तरस जाएंगे खाने के लिएः टिड्डियों के हमले पर डब्ल्यूएमओ की चेतावनी

संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने चेताया है कि पूर्वी अफ्रीका, भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में टिड्डी दल का हमला खाद्य सुरक्षा पर गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। भारत के तीन राज्यों में 8,000 करोड़ की मूंग दाल और बहुत सारी अन्य फसलों के नुकसान होने का खतरा है।

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Published on: 22 July 2020 6:34 AM GMT
तरस जाएंगे खाने के लिएः टिड्डियों के हमले पर डब्ल्यूएमओ की चेतावनी
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नील मणि लाल

नई दिल्ली। भारत समेत कई देशों में टिड्डी दल के हमले का एक असर खाद्य उत्पादन पर पड़ सकता है। मानसून के बाद भारत को टिड्डियों के दूसरे बड़े हमले के लिये तैयार रहना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने चेताया है कि पूर्वी अफ्रीका, भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में टिड्डी दल का हमला खाद्य सुरक्षा पर गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। भारत के तीन राज्यों में 8,000 करोड़ की मूंग दाल और बहुत सारी अन्य फसलों के नुकसान होने का खतरा है।

डब्लूएम्ओ ने इथियोपिया और सोमालिया का हाल बताया है जहाँ 2019 के अंत में टिड्डियां 70 हजार हेक्टेअर फसल पूरी तरह चट कर गई थीं। वहीं केन्या की 2400 किमी चारागाह भूमि को नष्ट कर दिया था। इथियोपिया में दिसबंर 2019 से मार्च 2020 के बीच टिड्डियों ने एक लाख 14 हजार हेक्टेअर ज्वार, 41 हजार हेक्टेअर मक्का और 36 हजार हेक्टेअर गेहूं की फसल नष्ट की है। विश्व खाद्य संगठन रेगिस्तानी टिड्डियों की निगरानी और कंट्रोल का काम करता है। इसके अनुसार उत्तरी सोमालिया से रेगिस्तानी टिड्डियों का दल गर्मियों में प्रजनन के लिए हिंद महासागर आ सकता है। यही नहीं राजस्थान में तो कई झुंड मौजूद भी हैं।

अनुकूल माहौल

यूएन एजेंसी के अनुसार, रेगिस्तानी क्षेत्रों में तापमान और वर्षा में वृद्धि और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों (ट्रॉपिकल साइक्लोन) से जुड़ी तेज हवाएं कीट प्रजनन, विकास और प्रवास के लिए एक नया अनुकूल माहौल बनाती हैं। भारत में बीते दो महीने में राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी और गुजरात के दो दर्जन से अधिक जिलों में टिड्डियों के बड़े और आक्रामक झुंड ने हमला किया था। पाकिस्तान में बीस साल में टिड्डी दल का इतना बड़ा हमला देखा गया है। इमरान खान सरकार ने तो आपातकाल की घोषणा कर दी थी।

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प्राचीन काल से टिड्डियों का घर

संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के अनुसार पाकिस्तान, राजस्थान गुजरात के जिन इलाकों में टिड्डियों का कहर हुआ है वहां ये पतंगे प्राचीन समय से मौजूद हैं। लेकिन हाल ही में इनके आक्रामक होने की वजह को जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा सकता है।

वजहें कई हैं

वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है और ग्लोबल वार्मिग ने टिड्डियों के विकास, प्रकोप और अस्तित्व के लिए अनुकूल माहौल बना दिया है। हिंद महासागर का गर्म होना, तीव्र और असामान्य चक्रवात, भारी वर्षा व बाढ़ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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टिड्डी हमले के पीछे है कोरोना वायरस

डेजर्ट लोकस्ट के नाम से पहचानी जाने वाली टिड्डियों की प्रजाति हर साल ईरान और पाकिस्तान से भारत पहुंचती हैं। जहां भारत में ये टिड्डियां एक बार मॉनसून के वक्त ब्रीडिंग करती हैं वहीं ईरान और पाकिस्तान में ये दो बार अक्टूबर और मार्च के महीनों में होता है। मार्च में इन दोनों ही देशों में प्रजनन रोकने के लिए दवा का छिड़काव किया जाता है लेकिन इस बार कोरोना संकट से घिरे ईरान और पाकिस्तान में यह छिड़काव नहीं हुआ और भारत में दिख रहे टिड्डियों के हमले के पीछे यह एक बड़ा कारण है।

कोविड महामारी के कारण ईरान और पाकिस्तान इस बार टिड्डियों के प्रजनन को रोकने में इस्तेमाल होने वाली दवा नहीं मंगा पाए। अमूमन मॉनसून के वक्त भारत में ब्रीडिंग के बाद टिड्डियाँ अक्टूबर तक गायब हो जाती हैं लेकिन 2019 में देर तक चले मॉनसून के कारण टिड्डियों का आतंक राजस्थान, गुजरात और पंजाब के इलाकों में इस साल जनवरी तक देखा गया।

टिड्डियों का यह प्रकोप 27 साल बाद दिख रहा

यूपी और मध्यप्रदेश में तो टिड्डियों का यह प्रकोप 27 साल बाद दिख रहा है।इस साल फरवरी मार्च में लगातार हुई बारिश ने टिड्डियों के पनपने के लिये माहौल बनाये रखा। एफएओ ने पिछले हफ्ते कहा कि ईरान और पाकिस्तान में अनुकूल नमी वाले मौसम में टिड्डियों की ब्रीडिंग जारी है और जुलाई तक यह झुंड पाकिस्तान सीमा से भारत में आते रहेंगे। टिड्डियाँ इंसानों और जानवरों पर हमला नहीं करतीं लेकिन यह फसल की जानी दुश्मन हैं। इन्हें कोमल पत्तियां बेहद पसंद होती हैं।

एक वर्ग किलोमीटर में 4 से 8 करोड़ तक वयस्क टिड्डियाँ हो सकती हैं जो एक दिन में इतनी भोजन चट कर सकती हैं जितना 35,000 लोग खाते हैं। टिड्डियों का संकट केवल भारत या दक्षिण एशिया का नहीं है बल्कि यह दुनिया के 60 देशों में फैली समस्या है जो मूल रूप से अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में हैं। अपने हमले के चरम पर हों तो यह 60 देशों में बिखरे दुनिया के 20% हिस्से पर कब्जा कर लेती हैं। इनसे दुनिया की 10% आबादी की रोजी रोटी बर्बाद हो सकती है।

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