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सितंबर तक आ जाएगी कोरोना की वैक्सीन, प्रोटोकॉल तोड़ जल्द होगा ह्यूमन ट्रायल
विश्व को कोरोना वैक्सीन की इतनी ज्यादा जरूरत हैं कि इसके लिए देश विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय प्रोटोकॉल को तोड़ कर वैक्सीन बना रहे हैं।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों से प्रभावित विश्व के तमाम देश अब इसके इलाज की खोज में जुट गए हैं। इसके लिए भारत-अमेरिका समेत कई देश कोविड -19 की वैक्सीन बनाने में लगे हैं, वहीं दावा किया जा रहा है कि चीन ने तो वैक्सीन की ह्यूमन टेस्टिंग भी शुरू कर दी है।
पहली वैक्सीन, जिसमें किया जा रहा प्रोटोकॉल को अनदेखाः
विश्व के लगभग सभी बड़े देश कोरोना वायरस के इलाज के लिए जल्द से जल्द वैक्सीन इजात करने में लगे हैं, ऐसे में जिस क्लिनिकल ट्रायल में दो साल तक का समय लगता है, उसे देश दो महीने में पूरा करने की योजना के तहत बना रहे हैं। विश्व को इस वैक्सीन की इतनी ज्यादा जरूरत हैं कि इसके लिए देश विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय प्रोटोकॉल को तोड़ कर वैक्सीन बना रहे हैं।
वैक्सीन तैयार करने को लेकर WHO का प्रोटोकॉल:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वैक्सीन बनाने को लेकर एक प्रोटोकॉल तय किया है, जिसके लिए गाइड लाइन जारी है। ऐसे में नियमो के तहत वैक्सीन तैयार करने का प्रोटोकॉल 12 से 18 महीने का होता है। दो साल का क्लीनिकल ट्रायल किया जाता है, लेकिन कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर ऐसा नहीं किया जा सकता।
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जल्द से जल्द ह्यूमन टेस्टिंग करना चाहते हैं देश
कई देश वैक्सीन की ह्यूमन टेस्टिंग शुरू करने जा रहे हैं। बता दें कि इंसान के इस्तेमाल से पहले वैक्सीन का प्री-क्लीनिकल ट्रायल जानवरों पर होता है। इससे इंसान के लिए वैक्सीन कितनी सुरक्षित हैं, इसका पता चलता है। इस प्रक्रिया में दो साल का समय लग जाता है। लेकिन आपातकाल की इस स्थिति को देखते हुए इस प्रक्रिया को देश दो महीने में पूरा करने की तैयारी में है।
चरणों में वैक्सीन ऐसे होती है तैयार:
वहीं क्लीनिकल ट्रायल के दूसरे फेज में कृत्रिम इन्फेक्शन पर वैक्सीन को टेस्ट किया जाता है। इससे क्षमता का अंदाजा लगता है। वैक्सीन की सेफ्टी, साइड इफेक्ट और असर का आकलन फेज 2 में हो जाता है।
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फेज 3 में इसका वास्तविक इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है।
फेज-4 में वैक्सीन का लाइसेंस हासिल किया जाता है ताकि मार्केट में बिक्री के लिए उतारा जा सके।
सितंबर तक वैक्सीन तैयार करने का लक्ष्य
चीन से लेकर इंग्लैंड और अमेरिका से लेकर भारत तक सभी देश वैक्सीन बनाने का काम कर रहे हैं। रिसर्चर सितंबर तक वैक्सीन बनाने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। बता दें कि इसके पहले इबोला की वैक्सीन बनाने में 5 साल लग गए थे, लेकिन इतनी बड़ी महामारी के लिए वैक्सीन को दो महीने में बनाना वैज्ञानिकों के लिए चुनौती है।
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