेंद्र प्रसाद ने लिखा था कि मैं उस समय इतना छोटा था कि मुझे विवाह की न तो कोई रस्म याद है और न ही मुझे यह याद है कि इसमें मेरी क्या भूमिका थी।

आजादी की लड़ाई में लिया हिस्सा

पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाकात गोपाल कृष्ण गोखले सहित स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े कई महत्वपूर्ण लोगों से हुई। इसके बाद वे स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए बेचैन हो गए। 1934 में बिहार में आए भूकंप और बाढ़ के दौरान उन्होंने राहत कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आजादी की लड़ाई के दौरान वे कई बार जेल गए।



कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में निष्ठा से किया काम

1934 में कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इस पद से इस्तीफा दे दिया था और उस कठिन दौर में उन्होंने इस महत्वपूर्ण पद का निर्वाह पूरी निष्ठा से किया। 1931 के नमक सत्याग्रह आंदोलन और बापू के 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वाधीनता के आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें कई बार गिरफ्तार कर जेल भेजा था।

दो बार चुने गए देश के राष्ट्रपति

देश में 26 जनवरी 1950 को नया संविधान लागू हुआ। 12 मई 1952 को डॉ राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए। पांच वर्ष का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद 1957 में उन्हें दोबारा देश का राष्ट्रपति चुना गया। देश के सर्वोच्च पद पर रहने के दौरान भी उन्होंने अपनी विनम्रता, सादगी और सर्वसाधारण के प्रति प्रेम आदि गुणों को कभी नहीं छोड़ा। राष्ट्रपति भवन में भी वे काफी सादगी से रहा करते थे। उन्होंने विशाल राष्ट्रपति भवन में अपने उपयोग के लिए केवल दो-तीन कमरे ही रखे थे। उनमें से एक कमरे में चटाई बिछी रहती थी जहां बैठकर वे चरखा काता करते थे।

1962 में मिला भारत रत्न सम्मान

उन्होंने 1962 तक देश के राष्ट्रपति के रूप में काम किया। 1962 में ही उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनके बारे पंडित नेहरू ने लिखा है कि उन्होंने ऐसी मिसाल कायम की जिससे भारत की शान और इज्जत बढ़ी। वास्तव में वे भारत के प्रतीक थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने देश के सुदूर राज्यों में बसे गरीबों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए ट्रेन से यात्रा की थी। पांच महीने तक चली इस यात्रा के दौरान वे छोटे-छोटे स्टेशन पर भी रुके जहां वे गरीबों और किसानों से मिला करते थे।

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जब लोगों से मांगी माफी

राष्ट्रपति के रूप में दो कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्होंने 1962 में राजनीति और सार्वजनिक जीवन से संन्यास लेने का फैसला किया और तब उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में लोगों को संबोधित किया था। काफी संख्या में लोग उन्हें सुनने के लिए पहुंचे और इस दौरान उन्होंने लोगों से कहा था यदि मुझसे कुछ गलतियां हुई हों तो आप लोग मुझे माफ कर दीजिएगा।

नहीं करने दी दखलअंदाजी

डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपने संवैधानिक अधिकारों में कभी भी प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखलअंदाजी करने का मौका नहीं दिया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से काम किया। हिंदू अधिनियम पारित करते समय उन्होंने कड़ा रुख अपनाया था। 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू होने से एक दिन पूर्व ही 25 जनवरी को उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया था। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उस समय मिसाल कायम करते हुए संविधान की स्थापना की रस्म पूरी होने के बाद ही बहन के दाह संस्कार में हिस्सा लिया था।

अंशुमान तिवारी



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