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जिसने ठुकराया मंत्री पद, उसने दिया नरेंद्र मोदी को ये गुरुमंत्र

ऐसे ही विराट पुरुष भारत रत्न की चर्चा करेंगे, जिनकी आज 10वीं पुण्यतिथि है। भारत रत्न नानाजी देशमुख को 1999 में सामाजिक कार्यों के लिए पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था।

राम केवी
Published on: 27 Feb 2020 12:18 PM GMT
जिसने ठुकराया मंत्री पद, उसने दिया नरेंद्र मोदी को ये गुरुमंत्र
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रामकृष्ण वाजपेयी

क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसने अत्यंत गरीबी में जीवन बिताने के बावजूद मंत्री पद ठुकरा दिया हो। आजीवन समाजसेवा की हो और अंत में आत्मा बंधन मुक्त हुई तो पिंजरा यानी देह का भी दान कर दिया हो। और तो और उनके मरने के चार साल बाद जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार सत्ता में आई तो उनके सिद्धांत को मोदी ने पूरी कैबिनेट पर लागू किया। नरेंद्र मोदी ने मंत्रियों के लिए उम्र के बंधन को कट्टरता से लागू किया जिस पर नानाजी देशमुख काफी पहले अमल कर चुके थे।

आज ऐसे ही विराट पुरुष भारत रत्न की चर्चा करेंगे, जिनकी आज 10वीं पुण्यतिथि है। भारत रत्न नानाजी देशमुख को 1999 में सामाजिक कार्यों के लिए पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था।

नानाजी का जन्म महाराष्ट्र के हिंगोली जिले कंडोली नामक छोटे से कस्बे में हुआ था। बचपन में ही उन्होंने माता पिता को खो दिया। मामा ने उनका पालन पोषण किया। उनके अंदर पढ़ने लिखने की गजब की ललक थी। कापी किताबें खरीदने को पैसे नहीं थे तो सब्जी बेचकर पैसे जुटाए। वे मन्दिरों में रहे और पिलानी के बिरला इंस्टीट्यूट से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की।

15 साल की उम्र में कार्यकर्ता

दरअसल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) के आदि सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से उनके पारिवारिक सम्बन्ध थे। हेडगेवार ने नानाजी की प्रतिभा को पहचाना और आर.एस.एस. की शाखा में आने के लिए समझाया। सन 1930 में मात्र 15 साल की उम्र में ही वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाने लगे। संघ को दे दिया जीवन दान, आजीवन रहे अविवाहित। आगे चलकर महाराष्ट्र में जन्म लेने के बावजूद उनका कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश व राजस्थान रहा। उन्हें पहले गोरखपुर भेजा गया फिर उत्तर प्रदेश के प्रांत प्रचारक बनाए गए।

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अंत तक सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित रहे नानाजी देशमुख

1940 में हेडगेवार के निधन के बाद नानाजी ने अपना ध्यान पूरी तरह आर.एस.एस. की शाखाओं पर केंद्रित कर दिया। उनके प्रयास से गोरखपुर के आसपास 250 शाखाएं लगने लगीं। इसी बीच उनका संपर्क श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुआ। आप को जानकर आश्चर्य होगा कि गोरखपुर में पहले सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना नानाजी देशमुख के प्रयासों से हुई थी।

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चंद्रभानु गुप्त को दिला दी पटखनी

जब जनसंघ की स्थापना हुई तो नानाजी देशमुख ने उसके विस्तार में बड़ी भूमिका निभाई। उत्तरप्रदेश की बड़ी राजनीतिक हस्ती चन्द्रभानु गुप्त को नानाजी की वजह से तीन बार कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। एक बार, राज्यसभा चुनाव में कांग्रेसी नेता और चंद्रभानु के पसंदीदा उम्मीदवार को हराने के लिए उन्होंने रणनीति बनायी। १९५७ में जब गुप्त स्वयं लखनऊ से चुनाव लड़ रहे थे, तो नानाजी ने समाजवादियों के साथ गठबन्धन करके बाबू त्रिलोकी सिंह को बड़ी जीत दिलायी। १९५७ में चन्द्रभानु गुप्त को दूसरी बार हार को मुँह देखना पड़ा।

ये है गुरु मंत्र जिसे मोदी ने अपनाया

नानाजी देशमुख के बारे में एक किस्सा मशहूर है कि 1977 में जब उन्हें जनता पार्टी की सरकार में मंत्री पद में शामिल किया गया तो उन्होंने यह कहते हुए पद ठुकरा दिया कि 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को मंत्री नहीं बनना चाहिए और सरकार से बाहर रहते हुए समाज सेवा करना चाहिए। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी ने नानाजी देशमुख के इसी गुरु मंत्र को थोड़ा संशोधन के साथ अपनी कैबिनेट पर लागू किया है। जिसके चलते एक उम्र सीमा के बाद नरेंद्र मोदी की कैबिनेट से मंत्री रिटायर हो जाते हैं।

यहां ली अंतिम सांस

नानाजी देशमुख आज नहीं हैं लेकिन उनकी सोच और विचार आज भी पहले की ही तरह प्रासंगिक हैं। उन्‍होंने सार्वजनिक जीवन में रहते हुए कभी किसी पद का मोह नहीं किया। नानाजी ने भारत के कई गांवों में सामाजिक पुनर्गठन कार्यक्रम चलाया था। जिसके तहत गांवों के उद्धार के लिए काम किया गया। यही वजह है कि नानाजी की छवि नेता ही नहीं, बल्कि एक समाजसेवी की रही। नानाजी देशमुख को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया है।

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कर्मयोगी नानाजी ने 27 फ़रवरी, 2010 को अपनी कर्मभूमि चित्रकूट में अंतिम सांस ली. उन्होंने देह दान का संकल्प पत्र बहुत पहले ही भर दिया था. इसलिए देहांत के बाद उनका शरीर आयुर्विज्ञान संस्थान को दान दे दिया.

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