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हे भगवान: यहाँ तो मिल रही देवी देवताओं को ही सजा, छत्तीसगढ़ की रहस्यमयी जगह की कहानी आपके होश उड़ा देगी
Chhattisgarh Devi-Devtao ki Adalat: हम जीवन में बहुत गलती करते हैं।कुछ का तो एहसास भी हमें हो जाता है पर कुछ गलती हम अनजाने में करते हैं ।जिन ग़लतियों का एहसास हमें हो जाता है उनके लिए हम भगवान के सामने झुकते हैं ।
Chhattisgarh Devi-Devtao ki Adalat: हम जीवन में बहुत गलती करते हैं। कुछ का तो एहसास भी हमें हो जाता है पर कुछ गलती हम अनजाने में करते हैं। जिन गलतियों का एहसास हमें हो जाता है उनके लिए हम भगवान के सामने झुकते हैं। क्योंकि उन गलतियों के लिए हम माफी माँगते हैं। चाहते हैं कि भगवान वो गलतियाँ भूलकर हमें माफ कर दें और हमारी मनोकामना पूरी कर दें। पर हम आपको आज एक ऐसी बात बताएँगे जिसे सुनकर आप हैरानी में पड़ जाएंगें। भगवान आपको सजा देते हैं ये तो आपने सुना भी है। अनुभव भी जरूर किया होगा। पर कभी ऐसा सुना है कि भगवान को भी सजा दी गयी हो।
जी हाँ आप एकदम सही सुन रहे हैं।आपने OMG मूवी देखी होगी जिस पर परेश रावल ने भगवान के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला था और भगवान से मुआवज़ा माँगा था। वैसे ही यहाँ भगवान को भक्तों के द्वारा सजा सुनाई जाती हैं। ये छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग के आदिवासियों द्वारा होता है। यहाँ भगवान को सजा दिलाने के लिए अदालत लगायी जाती हैं। इसे भंगाराम माई का दरबार कहते हैं। माँ का दरबार धमतरी जिले के कुर्सीघाट बोराई में है।
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इस दरबार में देवी देवताओं को पेश होना पड़ता है। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। इन मान्यताओं के अनुसार नौ परगना के कोई भी लोग दरबार की अनुमति के बिना देवी देवताओं की पूजा नहीं कर सकते हैं। माई का दरबार हर साल के भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा के महीनों में किया जाता है। ऐसा क्यों किया जाता है इसकी वजह जानते हैं।
दरअसल आदिवासी समाज के लोग अपने हर एक कार्य के लिए भगवान पर ही आश्रित होते हैं। पर जब यही कामना भगवान पूरी नहीं करते हैं। तो आदिवासी भगवान को ही अपना दोषी मानते हैं और भगवान के खिलाफ अपनी अर्ज़ी लगाते हैं। शिकायत के आधार पर भंगाराम के मंदिर में इन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। यहां इनकी सुनवाई होती है, आरोप लगते हैं और दोषी पाए जाने पर सज़ा भी मिलती है।
जब देवी-देवता आदिवासियों की परेशानियां दूर नहीं करते तो उन्हें दोषी माना जाता है। ऐसे देवी-देवताओं को ग्रामीण चिन्हित कर लाट, बैरंग, डोली आदि को लेकर भंगाराम जात्रा में पहुंचते हैं। फिर मंदिर परिसर में ही अदालत लगती है।देवी-देवताओं पर लगने वाले आरोपों की गंभीरता से सुनवाई होती है। दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई के पश्चात आरोप सिद्ध होने पर फ़ैसला सुनाया जाता है।
मान्यता के अनुसार मंदिर के पंडित के अंदर भंगाराम देवी प्रवेश करती हैं, जिसके बाद देवी अपना सजा सुनाती हैं। इसके बाद मंदिर का पुजारी बेहोश हो जाता है। अपराध के अनुसार सजा 6 महीने के मंदिर निष्कासन से लेकर मृत्यु दंड तक हो सकती है।
मृत्युदंड में मूर्तियां खंडित कर दी जाती हैं। और निष्कासन में मूर्तियों को मंदिर से निकाल बाहर बनी खुली जेल में रख दिया जाता है। इस दौरान मूर्ति के जेवरों को मंदिर में ही रख दिया जाता है। सजा देने के लिए एक कारागार भी है। मंदिर परिसर में एक गड्ढे नुमा घाट बना हुआ है। दोष साबित होने पर देवी-देवताओं के लाट, बैरंग, आंगा, डोली आदि को इसी गड्ढे में डाल दिया जाता है। इस तरह से देवी-देवताओं को सजा दी जाती है।
सजा की विशेष अवधि पूरी होने के बाद मूर्ति को वापस मंदिर में स्थापित किया जाता है। देवी देवताओं को गलती सुधारने के मौक़ा दिया जाता है , पर उसके लिए उन्हें वचन देना होता है । यह वचन में देवी देवता पुजारी के सपने में आकर देते हैं ।इसके बाद ही मूर्ति को फिर से मंदिर में स्थान दिया जाता है ।वापसी के बाद भगवान की पूजा की जाती है।
इस बडी मान्यता के दौरान महिलाओं की उपस्तिथि वर्जित होती है ।ऐसा माना जाता है कि महिलाओं की उपस्तिथि माहौल खराब कर सकती है ,क्योंकि महिलाएँ भावुक होती हैं ।यहाँ तक कि महिलाओं को प्रसाद भी नहीं दिया जाता है ।
माना जाता है कि बस्तर में देवी भंगाराम का निवास है जो बस्तर के राजा के सपने में आयी थी और उन्होंने यहाँ पर रहने की मंशा जताई थी ।केशकाल की घाटी में बना देवी का मंदिर देवी के प्रकट होने का स्थान है।
( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)